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शक्ति और अधिकार

शक्ति और अधिकार

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कलेक्टर के पद पर विशाल की नियुक्ति को आज एक साल पूरा हो गया था। इस उपलक्ष्य में आज उसने अपने घर पर एक पार्टी रखी थी। शाम को अपना काम समाप्वत कर वह अपनी लाल-बत्ती वाली औद्योगिक वाहन में वापस घर जा रहा था। उसकी कार एक ट्राफिक सिग्नल पर रूकी। उसने देखा कि सड़क के किनारे भीड़ लगी हुई थी। भीड़ के बीच में खड़े होकर कोई नेता भाषण दे रहे थे।

नेताजी को देखकर विशाल को एकाएक अपने स्वर्गवासी पिता श्री रामशरण जी का स्मरण हुआ। उन्होंने अपना सारा जीवन जन-कल्याण के कार्यों में संलग्न रहकर व्यतीत किया था। परन्तु अपनी एड़ी-चोटी का बल लगाकर भी वे कोई सुधार न ला पाए क्योंकि उनके पास अधिकारों की शक्ति नहीं थी। इसी कारणवश वे आम आदमी की भलाई के लिए कुछ भी कर पाने में असमर्थ थे। उनका यह मानना था कि अधिकार तो लाल-बत्तियों वाली कार में घूमने वाले अफ़सरों के पास होते हैं। वे लोग ही देश के आम नागरि

कों के जीवन-स्तर में कोई बड़ा परिवर्तन ला सकते है। और देश को प्रगति-पथ पर अग्रसर कर सकते हैं। इसलिए उन्होने अपने पुत्र विशाल को सिविल सर्विस के लिए प्रेरित किया।

जैसे ही विशाल की कार आगे बढ़ी उसने ने ठण्ड़ी साँस ली। आज वह बड़े पद पर बैठा अफ़सर है। अच्छी-खासी आमदनी है। जहाँ से भी गुज़रता है लोग आदरपूर्वक उठ कर उसे सलामी देते हैं। लाल-बत्ती वाली राजकीय कार में बैठने का गौरव उसे प्राप्त है। परन्तु शक्ति तो उसके पास भी नहींं हैं। कहने को अधिकार तो हैं उसके पास परन्तु जन-कल्याण के लिए उन अधिकारों का उपयोग करने की स्वतन्त्रता नहीं है। वह तो मात्र उन लोगों के हाथों में एक कठपुतली बन कर रह गया है जिन्हें केवल सत्ता का लोभ है। विशाल आज तक यह नहीं समझ पाया की वह अपने पिता को कैसै समझाए की वह तो उनसे भी अधिक विवश है। उसके पास सारे अधिकार ज़रूर है परन्तु कुछ भी करने की शक्ति नहीं।


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