HARSH TRIPATHI

Drama Tragedy

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HARSH TRIPATHI

Drama Tragedy

श्री कृष्ण-अ‍र्जुन -- भाग-5

श्री कृष्ण-अ‍र्जुन -- भाग-5

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वैभव के ऊपर छाया द्वारा यौन शोषण का गम्भीर आरोप लगाया गया था, जिसके कारण वह जेल में था। रजनी देवी अपने पुत्र को इस हालात से बाहर निकालने के लिये हाथ-पैर मार रहीं थीं। लेकिन जल्द ही शहर के दूसरे कई थाना क्षेत्रों से वैभव के खिलाफ इसी प्रकार की रिपोर्ट दर्ज कराये जाने की भी खबरें आने लगीं थीं। पाठक जी की मौत के बाद ये बात तो तय ही थी कि वैभव जैसे हर बार किसी भी मुश्किल से बाहर निकल जाता था, वैसे अब तो नहीं निकल पायेगा, साथ ही छाया ने जब रिपोर्ट दर्ज करवायी तो कई उन लड़कियों को भी हिम्मत ज़रूर मिली जो अतीत में कभी वैभव की हवस का शिकार बनी थीं या उसके द्वारा चलाये जा रहे सेक्स रैकेट के दुष्चक्र में फंसी थीं। यौन शोषण के मामलों की गम्भीरता का अंदाज़ा रजनी देवी को बखूबी था। वह अपने लड़के की काली करतूतों के बारे में अच्छी तरह जानती थीं साथ ही यह भी जानती थीं कि ऐसे हर एक मामले में ज़मानत मिल पाना कितना मुश्किल है, और यहाँ तो फेहरिस्त लम्बी होती जा रही थी। इस सब को लेकर रजनी देवी जी काफी परेशान थीं।

इस बीच विजय की एक और पेशी हाईकोर्ट में हुई थी जिस पर अकबराबाद पुलिस ने उसकी ज़मानत की अर्ज़ी का विरोध किया था, और विजय को इस बार भी ज़मानत नहीं मिल पायी थी। एक और महत्वपूर्ण बात यह भी हुई थी कि इस तिहरे हत्याकांड की गम्भीरता और अति हाई प्रोफाइल केस को देखते हुए, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा केंद्र सरकार से मामले की जाँच करवाने का आग्रह किया गया था जिसे केंद्र सरकार ने तुरंत मंज़ूर कर लिया था और केंद्रीय जाँच एजेंसी को इस मामले की जाँच की ज़िम्मेदारी दी थी। केंद्रीय जाँच एजेंसी के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अमिताभ कुमार के नेतृत्व में जाँच एजेंसी की एक टीम अकबराबाद आ कर अपना दफ्तर स्थापित कर चुकी थी और जाँच शुरु कर दी थी। अब इस बात की सम्भावना भी बलवती हो गयी थी कि विजय को फाँसी होकर रहेगी। केंद्रीय जाँच एजेंसी से बच कर निकलना असम्भव था।

इस दरम्यान वैभव को भी सेंट्रल जेल में शिफ्ट कर दिया गया था, जहाँ उसकी बैरक, विजय की बैरक से काफी दूर थी। वहाँ वैभव की बैरक में ही कई ऐसे लोग भी बंद थे, अतीत में जिनकी किसी कारण वैभव से दुश्मनी रही थी या जिनके परिवारों, बहनों को वैभव ने काफी नुकसान पहुँचाया था। वे लोग भी हिसाब पूरा करना चाहते थे और अब वैभव उनके बीच में ही था। पिछले कुछ दिनों में 1-2 दफा वैभव की बैरक में कैदियों के बीच मार-पीट होने की भी खबरें आयीं थीं। वैभव ने बैरक बदलवाने की अर्ज़ी भी दी थी जो कि नामंज़ूर हो गयी थी। आखिर पाठक जी मर ही चुके थे।

वैभव की इस स्थिति को देख कर माँ रजनी देवी काफी चिंतित थीं और इस कठिन दौर में उन्हे एकमात्र सहारा दिखलाई दिया - उनके बेटी-दामाद, गीतिका और नंदन। रजनी देवी ने गीतिका से सुलह करने का निर्णय किया और ऐसे ही एक शाम अपने दामाद नंदन को फोन मिलाया। नंदन उस समय अपने घर पर ही थे।

“हैलो!”

“”हैलो.....हाँ नंदन जी बोल रहे हैं?......मैं गीतिका की मम्मी बोल रही हूँ पाठक जी के यहाँ से”

“हाँ जी, मम्मी जी....चरण स्पर्श प्रणाम!....मैं नंदन ही हूँ.....कहिये, कैसे याद किया मम्मी जी?....सब कुशल-मंगल?”

“कुशल-मंगल तो क्या ही कहा जाये, बस ठीक ही है सब। आप लोग ठीक हैं?.....गीतिका और अरुणा कैसे हैं?”

“सब आशीर्वाद है मम्मी जी....जी बताएं”

नंदन, अब आपको तो पता ही है....घर में मैं बिल्कुल अकेली हो गयी हूँ.....पाठक जी चले ही गये पहले, और अब वैभव भी घर में है नहीं....मुझे घर में बहुत ही ज़्यादा बुरा लगता है। आप लोगों से, बेटी-दामाद से, थोड़ी मुलाक़ात हो जाती अगर तो मन मेरा कुछ हल्का हो जाता। बाकी अपने-अपने हिस्से के कष्ट तो सभी को काटने ही हैं। ”

“नहीं मम्मी जी!.....परेशान बिल्कुल भी न होइयेगा.....हम लोग तो हैं ही यहाँ और हमेशा बने रहेंगे आपके साथ। आखिर हमारे घर भी तो पिताजी की मृत्यु के बाद माताजी इसी तरह अकेली हो गयीं हैं....लेकिन हम कभी उनको ऐसे तन्हा नहीं छोड़ते....आपको कैसे छोड़ देंगे?......आप भी तो माँ हैं हमारी.....हम तीनों कल शाम आते हैं आपसे मिलने...ठीक है?”

“जी , बहुत अच्छे.....बहुत-बहुत शुक्रिया आपका नंदन। गीतिका है क्या?....थोड़ा बात करवाइयेगा”

“जी, बिल्कुल....यहीं बैठी है....लीजिये” ,और यह कह कर नंदन ने पास बैठी गीतिका को रिसीवर थमा दिया.

गीतिका ने हिचकते हुए रिसीवर हाथ में लिया “...जी...मम्मी जी.। "

रजनी देवी ने दुखी स्वर में कहा “हैलो.....गीतिका?.....बेटी, हम दोनों के बीच कड़वाहट कितनी ज़्यादा है, ये तो हम दोनों ही अच्छी तरह जानते हैं.....लेकिन बेटा, अब मेरा भी अंत समय नज़दीक है.....बूढ़ा शरीर कितना साथ देगा?....बेटे ने भी कम कष्ट नहीं दिये हैं मुझको......अब ऐसे में कम से कम एक अच्छा काम तो कर जाऊँ मैं.....मेरी क़ाबिल बेटी है एक, जो मेरी वजह से कष्ट में रही.....ये गलती मैं अपनी सुधार लूँ तो मेरे दिल से बोझ उतर जाये, मेरे दिल को चैन मिल जाये। "

गीतिका ने ज़्यादा कुछ नहीं कहा, उसने केवल धीमे स्वर में “जी” ही बोला.

