Swati Roy

Tragedy

5.0  

Swati Roy

Tragedy

शो पीस

शो पीस

2 mins
330


आज फिर मंजरी लड़खड़ाते हुए गाड़ी से उतरी और किसी तरह अपने फ्लैट के सामने पहुंची। आज किसी नीले रंग की गाड़ी वाले ने छोड़ा था उसको घर तक। किसी तरह चाबी निकाल ताला खोलने की कोशिश ही कर रही थी कि समर ने अंदर से दरवाज़ा खोल दिया। गुस्से से उसकी आंखें लाल हो गयी थी मंजरी को उस हालत में देखकर। लेकिन जब तक वो कुछ कहता मंजरी बेसुध बिस्तर के कोने पर लुढ़क चुकी थी। अगले दिन तकरीबन दस बजे मंजरी की नींद खुली, उसका सर दर्द से फट रहा था। उसे उठा देख समर उस पर भड़क उठा, "बहुत बर्दाश्त कर लिया मैंने लेकिन अब और नहीं करूंगा। कोई जरूरत नहीं है नौकरी करने की, कल ही इस्तीफा दो और घर पर बैठो।"

मंजरी ने सपाट नजरों से समर को देखा और कहा, "नौकरी तो मैं छोड़ने से रही समर।"

"मतलब, तुम कहना क्या चाहती हो? तुम्हें क्या लगता है कि मैं नहीं समझता तुम्हारा यूं हर दो-तीन दिन बाद देर रात नशे में घर आने का मतलब। अब तुम घर पर ही रहोगी बस।" 

"अपने मतलब के लिए तुमने मुझे हमेशा कठपुतली की तरह नचाया है समर।

कभी नीली तो कभी लाल रंग की साड़ी में मुझे सजा कर बहुत दाएं-बाएं घुमाया है। मैं सब समझती थी तुम्हारे टूर पर जाते ही क्यों तुम्हारा वो बॉस घर पर आ धमकता था। क्यों पार्टी में मुझे अकेले छोड़ तुम काम का बहाना बना गायब हो जाते थे। सोचना तो तुम्हें तब चाहिए था जब मुझको सीढ़ी बना कर तुमने अपनी प्रमोशन हासिल की थी। बहुत इस्तेमाल कर चुके तुम मेरा, अब और नहीं। अब मैं निष्चित करूंगी की मेरी डोर कब, कैसे और कोई क्यों खींचेगा।" कहते हुए मंजरी उठ खड़ी हुई और समर भावशून्य सा घर की दीवार पर सजी कठपुतली को देखता रहा।


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