शीर्षक_"पाषाण नहीं हूं मै"

शीर्षक_"पाषाण नहीं हूं मै"

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रवि की शानदार आवाज में वह मदहोश हुई जा रही थी। सोसाइटी का दुर्गा उत्सव समारोह चल रहा था सभी रहवासी अपनी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहे थे।रवि गा रहा था "न मुंह छुपा के जियो ना सर झुका के जियो" तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा पंडाल गूंज उठा सभी ने रवि को उसकी गायन के लिए बधाई दी ।निशा ने भी रवि की शरमाते हुए तारीफ की और अपने घर चल दी। उसकी सादगी पर रवि अपलक देखता ही रह गया यूं तो वह उसे रोज ही देखा करता था। खामोश मूरत की तरह सर झुकाए हुए ऑफिस जाती थी एक दोस्त से पता चला था कि उस पर जिम्मेदारियों का बहुत बोझ है पिता बीमार रहते हैं ,छोटे दो भाई बहन की पढ़ाई लिखाई की पूरी व्यवस्था निशा कर रही थी

उसके पिता शास्त्रीय संगीत सिखाते थे और निशा भी बहुत मधुर गाती थी। रवि को निशा आज के जमाने से अलग नजर आई वह चोरी छुपे उसका दीदार करने लगा कभी-कभी तो किसी बहाने सामने आ जाता और बात करने की कोशिश करता। दोनों में गहरी मित्रता हो गई रवि निशा से कहता कि "तुम खामोश क्यों रहती हो ?इतनी अच्छी प्रतिभा है गायन की तुम्हारे अंदर। कर्तव्य निभाते हुए अपनी इच्छाएं पूरी करो इतनी पाषाण हृदय कैसे हो गईं तुम? आज स्टेज पर तुम भी गाओगी।" निशा के गाने पर सारी सोसाइटी वाह-वाह कर उठी। रवि के प्रयास से यह सिलसिला चल उठा अनेक मंच पर निशा मशहूर हो गई आर्थिक सहारा भी मिला ।निशा ने कृतज्ञता जाहिर की तो रवि ने निशा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा निशा जड़वत हो गई। उसने जो कहा उसे सुनकर रवि का ह्रदय कांच की तरह चूर चूर हो गया निशा बोली बाबा ने मेरी शादी पक्की कर दी है। बीमार पिता की इच्छा के विरुद्ध मैं नहीं जा सकती अंदर से टूटा हुआ रवि ऊपर से पाषाण बनता हुआ बोला कोई बात नहीं मेरे लिए तुम्हारी दोस्ती ही काफी है पर आंखें झूठ ना बोल सकीं और बरस पड़ी।निशा को जाते हुए रवि देख रहा था और सोच रहा था अपने पिता से सुनी कहानी, आकारहीन पत्थरों में अक्स तराशता, उन्हें सुघड़ बनाने की कोशिश करता, इस कोशिश में चोटिल होता लेकिन हिम्मत नहीं हारता और बेजान पत्थरों में जान डालता, शिल्पी का शिल्प जब साकार हुआ वह मूरत बेजान थी जिससे उसे प्यार हो गया।एक दिन एक कला पारखी आकर उस मूरत को ले गया जिसे शिल्पी ने जी जान से सजाया । काश ऐसा होता शिल्पी का दिल भी पत्थर का होता तो अपनी प्यारी मूरत के जाने पर वह नहीं रोता, वह नहीं रोता.....…....


 


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