“ये तुम्हारा ही घर है बेटा और एक बूढ़ी, बीमार औरत यहाँ रहती है जिसको तुम्हारी ज़रूरत है, मिलने आ जाओ बेटा....मैं हमारे बीच की यह गलतफहमियाँ दूर करना चाहती हूँ। "

गीतिका ने फिर ज़्यादा कुछ नहीं कहा और “हाँ” में उत्तर देते हुए रिसीवर नंदन को वापस थमा दिया।

“जी, मम्मी जी......हम लोग कल आते हैं। "

“ठीक है बेटा......ईश्वर तुम लोगों को हमेशा खुश रखे”

फिर कॉल डिस्कनेक्ट हो गयी।

नंदन ने गीतिका से पूछा “यार ,बात नहीं की तुमने....वो तुमसे बात करना चाह रही थीं”

गीतिका ने कहा “फोन पर ज़्यादा क्या बात करती?.....कर लूंगी बात मैं कल जा कर। "

गीतिका अपने कमरे में बैठी सोच रही थी, जिस महिला ने कभी उसको प्यार से एक थपकी भी नहीं दी, वह क्या बात करने के लिये बुला रही है?......गलतफहमी कैसे दूर करेंगी रजनी देवी?....सारी उम्र तो उन्होने गीतिका से सिर्फ नफरत ही की थी। जब से वह इस घर में आयी थी तब से ही। रजनी देवी ने एक नज़र प्यार से कभी गीतिका को देखा नहीं था आज तक, अब वह गलतफहमी दूर करने की बात करती हैं। रजनी देवी वह इंसान हैं जो बचपन में छोटी बच्ची गीतिका के दिये एक गिलास पानी को भी उसी के सामने फेंक दिया करती थीं और फिर वैभव या किसी नौकर से पानी मंगवा कर उसे दिखा कर पानी पीती थीं.....अब वह गलती सुधारने, गलतफहमी दूर करने की बात कर रही हैं.....कैसे?...और क्यों?

नंदन से इन सब चीज़ों पर गीतिका ने ज़्यादा बात नहीं की, और वैसे भी वह रजनी देवी से अपने सम्बंधों पर ज़्यादा बातें करती भी नहीं थी.

अगली शाम नंदन और गीतिका, अरुणा के साथ रजनी देवी के घर पहुँचे। रजनी देवी ने मुस्कुराकर कर कहा “तुम लोग बैठो, मैं चाय बनाती हूँ” ,फिर वह रसोई में चली गयी। गीतिका कुछ असहज ज़रूर थी लेकिन वह भी उनके पीछे-पीछे रसोई में आ गयी। वह मुस्कुराने की कोशिश कर रही थी लेकिन उसके चेहरे पर मुस्कुराहट नहीं आ पा रही थी। रसोई में एक तनावपूर्ण शांति छाई हुई थी। रजनी देवी ने फ्रिज में से दूध निकाला तो गीतिका ने सामने रखे बर्तन स्टैंड से पैन उठाया और रजनी देवी से दूध लेकर पैन में पलटने लगी। दोनो बिल्कुल चुप थे। रजनी देवी ने ही पहल की “कैसी हो गीतिका?” ,गीतिका ने धीरे से कहा “मैं ठीक हूँ , आप अपनी बताइये, आप कैसी हैं?”

“कैसा होना?....एक विधवा जिसका एकलौता लड़का भी नालायक निकल जाये, और लगभग न होने जैसा ही हो, उस औरत को कैसा होना?”

गीतिका चुप थी।

“सारी ज़िंदगी तुमसे नफरत ही की गीतिका मैंने....अगर तुमको भी बेटी की तरह प्यार दिया होता तो अज कम से कम ये सुकून रहता कि चलो, लड़का तो कमीना निकला लेकिन लड़की ज़रूर अच्छी और क़ाबिल निकली मेरी.....मेरे घाव पर कुछ मरहम लग जाता, लेकिन देखो गीतिका, मेरे हिस्से में वो राहत भी नहीं आई। "

गीतिका अभी भी सुन रही थी। दूध के सनसनाने की और अदरख कूटने की आवाज़ ही उस शांति को तोड़ रही थी।

“...इसीलिये बुलाया तुमको गीतिका, कि कम से कम ये एक रिश्ता सुधार सकूँ, बचा सकूँ मरने से पहले। "

दूध ऊपर आ गया था और चाय की पत्ती डाल कर आँच धीमी कर दी थी गीतिका ने। उसने कहा “आप जानती हैं कि मैंने कभी मेरी माँ को नहीं देखा.....लेकिन अपने दोस्तों की माँओं को देखा था मैने, .....मै हमेशा उस अनुभव से गुज़रना चाहती थी कि माँ का होना कितना सुखद होता होगा......और बड़ी उम्मीद से आपके अंदर वो छवि तलाशने की कोशिश की हमेशा, लेकिन शायद मेरी किस्मत मेरे दोस्तों जितनी अच्छी नहीं थी, और वो छवि मुझे आपके अंदर नज़र नहीं आयी। "

रजनी देवी की चाय अलग निकालकर, गीतिका ने फिर पैन में चीनी डाली और वापस आँच पर रखा।

“...लेकिन जब आपका फोन गया तो मुझे लगा कि ज़्यादा देर नहीं हुई है शायद...किसी भी अच्छी बात की शुरुआत जब भी हो जाये तब ही अच्छा है.....तकलीफ केवल ये थी कि पापा के रहते अगर ये हो जाता और वो भी ये देख लेते...। ", इतना बोलते हुए गीतिका रो पड़ी.

रजनी देवी ने उसके कंधों पर हाथ रखा और दुखी स्वर में कहा “कभी-कभी इंसान गलती करता जाता है और उसको इसका रत्ती भर इल्म भी नहीं होता...ऐसा ही शायद हुआ मेरे साथ। मैं ये बात समझ नहीं पायी कि पाठक जी और तुम्हारी माँ की गलती की सज़ा मैं तुम्हे क्यों दिये जा रही हूँ?.....तुम्हारी तो कोई गलती है ही नहीं इसमें.....अब मुझे लगता है कि ये इतनी सी बात क्यों नहीं जान पायी मैं?......इसलिये अब मैंने सोचा है कि मेरा जितना भी समय बचा है, मैं बोझ लेकर नहीं जीना चाहती......ईश्वर के आगे कहने को मेरे पास कम से कम कुछ तो हो, नहीं तो सारी ज़िंदगी मैंने अपने बेटे के गुनाहों पर पर्दा करने में काट दी....अपनी क़ाबिल बहू तक को उसी नालायक की भेंट चढ़ा दिया। अब इसे बदल सकूँ तो शायद मेरे हिस्से में कुछ पुण्य आ जाये। "

गीतिका ने 3 कप में चाय छानी और वे दोनों बाहर आ गये। वहाँ सोफे पर नंदन, अरुणा के साथ खेल रहे थे।

चाय पर बातें शुरु हुईं। वैभव के केस पर बात आनी ही थी।

रजनी देवी ने नंदन से कहा “नंदन, आप तो प्रॉपर्टी के बहुत बड़े कारोबारी हैं। यहाँ से दिल्ली तक आपको सभी जानते हैं न?”

नंदन मुस्कुराकर बोले “कारोबार तो ईश्वर की देन और बड़े बुज़ुर्गों का आशीर्वाद ही है मम्मी जी , और मुझे क्या पता कि मुझे कौन जानता है या नहीं?”

