शुभारम्भ नये तन -मन का !
शुभारम्भ नये तन -मन का !
"वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी,
इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे !"
नामचीन शायरा परवीन शाकिर के इस शेर को पढ़ते हुए जाने क्यों कनिका को यह महसूस हुआ कि बावजूद इस तथ्य के कि उसके जीवन साथी प्रशांत ने आत्म हत्या कर ली है, उसे ऐसा महसूस होता है कि प्रशांत से उसकी एक बार फिर मुलाक़ात होगी ..अवश्य ही होगी। उसने पढ़ रखा था कि हिन्दू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है जिसका यह अर्थ है कि आत्मा जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की शिक्षात्मक प्रक्रिया से गुजरती हुई अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण अवश्य ही करती है। ...उसकी यह भी मान्यता है कि प्रत्येक आत्मा मोक्ष प्राप्त करती है, जैसा कि गीता में कहा गया है। लेकिन वेदों में पुनर्जन्म को मान्यता दी गई है। उपनिषदकाल में पुनर्जन्म की घटना का तो व्यापक उल्लेख भी मिलता है। योग दर्शन के अनुसार अविद्या आदि क्लेशों के जड़ होते हुए भी उनका परिणाम जन्म, जीवन और भोग होता है। सांख्य दर्शन के अनुसार 'अथ त्रिविध दुःखात्यन्त निवृति ख्यन्त पुरुषार्थः।' पुनर्जन्म के कारण ही आत्मा के शरीर, इंद्रियों तथा विषयों से संबंध जुड़े रहते हैं। न्याय दर्शन में कहा गया है कि जन्म, जीवन और मरण जीवात्मा की अवस्थाएं हैं। पिछले कर्मों के अनुरूप वह उसे भोगती है तथा नवीन कर्म के परिणाम को भोगने के लिए वह फिर जन्म लेती है। उसने अब इंटरनेट और पुस्तकों से आत्महत्या और पुनर्जन्म आदि पर जानकारियाँ जुटानी शुरू कर दी। उसे पता चला कि कई लोगों और संस्थाओं ने शोध किए हैं। ओशो रजनीश ने पुनर्जन्म पर बहुत अच्छे प्रवचन दिए हैं। उन्होंने खुद के भी पिछले जन्मों के बारे में विस्तार से बताया है।
आधुनिक युग में पुनर्जन्म पर अमेरिका की वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेंसन ने 40 साल तक इस विषय पर शोध करने के बाद एक किताब 'रिइंकार्नेशन एंड बायोलॉजी' लीखी थी जिसे सबसे महत्वपूर्ण शोध किताब माना गया है। वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेंसन ने पहली बार वैज्ञानिक शोधों और प्रयोगों के दौरान पाया कि शरीर न रहने पर भी जीवन का अस्तित्व बना रहता है। उपयुक्त अवसर आने पर वह अपने शरीर या पार्थिव रूप को फिर से रचता है। उन्हीं की टीम द्वारा किए प्रयोग और अनुसंधानों को " स्पिरिट साइंस एंड मेटाफिजिक्स " में संजोते हुए लिखा है कि पुनर्जन्म काल्पनिक नहीं हैं। उसकी संभावना निश्चित ही है।
कनिका उन सामान्य लड़कियों से हटकर थी जो किसी से इसलिए जुड़ते हैं कि उसके सहारे वे अपनी नैय्या पार लगा सके, बेल की तरह लिपट कर उसका शोषण कर सकें। उसने तन मन और वचन से प्रशांत को स्वीकार था और इसीलिए वह अब भी उसे अपना पति मान रही है। उसकी मांग का सिंदूर उसके जन्म जन्म के सुहाग का प्रतीक बन चुका था। तिल का ताड़ बनाने ,असली मुद्दे से ध्यान हटाने के मामले में पारंगत देश की मीडिया ने अपनी सारी ताकत लगा कर अब थोड़ा रहम किया था। देश के जाने माने पत्रकार और साहित्यकार श्री दयानन्द का यह बयान चर्चा का बिंदु बन गया था। उन्होंने कहा - " लोगों को यह भ्रम है कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा खंभा है , वह लोग अपना भ्रम ज़रूर दूर कर लें। वह यह कि संविधान में सिर्फ तीन ही खंभे का ज़िक्र है। विधायिका , कार्यपालिका और न्यायपालिका। बस। भारत में मीडिया अगर किसी का खंभा है तो पूंजीपतियों का खंभा है। संविधान का नहीं। कार्ल मार्क्स तो साफ़ कहते थे कि प्रेस की आज़ादी का मतलब है , पूजीपतियों की आज़ादी।"
इन्हीं ख्यालों में एक रात कनिका स्वप्न देख रही है। उसको किसी अनजान जगह में एक बालक लेकर गया हुआ है। लोग उसके इर्द गिर्द जुटे हुए हैं |उसका का नाम है - हैरी पॉटर, वह उससे पूछता है :
"कनिका तू जानती है यह कौन सी जगह है ? "
" नहीं, ....मैं नहीं जानती ! ' कुछ कुछ घबराए हुए कनिका उस अपरिचित बालक को उत्तर देती है।
हंसते हुए ...क्या लगभग अट्टहास करते हुए वह बोलता है :
" यहाँ मैं तुम्हारी मुलाकात करवाने लाया हूँ तुम्हारे पति से .... प्रशांत से ...."
