शिक्षा और संगठन
शिक्षा और संगठन


उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में एक गाँव था "कासना"। उस गाँव में प्रायः सभी जातियों के लोग रहते थे परन्तु उनमें जमींदारों का वर्चस्व था। ग्राम प्रधान भी सदैव इन्ही में से कोई बनता था तथा वे राशन कोटा भी अपने ही किसी आदमी को देते थे। फलस्वरूप गाँव के गरीब तबके के लोग न तो सही से राशन पाते थे और न ही विकास योजनाओं का लाभ ले पाते थे। ये लोग इन्ही जमींदारों के खेतों पर काम करते थे और इनकी औरतें उनके घरों में काम करती थीं। इसका सबसे बड़ा कारन था की गरीब तबके में कोई भी व्यक्ति पढ़ा-लिखा नही था और इसीलिए ये गाँव आस-पास के गाँवों से काफी पिछड़ा था। इन्हीं में से एक ज़मींदार का मुंशी "राम दरस" पढ़ा-लिखा था।
वो आता तो निचले तबके से था लेकिन शिक्षा का महत्व जानता था। एक दिन जमींदार ने राम दरस को हिसाब में गड़बड़ी का हवाला देकर काम से निकाल
दिया।
उसके अभिमान को भारी आघात लगा। राम दरस ने निश्चय किया की वह अपने गाँव को विकसित करके इन ज़मींदारों को उचित सबक सिखाएगा। ग्राम प्रधान के चुनाव को अभी एक साल था और इस बार निचले तबके की भी सीट आयी थी। राम दरस ने घर-घर जाकर लोगों को शिक्षा का महत्व समझाया और संगठित किया। जमींदारों ने पैसे, शराब आदि का लालच देकर लोगों को अपनी ओर करने का प्रयास किया लेकिन गाँववाले उनकी चाल से भली-भाँती परिचित थे। फलस्वरूप राम दरस की विजय हुई। उसने गाँव में अनेक विकास कार्य कराए। प्राथमिक विद्यालय खुलवाया। राशन का उचित प्रबंध किया। इस प्रकार अन्य गाँवों की तरह "कासना" भी उन्नत और खुशहाल हो गया।
कहानी का सार- समाज में किसी भी प्रकार का बदलाव लाने के लिए एक मुखिया की आवश्यकता होती है जो समाज को शिक्षित एवं संगठित करने का प्रयास करता है।