“फिर भी नंदन, आपका इतना बड़ा कारोबार बिना जान-पहचान के तो नहीं चल सकता है....ज़मीन, मुक़दमा, कोर्ट-कचहरी ये सब सुलझाना मज़ाक तो है नहीं आखिर। "

“काम अकेले ही थोड़ी होता है मम्मी जी, बहुत सारे लोग मिल कर काम करते हैं, कई सारे वकील, मैनेजर....इन के बगैर तो कुछ नहीं हो सकता। "

“फिर नंदन, आप कई नामी-गिरामी वकीलों को तो जानते ही होंगें” ,रजनी देवी ने पूछा।

“नाम से क्या मम्मी जी, जो वकील हमारा काम करवा दे, हमारे लिये तो वही वकील सबसे अच्छा। अब ये एक अलग की बात है कि हमारा काम कुछ बड़े, नामी वकील काफी कम समय में करवा देते हैं जो हर वकील नहीं करवा सकता। "

“तो सुनिये एक बात हमारी नंदन, वैभव के केस सुलझाने के लिये ऐसा ही कोई वकील मिल सकता है क्या?...आप तो कईयों को जानते होंगें?.....अब आपसे क्या छुपाना नंदन, हमारा एक ही लड़का है……लोगों के लिये लाख खराब हो, मगर है तो हमारा लड़का ही। अब इस पापी मन की बात है नंदन......हम न रहें फिर चाहे उसको कुछ भी हो जाये....लेकिन अपने आगे उसकी ये हालत देखी नहीं जाती नंदन.....कैसे भी करके कोई अच्छा वकील बताइये जो उसको बाहर निकलवा सके....अगर बरी न सही तो कम से कम ज़मानत तो दिलवा ही दे। " रजनी देवी ने अपने मन की बात रखी.

नंदन ने कहा “मैं कोशिश करता हूँ, लेकिन कोई गारंटी तो नहीं ले सकता.....वैभव पर कई लड़कियों ने बड़े संगीन इल्ज़ामात लगाये हैं आखिर। "

दुखी स्वर मे रजनी देवी बोलीं “आप कोशिश कीजियेगा नंदन…..एक बार अपनी तरफ से प्रयास करती हूँ मैं.....बाकी जो होगा वो तो होगा ही, कर्मों की सज़ा तो आदमी भोगता ही है....लड़का भोगेगा ही, उसके साथ साथ हम भी भोगेंगें…और क्या कर सकते हैं?”

रात का भोजन करने के बाद, नंदन और गीतिका अपने घर जाने के लिये बाहर आये और साथ में रजनी देवी भी आयीं। गाड़ी में जब सब बैठने लगे तो रजनी देवी ने नंदन से फिर कहा “देखियेगा नंदन, ध्यान दीजियेगा। " और फिर वह गीतिका के पास जाकर बोलीं “आते रहना बेटा घर, ज़्याद दिन रहना नहीं है मुझे.....ये सब ऐसी ही चला तो बुलावा जल्दी ही आयेगा। " गीतिका ने उनका हाथ पकड़ कर कहा “सब ठीक हो जायेगा मम्मी”, और फिर वे लोग रवाना हो गये।

गीतिका अपने घर पर कपड़े साफ कर रही कि नंदन की पैंट की जेब में उसे कुछ सामान लगा। निकाल कर देखा तो वह एक बड़ी महंगी और किसी नामी विदेशी ब्रांड की लिप्स्टिक थी। “इनकी पैंट में लिप्स्टिक?” गीतिका ने सोचा , और पैंट लेकर नंदन के पास गयी “नंदन , तुम्हारी पैंट से ये मिली, लिप्स्टिक....वह भी इतनी महंगी!.....क्यों लाये ये तुम?....मैने तो बोला नहीं था तुम्हे.....वैसे भी लिप्स्टिक वगैरह मुझे ज़्यादा पसंद नहीं है। " नंदन हैरान रह गये। फिर उन्होने गीतिका को हँसते हुए बताया “यार, ये तुम्हारे लिये ली थी....सरप्राइज़ गिफ्ट देने के लिये। "

“फिर भी...इतनी महंगी!!....इतना महंगा गिफ्ट देने की ज़रूरत नहीं थी तुमको। "

“यार ,अब मेरी बीवी ये तो डिज़र्व करती ही है” नंदन ने मुस्कुराते हुए कहा। “लिप्स्टिक नहीं पसंद है, ये मुझे पता नहीं था....आजकल तो लड़कियाँ लिप्स्टिक काफी पसंद करती हैं न, मुझे लगा कि तुमको भी ज़रूर पसंद होगी। फिर यार तुम हाईकोर्ट जाती हो, अब तो पार्टी प्रेसिडेंट भी हो.....तुमको हर जगह अच्छा और शानदार बन के जाना चाहिये.....इसलिये है ये....और फिर तुम्हारी प्रोफाइल के हिसाब से तुमको क्वालिटी पर ध्यान देना चाहिये, क़्वांटीटी पर नहीं न!!” ये कहकर नंदन ने हँसती हुई गीतिका को गले लगा लिया।

रसूलपुर निंदौरा मामले से नंदन काफी परेशान थे। यद्यपि वहाँ का धरना किसानों ने खाली कर दिया था जिस से नंदन की फौरी चिंता कम हो गयी थी परंतु चिंता समाप्त नहीं हुई थी क्योंकि मामले का कोई हल नही निकला था। नंदन अच्छी तरह जानते थे कि ये धरना की समाप्ति किसानों ने केवल पाठक जी और कृष्णा बाबू के सम्मान में, उनके आकस्मिक निधन से दुखी हो कर, अस्थाई तौर पर की है। राहत की बात ये भी थी कि विजय इस मर्डर केस में जेल में था, और अब तो केंद्रीय जाँच एजेंसी तहक़ीक़ात कर रही थी। विजय बाहर नहीं आ सकता था। मतलब ये कि किसानों को संगठित करने वाला व्यक्ति अब बाहर नहीं आ सकता था। फिर भी ये बात तो तय ही थी कि अगर अभी वहाँ भूमि अधिग्रहण से सम्बंधित कुछ भी किया गया, तो किसान फिर से भड़क उठेंगें और पूरा मामला फिर से चर्चा में आ जायेगा। लेकिन नंदन का फायदा तब था जब वहाँ कुछ काम आगे बढ़ता जिस से उनकी अपनी कम्पनी में 300 करोड़ के निवेश का रास्ता साफ होता। इसी उधेड़बुन में डूबे हुए नंदन अपनी कार सिविल लाइंस की सड़कों पर दौड़ा रहे थे। उनकी कार उस इलाके के एक बड़े मशहूर होटल “होटल राजनिवास” के गेट में दाखिल हुई।

‘होटल राजनिवास’ अकबराबाद का नामी होटल हुआ करता था। बड़े-बड़े नामचीन लोगों के रुकने की जगह हुआ करती थी वह। नंदन भी यहाँ काफी आते जाते थे क्योंकि यहीं पर वह अपने बिज़नेस से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बैठकें किया करते थे और कई महत्वपूर्ण क्लाइंट्स से भी मिला करते थे। यहाँ पर उनके नाम का एक सुइट हमेशा बुक रहता था। होटल का स्टाफ भी उनसे अच्छी तरह वाक़िफ था।

गाड़ी पार्क कर के वह होटल में दाखिल हुए और सीधे रिसेप्शन काउंटर पर पहुंचे, जहाँ वहाँ बैठे आदमी ने उनका अभिवादन किया। नंदन ने पूछा “गेस्ट आये क्या?”

“नहीं सर, अभी तक तो कोई नहीं आया”

“ठीक है, अगर कोई आता है तो रूम नं। 315 में भेज देना.....और भेजने से पहले एक बार फोन करके मुझे ज़रूर पूछ लेना”

“ओ.के सर”

फिर नंदन रिसेप्शन काउंटर के बगल में मौजूद होटल की लिफ्ट में दाखिल हुए और तीसरे तल पर पहुंचे, जहाँ उनका सुइट था।

थोड़ी देर बाद ‘होटल राजनिवास’ के आगे एक ऑटो आकर रुका। उसमें से एक बेहद सभ्य व सम्भ्रांत घर की दिखने वाली युवा महिला सिल्क की साड़ी पहने उतरी, ऑटो के पैसे दिये और होटल की पार्किंग से गुज़रती हुई, होटल की इमारत में दाखिल हुई और रिसेप्शन काउंटर पर पहुंची। उस से कुछ बात करने के बाद वहाँ बैठे आदमी ने एक फोन मिलाया “हैलो सर!...रिसेप्शन काउंटर से बोल रहा हूँ.....आपकी गेस्ट आयीं हैं कोई”

उधर से मर्दाना आवाज़ आयी “नाम क्या है?”

