शक
शक
संध्या पंकज से बहुत प्यार करती थी । पर पंकज की हमेशा शक करने की और कमियाँ निकालने की आदत उसे बहुत ही खलती थीं । कमियाँ निकालना भी वह सह जाती थी। पर शक ... दीमक की तरह उसके मन के कोमल भावों की खत्म करता जा रहा था। एक दिन इसी गरमा - गरमी में संध्या ने पंकज से कहा कि जब भगवान राम ने भी सीता जी पर शक किया तो उन्हें भी सीता जी से वियोग झेलना पड़ा । अगर तुम विश्वास नहीं कर सकते तो हमारा जुदा होना भी हम दोनों के लिए अच्छा है । इतना कहकर संध्या घर से निकल गई ।
