शुद्र का मंदिर
शुद्र का मंदिर
दो भाई थे भद्र और शुद्र वह दोनों मित्र की तरह रहते थे।
वह दोनों पहाड़ी प्रदेश के सैया गांव के निवासी थे,उनके पास खेती योग्य बहुत जमीन थी। वह दोनों एक साथ पहाड़ियों पर ही अपनी खेती करते थे, लेकिन एक दिन मतभेद होने पर उन्होंने अपनी संपत्ति का बंटवारा कर लिया।
भद्र उग्र स्वभाव का था और शुद्र विवेकशील था,अपने इस स्वभाव के कारण भद्र अपने छोटे भाई शुद्र पर हमेशा हावी रहता था, जब उन दोनों ने अपनी जमीन का बटवारा किया था उस समय बारिश का मौसम था, बारिश होने के कारण उनकी जमीन के निचले हिस्से में हमेशा किसी तालाब की तरह पानी भरा रहता था अर्थात पानी भर जाने के कारण जमीन खेती योग्य नहीं रहती थी इसलिए भद्र ने चालाकी दिखाते हुए ऊपरी हिस्सा अपने नाम कर लिया और निचला हिस्सा अपने छोटे भाई शुद्र को दे दिया नतीजतन खेती योग्य जमीन न मिलने के कारण शुद्र बहुत परेशान रहने लगा, उसके लिए दो वक्त की रोटी के लाले पड़ गए, काफी सोच-विचार के बाद फिर एक दिन उसने एक योजना बनाई !
उसने सन्यासी का वेश धारण किया और लोगों से चंदा इकट्ठा किया और अपनी थोड़ी सी सूखी जमीन पर एक मंदिर बनाया और उसी मंदिर में रहकर ईश्वर की आराधना करने लगा उसकी ज्यादातर जमीन पर पानी भरा रहता था इसलिए खेती नहीं कर पाता था, मंदिर में जो भी चढ़ावा आता था उसी से उसकी दो वक्त की रोटी मिल जाती थी। ऐसा कई वर्षों तक चलता रहा फिर एक बार ऐसा हुआ कि वर्षा नहीं हुई और सूखा पड़ गया, लेकिन शुद्र की जमीन पर पिछले साल का पानी अभी भी भरा हुआ था बाकी लोगों की जमीन पर खेती थी जो बारिश के बिना सूखने लगी, उन सभी किसानों को पानी की कीमत समझ में आने लगी। वह शुद्र की जमीन पर भरे पानी की ओर लालायित होने लगे और मंदिर में जाकर शुद्र से विनती करने लगे कि शुद्र भैया रुपया पैसा ले लो और पानी देकर हमारी फसल बचा लो, वहां मिन्नतें करने वालों में उसका बड़ा भाई भद्र भी खड़ा था उसने छोटे भाई के साथ छल किया था इसलिए उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था, लेकिन छोटा भाई शुद्र दयावान व्यक्ति था उसको सभी पर दया आने लगी ।उसने सभी को पानी देने के लिए हां कह दिया। फिर क्या था मंदिर में रुपयों की वर्षा होने लगी सभी चाहते थे उनको सबसे पहले पानी मिले इसलिए सब के सब पहले से पहले पैसा देने के लिए आगे आने लगे, फिर तो मंजर यह था कि हर और यही चर्चा थी अपनी फसल बचानी है तो शुद्र के मंदिर जाओ और फसल को सूखने से बचाने के लिए पानी प्राप्त करने की गुहार लगाओ।