लड़के ने महिला से पूछा “मैडम, नाम आपका?”

उत्तर मिला “रंजना शर्मा”

“कोई रंजना शर्मा हैं सर” लड़के ने फोन पर कहा,

“ठीक है, भेज दो”

फिर लड़के ने उस महिला से कहा “मैडम, रूम नं। 315 में चले जाइये....ये बगल में लिफ्ट है” और फिर उसने एक दूसरे आदमी को कहा “मैडम को 315 तक छोड़ आओ। "

लिफ्ट से वह महिला तीसरे तल पर कमरा नं। 315 तक गयी और साथ आये आदमी को “थैंक यू” बोलते हुए वापस जाने का इशारा किया। वह चला गया। फिर उस महिला ने कमरे का दरवाज़ा खटखटाया, जिस पर अंदर से आवाज़ आयी “...खुला है, कम इन। "

वह महिला कमरे के भीतर दाखिल हुई और दरवाज़ा बंद कर दिया। सामने दूर वाली दीवार पर खिड़की थी जिस से नंदन बाहर सड़क की ओर विचारमग्न मुद्रा में देख रहे थे। महिला ने हँस कर कहा “क्या बेबी!!.....इतनी बेरुखी कि आज देखना भी नहीं इधर?”

नंदन ने बिना महिला की ओर मुड़े सिगरेट जलायी और खिड़की खोलकर धुआँ सड़क की ओर फेंकते हुए हताश स्वर में बोले “छोड़ो यार छाया...आई एम अपसेट......नथिंग इज़ वर्किंग। "

छाया नंदन के पास ही जाकर खड़ी हो गयी और नंदन के हाथ से जलती हुई सिगरेट अपने हाथ मे लेकर, उसे उंगलियों के बीच लगाकर एक लम्बा कश लिया, और धुआँ नंदन की ओर उड़ाते हुए मुस्कुरा कर बोली “कम ऑन यार नंदन.....इट्स ओ.के......जस्ट चिल.....इस से भी टफ सिचुएशन फेस की होगी बिज़नेस में तुमने कभी……..एण्ड यू आर ऑन टॉप......मतलब ये भी सॉल्व हो ही जायेगी। एवरीथिंग वुड बी फाइन। "

कैसा फाइन यार?....फाइन तो तब होगा जब कुछ काम बढ़ेगा आगे....यहाँ तो सन्नाटा पड़ा है सब......ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलता छाया......थ्री हंड्रेड क्रोर्स......एण्ड सो मच नेम एण्ड फेम फॉर द कम्पनी.......इट्स नॉट जस्ट बिग, इट्स ए ह्यूज डील छाया”

“अरे यार, तुम्हारी बीवी आज पार्टी प्रेसिडेंट है, कल को एम.एल.ए। होगी.....फिर कुछ टाइम के बाद एम.पी......सब जानते हैं कि उज्जवल सिंह केवल टाइमपास के लिये ही एम.पी। हैं,……पार्टी भी घर की खेती है, जीवन भर उसी की जेब में रहनी है, स्टिल यू आर पैनिकिंग?.....अरे आराम से रहो.....हो जायेगी डील तुम्हारी। "

“हाँ, मगर ये जल्दी होना होगा.....अगर देर हुई ज़्यादा तो फोटॉन इंफोटेक यहाँ से पैक-अप भी कर सकती है.....किसी और स्टेट में जा सकती है....वो इंवेस्टर हैं, हमेशा अपना फायदा ही देखेंगे”

नंदन ने बात जारी रखी “फिर एक दिक्कत और है.....वो ये है कि मैडम का भेजा है खराब, ....मतलब शी इज़ नॉट इंट्रेस्टेड इन जॉइनिंग एक्टिव पॉलिटिक्स ऑर बीइंग एम.एल.ए, ऑर एम.पी.....उसको केवल उन गरीब लोगों के लिये केस लड़ने और उन लोगों को न्याय दिलाने में ज़्यादा इंट्रेस्ट है, जो वह अभी तक करती आयी है....मतलब वही किसान, वही मजदूर....वही सब कुछ पुराना जैसा। पता है तुमको?...वो गयी थी 2-3 बार तुम्हारे प्रिय पति के साथ निंदौरा मोटरसाइकिल पर.....वहाँ पता नहीं क्या बात हुई या उस विजय ने क्या समझाया इसको, इसने वापस आकर कहा कि वे किसान सच बोल रहे हैं, और वो इसलिये धरना दे रहे हैं क्योंकि आई.टी पार्क बनने से उनकी ज़मीन, उनकी फसल चली जायेगी....और इसलिये वहाँ आई.टी. पार्क न होना ज़्यादा अच्छा है। केवल यही नहीं, मैडम ने कहा कि ये प्रोजेक्ट अकबराबाद में कहीं और शिफ्ट कर लो........अब बोलो छाया, बिज़नेस ऐसे होता है क्या?.....और ये बीवी है मेरी, इसको मेरा साथ देना चाहिये, और ये उन किसानों और उस विजय की बात सही बताती है। " 

दोनो चुप थे। नंदन ने छाया से सिगरेट वापस लेकर फिर लम्बा कश लिया और छाया की ओर देखते हुए कहा “....और बीवी से याद आया.....यार मरवाओगे तुम तो!!”

छाया ने पूछा “क्यों?....क्या हुआ?”

“यार पिछली बार तुमको गिफ्ट में देने के लिये जो लिप्स्टिक ली थी वो फॉरेन ब्रांड की.......वो पता नहीं कैसे मेरी पैंट की जेब में रह गयी और प्रॉब्लेम ये हुई कि कपड़े धोते वक़्त गीतिका ने वो लिप्स्टिक पकड़ ली”

“फिर?”

“फिर क्या?....अरे झूठ बोलना पड़ा यार.....कि उसी के लिये ली है....ये तो अच्छा था कि लिप्स्टिक बिल्कुल नई ही दिख रही थी, तो कोई प्रॉब्लेम नहीं हुई.....वरना तो मामला फंस जाता। "

छाया सिगरेट वापस लेकर लम्बा कश खींचते हुए मुस्कुराकर बोली “...तो ध्यान दिया करो ना......मेरा गिफ्ट मुझे तुरंत ही दे दिया करो......लाओ लिप्स्टिक इधर?”

“अब कहाँ से लाऊँ?....वो तो गीतिका के मेक-अप बॉक्स में चली गयी न” नंदन ने सिगरेट वापस लेते हुए कहा.           

“कोई बात नहीं, आइंदा से ख्याल करना” छाया ने हँसकर कहा और बिस्तर पर जाकर, अपना शरीर थोड़ा पीछे झुकाते हुए, आराम से और शरीर को अपने हाथों और कुहनी के बल टिकाकर बैठ गयी.

नंदन अभी भी खिड़की से बाहर देख रहे थे और सिगरेट फूंक रहे थे। उन्होने छाया से हँसते हुए पूछा “और क्या हाल है उसका....गज़ब का फंसाया है तुमने उसे?”