कनिका खुश हो उठती है। हैरी को वह जानती है कि वह एक काल्पनिक पात्र है लेकिन यह क्या ? .....वह तो उसको अपने सामने खड़ा पाकर वह बेहद खुश हो उठती है। वही हैरी जिसे खुद ये नहीं पता था कि वो एक जादूगर है। जब उसे पता चला था कि वो एक जादूगर है, तो वो तन्त्र-मन्त्र और जादू-टोने के विद्यालय हॉग्वार्ट्स में दाख़िला ले लेता है। इस तरह शुरु हुई थी हैरी और उसके दोस्तों (हर्माइनी ग्रेंजर और रॉन वीज़्ली) की रोमांचक ज़िन्दगी। कई बार उन्हें उनके खूंखार दुश्मन दुष्ट और आतंकवादी जादूगर लॉर्ड वोल्डेमॉर्ट का सामना करना पड़ता है। कनिका इन सबको काल्पनिक मान बैठी थी। लेकिन आज ..आज वह बेहद खुश है। वह अपने विचारों में खोई हुई थी कि उसे एक और आवाज़ ने लगभग डरा ही दिया - " अब हम तुम्हें अपने इन्डियन दोस्त कृष के साथ ले जायेंगे टाइम ट्रेवेल पर जिसका मकसद तुम्हारे मरे हुए पति को वापस लाने का है। " यह डरावनी आवाज़ हैरी की ही थी ..लेकिन शायद शायद कृष भी आ चुका था। कनिका अब मानो हवा में उड़ती जा रही है। उसने पढ़ा था कि समय यात्रा कोई सोच मात्र नहीं..बल्कि इतिहास भी हमें इसके कई सबूत देता हैं।
अब कनिका अपने टाइम ट्रेवेल के अंतिम पड़ाव पर थी ....उसे खुशी हो रही है कि वह भी आधुनिक समय की कोई समय यात्री बन रही हैं, जो समय यात्रा करके उस समय में गया था जब उसके प्रेमी उसके पति उसके साथ थे।
वह देख रही है एक व्यक्ति को जो सड़क के बीचों बीच खड़ा है ... वह पहले तो समझ नहीं पा रही थी ...लेकिन जब उसके करीब गई तो तो यह देखकर दंग रह गई कि वह कोई और नहीं उसका अपना प्रशांत है ....... !
"प्रशांत , प्रशांत " ....कहते हुए वह उससे लिपट जाती है की तब तक उसकी नींद खुल जाती है।
वह स्थिर होना चाह रही है और उसी क्रम में उसने टी.वी.सेट का बटन आन कर दिया है जहां एक चैनल पर किसी स्वामी जी का उपदेश आ रहा है -
" मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ। सब जानते हैं कि महाभारत के समय अर्जुन ने युद्ध करने से मना कर दिया था और तब कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देकर युद्ध के लिए प्रेरित किया था। परन्तु यह कम लोग जानते हैं कि अर्जुन ने महाभारत के समय एक बार और शस्त्र छोड़ दिए थे। ऐसा अर्जुन ने अभिमन्यु की मृत्यु के उपरान्त किया था। अर्जुन ने कृष्ण से कहा कि हे पार्थ, अब जब मेरा परमप्रिय पुत्र अभिमन्यु ही मारा गया तो मुझे युद्ध करके राज्य प्राप्त करने की कोई इच्छा नहीं है। कृष्ण ने अर्जुन को समझाने की चेष्टा की परन्तु अर्जुन नहीं माना। तब थक कर कृष्ण ने अर्जुन से कहा की तुम्हारी क्या इच्छा है, अर्जुन? अर्जुन ने कहा कि मैं एक बार अभिमन्यु से बात करना चाहता हूँ, कृष्ण मुस्कुराये और उन्होंने अभिमन्यु के सूक्ष्म शरीर का आह्वान किया। अभिमन्यु प्रकट हुआ और अर्जुन से बोला, हे अर्जुन, कहो मुझे क्यूँ बुलाया? अर्जुन ने कहा, हे अभिमन्यु, क्या तुम सम्मानजनक शब्दों से अपने पिता को सूचित करना भी भूल गए हो, जो मुझे नाम से बुला रहे हो? अभिमन्यु ने कहा, हे अर्जुन, कौन पिता और किसका पिता? इस जन्म से पहले जाने कितने जन्मों में मैं तुम्हारा पिता था। एक जन्म के सम्बन्ध उस जन्म के शरीर के साथ ही समाप्त हो जाते हैं। मैं अभिमन्यु के शरीर को त्याग चुका हूँ और उसके साथ ही उस शरीर के सारे संबंध भी समाप्त हो चुके हैं। अब मेरे लिए हर कोई एक समान है, मेरा किसी से कोई संबंध नहीं है। यह सुनते ही, अर्जुन को संबंधों की नश्वरता का बोध हो गया और वह फिर से युद्ध करने को अग्रसर हुआ।..........मृत्यु ही जीवन का एकमात्र सत्य है। .......हम चाहे जितनी कल्पनाशीलता से अपने स्वप्निल संसार का निर्माण कर लें, एक दिन मृत्यु हमें सत्य देखने के लिए बाध्य कर ही देती है। यदि हम जीवित रहते हुए देख पायें और समझ पाएं कि कुछ भी और कोई भी हमेशा के लिए हमारा नहीं है, सब कुछ क्षणिक है, तो हम मृत्यु से भयभीत नहीं होंगे। मृत्यु बस एक नाटक के एक अंक की समाप्ति और एक नए अंक के आरंभ का प्रतीक भर बन जायेगी।