Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Shalini Dikshit

Drama

4  

Shalini Dikshit

Drama

शीघ्रता

शीघ्रता

2 mins
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"वहीं रुक जाओ शेखर की माँ !" कमरे में आती हुई पत्नि को बाहर रोकते हुए रमेश ने कहा।

"क्यों? मैं तो चाय नाश्ता ला रही थी।" पत्नि अंदर कदम रखते हुए बोली।

"तुमको मेरी कसम अंदर कदम मत रखना और शेखर को बुलाकर लाओ चाय नाश्ता देहरी पर रख दो।"

इतने सख्त स्वर सुनकर वो जल्दी से शेखर को बुलाने चली गईं।

रमेश चाय नाश्ता अपने बिस्तर पर ही लेने की सोच रहे थे, तभी सुबह टेलीविजन पर समाचार सुनते हुए उन्हें अचानक ख्याल आया कि दो दिन से उनको भी सर्दी खांसी है गले में भी दर्द हो रहा है; कहीं ऐसा तो नहीं यह कॉरोना के करण हो?

"क्या हुआ बाबू जी ?" शेखर ने बाहर आकर चिंतित आवाज में कहा।

"सरकार ने जो टोल फ्री नंबर दिया है; उस पर फोन करो मुझे हॉस्पिटल जाना है।"

"लेकिन क्यों ?" शेखर ने सवाल किया।

 "हो सकता है मुझे कुछ भी ना हुआ हो, लेकिन हो सकता है मैं कॅरोना पॉजिटिव हूँ यह तो डॉक्टर तय करेंगे। " रमेश बोले।

 "पर बाबूजी बारह दिन से तो लोकडाउन डाउन है, आप कहीं गए भी नहीं।"

 "अब तुम क्या बहस ही करते रहोगे, मैं भी कई बार घर से बाहर गया था और कई लोग भी घर में आए थे।"

 "मैं हॉस्पिटल के लिए निकलूँ तब तुम सब मुझसे दूर रहोगे किसी को मेरे नजदीक नहीं आना है, और मै अस्पताल में रिक्वेस्ट करूँगा कि तुम सब की जाँच भी कर ले कहीं तुम लोग भी मुझसे संक्रमित न हो गए हो।"

हॉस्पिटल से गाड़ी आ गई रमेश जी ने मुड़ कर पूरे परिवार की तरफ देखा, हाथ उठाकर सब से विदा ली और गाड़ी में बैठ गए। उनकी आंखें भीगी हुई थी शायद इस परिवार से कभी दोबारा न मिल पाए यही निराशा मन में थी लेकिन शीघ्रता दिखाकर अपने परिवार को सुरक्षित करने का प्रयास भी किया; यह सुकून भी था।

भगवान के सामने हाथ जोड़े बैठी उनकी पत्नि की आँखों से लगातार अश्रु धारा बहती जा रही थी और गाड़ी हॉस्पिटल जा चुकी थी।


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