“कौन?.....वो चूतिया वैभव?....जहाँ उसको जाना था ,वहाँ चला गया डफर....मेरे ऊपर हमेशा से ही उसकी बुरी नज़र थी.....दोनों परिवारों में काफी अच्छी दोस्ती थी, तो उसको लगा कि मैं कुछ बोलूंगी नहीं और वो मुझे आसानी से काबू कर लेगा” छाया ने भी हँसकर जवाब दिया.

“अब तो बाहर आना मुश्किल है उसका बहुत.....बड़े सारे केस लग गये हैं उस पर” नंदन ने कहा.

फिर नंदन ने छेड़ते हुए पूछा “और मियाँ जी कैसे हैं?....मिलने गयी थी जेल?....जाओ थोड़ा मिल आओ”.

छाया ने कहा “हाँ, मैं गयी थी मिलने......अब भिखारी का क्या है?....जैसे घर में भिखारी....सड़क पर भिखारी, वैसे ही जेल में भिखारी......उसे भी अपनी बाकी उम्र जेल में ही काटनी है अब तो। बहुत बड़ा मुक़दमा चल रहा है उस पर , फिर अब तो केंद्रीय जाँच एजेंसी के हाथ में है केस। 2-3 बार तो ज़मानत की अर्ज़ी भी खारिज हो चुकी है उसकी। " फिर छाया ने कहा “एक बार तुम्हारी डील फाइनल हो जाये, फिर मैं और तुम दोनों डिवोर्स ले लेते हैं......फिर अपनी लाइफ सेट हो जायेगी आराम से.......भिखारी को मैं और ज़्यादा झेल नहीं सकती अब। "

फिर छाया ने कहा “वैसे यार नंदन, वो बुढ़िया ज़बरदस्त तेज़ निकली न?”

नंदन ने ठहाका मार कर कहा “हाँ, तेज़ तो है मगर तेज़ी चली नहीं.......बुलाया था मुझे कि बेटे को बाहर निकालने के लिये कोई नामी वकील खोज कर लाओ। "

“तो तुमने क्या कहा?”

“यही कहा कि देखते हैं”

“वकील ढ़ूंढ़ोगे तुम उसके लिये?”

“सवाल ही नहीं उठता.....तुम्हे क्यों परेशान करुंगा मैं”

छाया ने फिर एक शरारती मुस्कान के साथ कहा “सुनो......हम यहाँ फालतू टाईम क्यों वेस्ट कर रहे हैं?”

नंदन ने उसकी ओर देखा और उनके भी होठों पर कुटिल मुस्कान खेल गयी।


छाया अपने घर में ड्रेसिंग टेबल पर शीशे के आगे खड़े होकर, बाल बना रही थी और उसकी बेटी पीछे बिस्तर पर सो रही थी। बाल बनाते हुए उसके दिमाग में भी खयाल आ-जा रहे थे। वो नंदन को लखनऊ यूनिवर्सिटी के अपने दिनों से ही काफी अच्छी तरह जानती थी। दोनों ने साथ में बी.ए. और एम.ए. किया था, फिर नंदन एम.बी.ए. करने दक्षिण भारत चला गया था। लखनऊ यूनिवर्सिटी के दिनों में दोनो अच्छे दोस्त थे लेकिन इस से ज़्यादा ऐसा कुछ नहीं था उनमें। इत्तेफाक़ की बात थी कि पहले गीतिका की शादी नंदन से हुई फिर छाया की शादी विजय से। अपनी शादियों के बाद उनमे नज़दीकियां बढ़ने लगीं। ऐसा कई कारणों से हो सकता था लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण थी मानसिकता। दोनो ही ज़बरदस्त रूप से भौतिकवादी थे, और पैसे को ही दुनिया में सबसे अहम समझते थे। नंदन के पास तो जायज़ वजह थी कि वह एक बड़े अमीर घर का एकलौता लड़का था जिसे अपने घर का बिज़नेस ही सम्भालना था, लेकिन छाया के साथ ऐसा नहीं था। वह एक मध्यम वर्गीय परिवार से थी, लेकिन उसकी ख्वाहिशें बहुत ऊँची थीं। वह शुरु से ही किसी ऐसे ही घर में शादी करना चाहती थी जहाँ खूब पैसा और पहुँच की बात होती हो। इसीलिये जब कृष्णा बाबू के घर से रिश्ता आया तो वह शादी के लिये तैयार भी हो गयी थी। विजय के बारे में वह लगातार अखबारों, टी.वी. आदि से सुन ही रही थी, तो उसे लगा कि उसका जीवन भी ऐश्वर्य से भरपूर होने जा रहा है। लेकिन शादी के केवल 3-4 साल के अंदर छाया ज़मीन पर आ चुकी थी। लेकिन पाठक परिवार और मिश्रा परिवार में घनिष्ठता के कारण वह फिर से नंदन के सम्पर्क में आयी और यहाँ से वह फिर कल्पना की उड़ाने भरने लगी।

सहसा उसे लगा कि कोई उस से कुछ बात कर रहा है, उसे कुछ सुनाई दे रहा है। उसने महसूस किया कि शीशे के भीतर से उसका प्रतिबिम्ब ही कुछ कहने की कोशिश कर रहा था.

प्रतिबिम्ब हँसते हुए बोला “क्या रे छाया?.....कैसी औरत निकली तुम?.....अरे डायन भी एक घर छोड़ती है.....ये सब क्या किया तुमने?”

छाया ने कहा “क्यों?.....क्या किया मैंने?

“ये पूछो कि क्या नहीं किया तुमने?.....अपना चरित्र तक बेच दिया तुमने......इंसान का सबसे बड़ा गहना उसका चरित्र होता है.....वो तक खा डाला तुमने.....और वो भी औरत हो तुम तो.....अब तुम बताओ, तुम्हारे पास क्या बचा?”

हँसते हुए छाया बोली “ये पूछो कि मेरे पास क्या आने वाला है,……करोड़ों की सम्पत्ति मेरे कदमों में पड़ने वाली है.....मेरी मुराद पूरी होने वाली है, जब शादी करूंगी मैं नंदन से.......और किस चरित्र की बात कर रही हो तुम?...वो चरित्र किस काम का जो सुख और समृद्धि न दे सके, जो घुट-घुट कर जीने को मजबूर कर दे?”

“क्यों?....क्या कमी है तुमको?.....विजय जैसा लाखों में एक पति है तुम्हारा....और वो पार्टी में आगे की तरफ बढ़ भी तो रहा ही है न?.....ज़्यादा दिन नहीं लगेंगे छाया, वह विधायक तो ज़रूर बन जायेगा..। "

“कुछ नहीं बनेगा कभी भी वो!” छाया बीच में ही उसकी बात काटते हुए चीख कर बोली “कभी कुछ नहीं बन सकता वो......जो कुछ बनना होगा वो वैभव या फिर गीतिका ही बनेंगे....विजय के हिस्से कुछ नहीं आना है। "

“तो इसीलिये तुमने वैभव को अपने इशारे पर नचाया न?”

“हाँ, इसीलिये किया मैंने ऐसा......लेकिन मुझे क्या पता था कि पार्टी मीटिंग में उसका कोई नाम तक लेने वाला नहीं होगा.....मुझे तो लगा था कि बाप की पार्टी है, अपने घर की फसल है.....उसी को फायदा होगा, लेकिन ऐसा नतीजा निकलेगा, ये नहीं पता था। "

“फिर?”

