शुक्रिया मेरे जीवनसाथी
शुक्रिया मेरे जीवनसाथी
सगाई के बाद हमारी बातचीत होती थी। आप शाम को फुटबॉल खेलने जाते थे। एक दिन आपने बताया कि फुटबॉल आपके सीने में लगा और आपको काफी दर्द भी हुआ। बात बीत गयी पर मुझे अच्छा नहीं लगा इसलिए मैं प्रतिदिन आपसे बात करने लगी।
शादी के बाद जब आप रविवार यानी छुट्टी के दिन फिर से फुटबॉल खेलने जा रहा हूँ, बोले तो मुझे पुरानी घटना याद आ गयी। मैंने आपको मना किया कि, ‘आप नहीं जाओगे।’ चूँकि आपके विभाग की तरफ से ये खेल था, जाना आपकी मजबूरी भी थी।
मैं इन बातों को कहाँ समझने वाली थी? एक तो रविवार ही तो मिलता था, जिस दिन हम साथ रहते थे बाकी दिन आप व्यस्त रहते थे। दूसरी वजह फुटबॉल का भय था, मैं नहीं चाहती थी कि आप जाओ। आखिर आप फुटबॉल खेलने गए।
मैं आपसे नाराज हो गयी, टेबल पर रखी एक नोटबुक पर हृदय से निकली अपनी भावनाओं को मैंने व्यक्त किया।
"अब मेरी कशिश
न खींच पाएगी तुझे
तुझे रास आ गयी दुनिया
मैं बुत बनकर बैठी रही
तुझे भा गयी
गेर पगडंडियां।"
ये मेरी हृदय से निकली भावनाएं थी जो कविता का रूप ले गयी। यही मेरी पहली कविता थी जो मैंने आपके लिए लिखी। मेरी प्रेरणा आप ही हो। आपके लिए, आप पर ही लिखती हुँ कविता।
शाम को जब फुटबॉल खेलकर आये तो सामने खुली रखी नोटबुक पर नजर पड़ी। आपने मेरी नाराजगी नहीं बल्कि मेरी कविता में छिपे मेरे प्यार को देखा। आपने मुझे आगे लिखते रहने को प्रेरित किया। एक डायरी हाथ में थमा दी, एक बाद कई डायरियां भरी औऱ ये सफर मेरा अब तक जारी है।