सिगरेट
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" बाबूजी आपको कितनी बार मना किया है...ठंडा पानी मत पीया करिये। आपकी तबियत फौरन खराब होने लगती है...आप सुनते क्यों नहीं?", डॉक्टर बेटे अशोक ने अपने पिताजी से कहा
" बेटा जेठ की गर्मी है, सादे पानी से गला गीला तो हो जाता है लेकिन प्यास नहीं बुझती, इसलिए थोड़ा सा ठंडा पानी पी लिया। मुझे कुछ नहीं होगा, चिंता मत कर
" मुझे पता है बाबूजी, गर्मी बहुत है, पर ठंडा पानी नुकसान करेगा आपके रोग में, बस थोड़ा अपनी इस तृष्णा को नियंत्रित कर लीजिए। याद है ना पिछली गर्मियों में आपको दमे का कितना भयानक अटैक पड़ा था, आपको यदि कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा बाबूजी। मेरे बारे में सोच कर ही थोड़ा ध्यान दीजिए", डॉक्टर अशोक की आँखें नम हो गईं
" अशोक बेटा, तू डॉक्टर हो कर सिगरेट के हर नुकसान से अवगत है, पर फिर भी अपनी तलब को नियंत्रित नहीं कर पाता, तो मैं तो एक साधारण आदमी हूँ मैं कैसे अपने ठंडे पानी पीने की आदत छोडू। हाँ अगर तुझे मेरी फ़िक्र है कि मुझे कुछ हो गया तो तेरा क्या होगा...तो बेटा वही डर मुझे भी है। छोड़ दे इस ज़हर को जो तुझे भीतर से धुएँ में घोल रहा है, तू सिगरेट छोड़ और मैं वादा करता हूँ कि उसी दिन से ठंडा पानी पीना छोड़ दूँगा। मैं तेरा और तू मेरा जीवन आधार है बेटा, यदि नींव ही कमज़ोर हो गयी तो घर कैसे मज़बूत बनेगा?" बाबूजी ने बड़े प्रेम से डॉक्टर अशोक को समझाया