“फिर क्या?....सबसे ज़्यादा फायदा तो उस अनाथ गीतिका को हुआ.....लेकिन अच्छी बात ये थी कि नंदन की शादी गीतिका से हुई थी और नंदन तो मेरा पुराना दोस्त है....फिर हमारी सोच भी एक जैसी ही है......एम.एल.ए. का पति है वो, कल को उसकी बीवी एम.पी. होगी.....300 करोड़ की इतनी बड़ी इनवेस्टमेंट भी उसकी कम्पनी में आ रही है.....और एक मेरा पति, अव्वल दर्जे का भिखारी.....सोशल सर्विस के चक्कर में इसे कोई होश नहीं है कि इसका भी परिवार है और समय के साथ साथ परिवार की ज़रूरतें बढ़ती ही जाती हैं....इसके लिये इसके आदर्श, इसकी सोच ही सब कुछ है और जिसमे मेरे, मेरी बेटी के लिये कोई जगह नहीं है। जगह है तो सिर्फ उन गरीब किसानों, मज़दूरों, बेसहारा लोगों के लिये जिनको सहारा देते-देते ये आदमी हम लोगों को बेसहारा करने पर आमादा है। "

लेकिन नंदन अपनी बीवी को क्यो छोड़ेगा?....जब वो एम.एल.ए., एम.पी. बनेगी तो नंदन का फायदा तो उसी के साथ रहने मे है न?....वो तुम्हारे पास क्योंं आयेगा?”

“क्योंकि उसकी बीवी भी वैसे ही है जैसे मेरा पति……..उसी सोशल सर्विस के कीड़े ने काट रखा है उसे भी। उसकी इसी मानसिकता की वजह से निंदौरा का प्रोजेक्ट मे भी नंदन की मुश्किल आसान नहीं हो रही है। अगर वह सच में अपने पति का भला चाहती तो उसका साथ देती न कि धरने पर बैठने वालों का.....नंदन इस कारण भी दुखी है। पाठक जी जब तक ज़िंदा थे, गीतिका के पीछे काफी सपोर्ट था, अब उसके पीछे कोई नहीं है.....रजनी देवी पर कोई भरोसा गीतिका नहीं कर सकती.....इसलिये अब गीतिका को झटका देना आसान है और वो कुछ नहीं कर पायेगी। ये डील फाइनल होने के बाद हम दोनो, मैं और नंदन तलाक़ लेंगे और शादी कर के नई, ज़्यादा बेहतर ज़िंदगी जिसमे भिखारियों और गरीबों की जगह नहीं होगी, शुरु करेंगे। "

“लेकिन याद रखना छाया, ये जो भी तुम कर रही हो, बहुत गलत है ये.....ईश्वर सब देखता है....और हर इंसान को अपना कर्मफल इसी दुनिया में, इसी जन्म में भोगना ही पड़ता है.....तुम भी और नंदन भी इस से बच नहीं सकते। विजय और गीतिका जैसे इंसानों को इतना कष्ट देते हुए तुम लोगों को शर्म नहीं आती?.....कैसे सोती हो तुम रात में चैन से?”

“मुझे मत बताओ क्या सही है और क्या नहीं,…..नैतिकता का ये भाषण मुझे मत सुनाओ......मैं पहले ही ये सब विजय के मुँह से काफी सुन चुकी हूँ, लेकिन इसका कोई लाभ कभी होते देखा नहीं मैंने। विजय जैसा इंसान जो कभी चींटी तक नहीं मार सकता, तुम्हे लगता है कि वो क़त्ल करेगा वो भी पाठक जी और अपने ही पिताजी का?......लेकिन देखो, जेल में सड़ रहा है वो.....गुनाह किसने किया?.....सज़ा किसको मिल रही है?.....यही है क्या कर्मफल?.....मुझे पता है कि मै क्या कर रही हूँ, मुझे मत समझाओ। "

“फिर भी छाया, नंदन व्यापारी है। व्यापारी केवल मुनाफा देखता है......मैं सावधान कर रही हूँ तुम्हें.....दोबारा मत कहना कि मैंने बताया नहीं”

तभी पीछे बिस्तर पर लेटी छाया की बेटी सो कर उठ गयी और रोने लगी, यह देख कर छाया को अचानक होश आया और जल्दी से बाल बनाकर वह अपनी बेटी के पास चली गयी।


इस बीच चुनाव आयोग द्वारा उत्तर प्रदेश की लोकसभा तथा विधानसभा की खाली हुई सीटों पर उप-चुनावों की नोटिस जारी की जा चुकी थी और लगभग 10 दिन बाद नामांकन दाखिल होने की प्रक्रिया शुरु होनी थी। करीब एक महीने के अंदर ही पूरी चुनाव प्रक्रिया सम्पन्न होनी थी और क्षेत्रों को उनके सांसद और विधायक मिल जाने थे। 

एक और दिन कपड़े धोते समय नंदन की शर्ट की जेब से गीतिका को एक पुखराज जड़ी हुई सोने की कीमती लौंग मिली। गीतिका महिला थी और रत्न व आभूषण की बेहतर समझ रखती थी। लौंग को ढंग से देखने के बाद वह जान गयी कि यह काफी पुरानी और काफी बार इस्तेमाल की हुई लौंग है। नया सोना नहीं था वह। अब अगर कोई ये कहे कि कोई बड़ा और नामी व्यापारी जिसकी गीतिका जैसी पत्नी हो और पाठक जी जैसा ससुर, वह अपनी बीवी को काफी पुराना, किसी और का इस्तेमाल किया सोने का आभूषण देगा, तो यह बात गले नहीं उतरती। लिप्स्टिक जब मिली थी तब गीतिका ने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया था, मगर अब वह सोच रही थी और सोचते-सोचते दुख के सागर में गोते लगा रही थी। उसका मन खिन्न हो चुका था। लेकिन उसने फैसला किया कि वह नंदन से कुछ नहीं कहेगी।

विजय की एक और पेशी हाईकोर्ट में हुई थी , इस बार भी उसको ज़मानत नहीं मिल पायी थी, क्योंकि इस बार भी पुलिस और केंद्रीय जाँच एजेंसी ने ऐसा करने का विरोध किया था। लेकिन इस बार अदालत ने सख्त टिप्पणी की थी कि पुलिस और केंद्रीय जाँच एजेंसी लगभग 4-5 पेशियों के बाद भी आरोप तय नहीं कर पायी हैं जिस पर मुक़दमा चलाया जा सके। अगर यही स्थिति रही और आरोप तय नहीं किये जा सके तो अदालत विजय को सशर्त ज़मानत देने पर गम्भीरता से विचार कर सकती है.


एक रात नंदन रात के भोजन के बाद अपने घर पर बने अपने छोटे से ऑफिस में अपना कुछ काम निपटा रहे थे। गीतिका उनके लिये चाय लेकर गयी। नंदन ने मुस्कुरा कर चाय रखने का इशारा किया। गीतिका चाय रख के वापस जाने लगी और कमरे का दरवाज़ा बंद किया। ठीक उसी समय नंदन की मेज पर रखा फोन बजने लगा। गीतिका बंद दरवाज़े के बाहर ही बिल्कुल चुप-चाप खड़ी हो गयी। नंदन ने फोन उठाया “हैलो!......हाँ छाया, बोलो.....नहीं....ऐसा तो कुछ नहीं है....हाँ....बिल्कुल.....ठीक-ठीक....तुम चिंता मत करो न......मैं देखता हूँ....अरे ज़मानत मिलना इतना आसान नहीं है इस केस में.....विजय बाहर नहीं आ पायेगा ......हाँ....ठीक....ओ.के......ओ.के.......अरे लिप्स्टिक से भी ज़्यादा अच्छा गिफ्ट मिलेगा तुमको यार.....लिप्स्टिक तो तुम्हारे आगे कुछ भी नहीं.....ओ.के। डियर , गुड नाइट। "

गीतिका के पैरों की नीचे से ज़मीन खिसक गयी। तो ये छाया है?....विजय की पत्नी छाया?.....जिस पर विजय इतनी जान छिड़कता है, वह छाया?......गीतिका दुख के मारे पागल हो रही थी लेकिन दरवाज़े के पास खड़े हुए उसने अपने मुँह पर कस के हाथ रखा और किसी तरह खुद को सम्भाला। फिर वह वहाँ से अपने कमरे मे चली गयी।


दो दिन बाद शाम की चाय के वक़्त गीतिका ने नंदन से कहा “मैं सोच रही थी कुछ दिन से कि माँ के घर रह आऊँ कुछ दिन....अरुणा अपनी नानी से भी घुल-मिल जायेगी, वैसे भी नानी के यहाँ यह कभी रही नहीं हफ्ता-दस दिन......फिर मैं भी मम्मी के साथ थोड़ा ज़्यादा वक़्त बिता लूंगी....वह बिल्कुल अकेली हैं अब। फिर चुनावों की तारीख भी तय हो चुकी है, मैं जानती हूँ कि मेरे लिये काम का बोझ बढ़ने वाला है अब......जबकि राजनीति में इस प्रकार की सक्रियता मैं कभी नहीं चाह्ती थी। पापा के जाने के बाद मेरी मजबूरी है कि ये सब मुझे करना पड़ेगा.....तो मैं अपने मायके रहकर यह काम ज़्यादा अच्छा कर लूंगी। " नंदन ने तुरंत ही गीतिका को “हाँ” कर दी।

अगले दिन ही गीतिका, अरुणा को लेकर रजनी देवी के घर पहुँच गयी। उसको अरुणा के साथ देख कर रजनी देवी को काफी खुशी हुई.


पाठक जी की हत्या के बाद से कुछ महीनों से ग़ीतिका इसी उधेड़बुन में थी कि अपने पुराने दोस्त विजय से जेल जाकर मिला जाये या नहीं। कुछ महीने पहले तक जो सभी की आँखों का तारा था, और जिस पर गीतिका को हमेशा गर्व होता था, वही इंसान आज गीतिका के पिता, प्रदेश की राजनीति के श्लाका पुरुष पाठक जी, और खुद अपने पिता की हत्या के आरोप में जेल में बंद था, और गीतिका ने यह तय किया था कि कुछ भी हो, वह विजय से मिलने नहीं जायेगी और कैसे भी करके वह विजय को कठोर से कठोर सज़ा दिलवा कर रहेगी। लेकिन अब गीतिका के मन में यह बात आ ही रही थी कि वह विजय से जाकर मिले। नंदन और छाया की असलियत समझ लेने के बाद गीतिका के दुख का कोई ठिकाना न था, और उसको ये भी लगता था कि विजय को भी छाया की इस सच्चाई का पता नहीं होगा, इस वजह से भी वह विजय से मिलना चाहती थी। लेकिन अपने बाप के हत्यारे से कैसे मिलेगी वो?...और क्या बात करेगी उस से?...इसी उलझन में पड़ी हुई गीतिका ने अंतत:, विजय से मिलने का फैसला किया लेकिन यह भी तय किया कि वह छाया से जुड़ी कोई भी बात विजय से नहीं करेगी।

जेल में विजय को बताया गया कि उस से मुलाक़ात करने कोई दोस्त आया है। बैरक से निकलकर विजय उस जगह पहुँचा जहाँ लोग अपने मिलने आने वालों से मिला करते थे। वह एक बड़ा सा हॉल था जहाँ कई सारी मेजें रखी थीं और हर मेज के दोनो ओर दो कुर्सियाँ रखी थी, उन्ही पर बैठ्कर कैदी और मिलने आने वाले लोग बातें करते थे। विजय को वहाँ तैनात सिपाही ने एक मेज की तरफ इशारा किया और कहा “आधे घंटे का वक़्त है केवल। " विजय ने देखा तो वहाँ गीतिका सिर नीचे किये हुए विचारमग्न मुद्रा में बैठी थी। विजय वहाँ पहुँचा और गीतिका के सामने वाली कुर्सी पर मेज के दूसरी ओर बैठा। दोनो बिल्कुल चुप बैठे थे और बात शुरु करने के लिये शायद अपने मन में शब्द की तलाश कर रहे थे. “कैसी हो गीतिका?” हिम्मत करके विजय ने पूछा.

गीतिका ने नज़र उठाकर उसकी ओर देखा और कहा “ठीक हूँ....तुम बताओ”

गीतिका ने देखा कि विजय उसको देख रहा था. गीतिका को थोड़ा ताज्जुब हुआ कि इस आदमी की हिम्मत देखो.....मेरे बाप और अपने बाप की भी हत्या करके भी इसके चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं है....ये यहाँ बैठा सीधे मुझे देख पा रहा है. कितना बेशर्म और बेहया इंसान है?

विजय ने कहा “तुम्हारे आगे ही बैठा हूँ, खुद ही देख लो”

“देख रही हूँ.....ग्रेजुएशन से ही देख रही हूँ विजय.....ये कभी नहीं सोचा था कि ऐसे भी देखूंगी.” गीतिका ने तंज़ किया.

“तो मतलब तुमने भी वही मान लिया है जो बाकी लोग कह रहे हैं” विजय ने कहा

“लालच इंसान को क्या से क्या बना देता है विजय, उसकी तुमसे बेहतर बानगी कोई नहीं हो सकता है.....हैवान हो गये तुम विजय सिर्फ एक असेम्बली सीट का टिकट न मिलने की वजह से?.....ग्रेजुएशन में तो क्या बड़ी-बड़ी बातें करते थे तुम?”

विजय खामोशी से सुन रहा था.

“विजय तुम मुझसे कह कर देखते एक बार, मैं खुद ही हट जाती तुम्हारे रास्ते से...”

विजय ने उसे बीच में ही रोका और कुछ क्षुब्ध होकर कहा “...सुनो गीतिका, मैं नहीं बोल रहा हूँ इसका ये मतलब नहीं है कि मैं बोल नहीं सकता”

गीतिका चुप हो गयी.

“मुझे इस पार्टी से कभी कुछ नहीं चाहिये था....न असेम्बली सीट, न लोकसभा सीट, न पार्टी अध्यक्ष पद,  न प्रचार समिति का अध्यक्ष पद....मुझे कुछ नहीं चाहिये था. मुझे सिर्फ एक इच्छा थी कि जो काम मैं पसंद करता हूँ…..गाँवों में जाना, लोगों से मिलना, बात करना, वह मुझे करने दिया जाये, और घर चलाने के लिये जो पार्टी ठीक समझती हो, वह पैसे मुझे दे दिये जायें क्योंकि परिवार मेरा भी है आखिर. और ये सभी कुछ हो ही रहा था. पार्टी या तुम्हारे पिताजी से नाराज़ होने का मेरे पास कोई कारण न तब था, न अब ही है. कुछ भी नहीं किया है मैंने.......इतना समय हो गया, 5-5 पेशियाँ हो चुकीं, पुलिस और सेंट्रल एजेंसी आरोप तक नहीं तय कर पायी हैं मेरे खिलाफ.......और ये मत भूलो गीतिका, मैंने भी अपना बाप खोया है.”

गीतिका सुन रही थी. विजय भी बोलकर चुप हो गया था.

“फिर भी अगर तुम्हे लगता है कि मैं ही कसूरवार हूँ, तो यह तुम्हारा दृष्टिकोण है.....मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता. मैं केवल यही कह सकता हूँ कि मैं भी उस समय का इंतज़ार ही कर रहा हूँ, जब शायद मैं तुम्हे और बाकी दुनिया को कुछ समझा सकूँ.”

दोनो चुप-चाप बैठे थे, तभी सिपाही ने आकर कहा “हो गया टाईम, चलिये अब”

गीतिका ने अपना बैग उठाते हुए कहा “मैं चलती हूँ.....इलेक्शंस हैं कुछ दिनों में.....काफी काम है”

“तो मिलने नहीं आना चाहिये था” विजय ने बेरुखी से कहा.

गीतिका थोड़ी देर के लिये हतप्रभ रह गयी. विजय उठा और कमरे से बाहर जाने लगा. गीतिका सोच रही थी कि विजय एक बार मुड़ के देखेगा ज़रूर लेकिन विजय ने गीतिका को नहीं देखा, वह सीधे ही कमरे से बाहर निकल गया.

गीतिका जेल से वापिस आकर अपने घर में, अपने कमरे में बैठी सोच रही थी “क्या सच में विजय ने नहीं किया ये?....वो मेरी आंखों में देख कर बात कैसे कर ले रहा था?.....अगर विजय ने नहीं किया तो इन सबका ज़िम्मेदार कौन है?”


तयशुदा तारीख पर चुनाव सम्पन्न हो गये और 3 दिन बाद ही मतगणना शुरु हो गयी. अगले दिन लगभग दोपहर 12 बजे तक सभी नतीजे आ गये थे. इन से किसी को कोई हैरानी नहीं हुई थी कि प्रदेश की सभी खाली सीटों के उप-चुनावों में श्रमशक्ति पार्टी की ही विजय हुई थी. और ये तो होना भी था ही, पाठक जी और कृष्णा बाबू की मौत से उपजी सहानुभूति सबसे बड़ा कारण थी जिसके साथ ही गीतिका का व्यक्तित्व व उसकी क्षमताएं भी एक अहम कारक थी. विपक्षी दलों ने भी इस चुनाव का नतीजा तय जानकर ज़्यादा प्रयास नहीं किया था. अब गीतिका विधायक थी और शपथ लेने लखनऊ जाने वाली थी.


अपने मायके में, अपने कमरे में जगह और वक़्त पा कर, गीतिका अक्सर चुपके से रोया करती थी ,जिस से रजनी देवी उसे देख ना पाये. गीतिका नंदन की सच्चाई और अपनी नियति से अभी तक सामना नहीं कर पायी थी. उसको यकीन भी नहीं था कि बीवी, बच्चों वाला आदमी जिसका पारिवारिक जीवन इतना सुखी प्रतीत होता है, वह इतना नीचे भी गिर सकता है. गीतिका अक्सर सोचती थी कि आखिर उस से ऐसी भी क्या गलती हुई कि नंदन को ऐसा करने की ज़रूरत पड़ी?.....उनकी शादीशुदा ज़िंदगी तो बहुत अच्छी बीत रही थी. वैभव और बीना जैसा तो कुछ भी नहीं था उनके बीच.....फिर ये तकलीफ उसी के हिस्से में क्यों आयी? यही सब सोचकर वह काफी दुखी रहती थी और अकेले में रोया करती थी. उस दिन जब लखनऊ से शपथ लेकर वापस आयी तो शाम को इसी तरह से रो रही थी. वह अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करना भूल गयी थी और इसी बीच रजनी देवी ने उसे रोते हुए देख लिया और तुरंत कमरे में आयी. उन्होने गीतिका को गले लगाते हुए प्यार से पूछा “क्या हुआ गीतिका?.....ऐसी रो क्यों रही हो तुम?”

फिर गीतिका ने जो कुछ बताया, रजनी देवी के होश उड़ गये. नंदन ऐसे हो सकते हैं, इस से कहीं ज़्यादा आश्चर्य उन्हे ये सोच कर हो रहा था कि कोई औरत ऐसी कैसे हो सकती है?......पहले वैभव, और अब नंदन!!....ये छाया किस मिट्टी की बनी हुई इंसान है?

उन्होने गीतिका को चुप कराया और कहा “बेटा, तुम नंदन को फोन करो और उनको यहाँ बुलाओ.....मैं बात करूंगी उनसे और समझाऊंगी कि जिस रास्ते पर वो जा रहे हैं, वह केवल बरबादी की ओर ले जाता है....उस औरत का कोई भरोसा नहीं है......कल को हम यह भी खबर सुन सकते हैं कि छाया ने नंदन पर भी वैभव की तरह आरोप लगाते हुए मुक़दमा दायर कर दिया है.....नंदन को रोका जाना ज़रूरी है. मेरा घर तो बर्बाद हुआ ही, अब बेटी का घर मैं बरबाद नहीं होने दूंगी. नंदन से बात करके उनको यहाँ बुलाओ.

गीतिका ने नंदन को फोन किया. तब नंदन अपने दफ्तर में थे. जब नंदन ने वहाँ आने की वजह पूछी तो गीतिका फोन पर ही फट पड़ी “नंदन ,तुम्हारी असलियत जान चुके हूँ मैं, और मैंने मम्मी को भी बता दिया है.....अब तुम मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते, बहुत बन चुकी मैं”

“क्या मतलब?....क्या बोल रही हो गीतिका तुम?” नंदन ने अंजान बनते हुए कहा.

गीतिका फफक कर रो पड़ी “अच्छा!!.....वह महंगी लिप्स्टिक…..वह क्या तुम मेरे लिये लाये थे? गिफ्ट देने के लिये?.....पुखराज जड़ी सोने की एक पुरानी लौंग भी मुझे मिली नंदन तुम्हारी शर्ट की जेब से....क्या वह भी मुझे गिफ्ट देने के लिये लाये थे तुम?.....तुम्हारी और छाया की फोन पर भी बातें सुनी है मैंने नंदन....अब तुम और झूठ नहीं बोल सकते नंदन.....मेरे भरोसे का खून किया है नंदन तुमने. तुम्हारी बीवी है, तुम्हारी बेटी है....तुमने थोड़ा भी नहीं सोचा?.....कितने घटिया इंसान निकले तुम नंदन!!........नरक में भी जगह नहीं पाओगे तुम!....तुम यहाँ आओ और मुझसे और मम्मी से मिलो.” फिर गीतिका ने फोन रख दिया.

नंदन बिल्कुल चुप-चाप बैठे थे. उनका राज़ फाश हो चुका था. कुछ सोचते हुए उन्होने छाया को फोन मिलाया. "हैलो!" छाया ने फोन उठाया.

नंदन तनाव में थे "छाया, तुमसे मिलना है शाम को...अर्जेंट है कुछ. तुम घर आ जाओ प्लीज़ 6 बजे."

"क्या हुआ नंदन? परेशान लग रहे हो?"

"हाँ कुछ बात है, फोन पर नहीं करुंगा, घर आ जाओ तुम" और नंदन ने फोन रख दिया.

शाम को अपनी बेटी के साथ छाया नंदन के घर पहुँची तो नंदन ने सारी बात सुनाई. छाया ने कहा "मैं हमेशा से जानती थी कि एक दिन ऐसा ज़रूर आयेगा जब हमें गीतिका का सामना करना पड़ेगा. अकबराबाद जैसे छोटे से शहर में चोरी से, छुप-छुप कर ज़्यादा समय तक मिला नहीं जा सकता....ये तो होना ही था."

"वो सब तो ठीक है लेकिन करना क्या है, ये बताओ" नंदन ने कहा.

"करना क्या है?....चल के मिलना होगा माँ-बेटी से, और सीधे बात करनी होगी....और तुम अकेले ही नहीं जाओगे, मैं भी चलूंगी तुम्हारे साथ.....जब पता चल ही चुका है सब तो छिपने का फायदा नहीं है. फिर रजनी देवी की अकड़ निकालने का, उनको नंगा करने का इस से अच्छा मौका नहीं मिलेगा. कोई ऐसा वक़्त तय करो कि जब मेरी बेटी स्कूल में हो....उस समय चलते हैं." और इस तरह से इस मुलाक़ात का समय तय किया गया.


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