शायद-14
शायद-14


"बिल्कुल सर, पंडित जी मौजूद हैं, बाराती भी और घराती भी।" इससे पहले तन्वी कुछ बोलती मयंक ने कहा।"तुम तन्वी हो?" मैंने चिढ़ कर कहा।
"आईडिया बुरा नही है" तन्वी ने मुस्कराते हुए कहा। "ओह!" प्रियम सर ने जेब से रुमाल निकल कर चेहरा पोछा। मौसम में उमस महसूस होने लगी थी। फिर उन्होंने मयंक के कांधे पर हाथ रखा और फिर उस से कुछ कहा। मयंक बहुत जोर से हंस पड़ा "अरे नहीं सर।" और दोनो आगे बढ़ गए। मैं तन्वी को देखते रह गयी।
हम दोनों लॉन के छोटे से पोंड की तरफ बढ़ ही रहे थे कि तन्वी ने सर को आवाज दी"सर !" प्रियम सर ने उसे पलट कर देखा। तन्वी के हाथ मे सर का सिगरेट का पैकेट था।" सर, आपकी फेवरेट।" प्रियम सर मुस्कराते लौटे "थैक्स तन्वी , अभी ढूंढता फिरता इसे !", " फेवरेट चीजों में लापरवाही ठीक नहीं सर, अभी कोई और पा लेता तो..?!" प्रियम सर ने एक बारगी तन्वी को देखा। तन्वी में स्थिरता थी। उन्होंने सिगरेट संभाल कर अपनी शर्ट की जेब मे रखी और उसे थपकाते हुए कहा "लो अब कोई नही पा पायेगा...हहहह।" प्रियम ने हंसते हुए कहा और वापस लौट गए।
मयंक को हाल में बार पर छोड़ कर प्रियम सर ने अपनी भाभी को बुला कर उनसे कुछ कहा। भाभी ने उन्हें गले लगा लिया। और तेजी से भागते हुए अंदर चली गयी।
उस दिन हम चारों शहर भर में घूमते रहे। हम चारों में न कोई सर था न कोई इंटर्न। शाम होते होते हम सब शहर के बीचों बीच बहती नदी के ऊपर बने पुल पर खड़े थे। बारिश बरस कर चली गयी थी ।मौसम में ठंडक और पुल पर बहती हवा सुकून दे रही थी। हम चारों, नीचे बहती नदी को देख रहे थे । प्रियम तन्वी के करीब खड़े बड़ी देर तक कुछ सोचते रहे। मैं और मयंक कुछ दूरी पर एक साथ खड़े थे। देखा प्रियम ने तन्वी को कुछ कहा और तन्वी की हिचकियाँ बंध गयी। मयंक तन्वी की ओर बढ़ा लेकिन मैंने उसे रोक दिया। मयंक ने मुझे घूरा लेकिन मेरे हाथ की पकड़ महसूस कर रुक गया।
मुझे महसूस हुआ
कि मयंक को भी तन्वी की बेहद फिक्र है, वो तन्वी को देखे जा रहा था। प्रियम ने आसमान की ओर देखा और कुछ बोले तो तन्वी ने अपने आंसू पोछे और आसमान की ओर देखा।अचानक दोनो खिलखिला कर हंस पड़े।और प्रियम ने हैंड शेक के लिए उसकी ओर हाथ बढ़ाया, दोनो ने हैंड शेक किया और मुस्करा दिए।मयंक रिलैक्स हो गया था,"शी इस माय बेस्टी, कान्ट शी हर फीलिंग लो ,वरुणा!"। "हम्म,इवन आय।"
प्रीयम और तन्वी को वहीं छोड़ हम दोनों पुल पर आगे बढ़ गए। मयंक ने बताया कि वह रुचिर के कारनामों को जानता था लेकिन तन्वी को बुरा लगेगा इसलिए कभी कहा नही। वो प्रियम सर का तन्वी के प्रति लगाव भी महसूस करता था। लेकिन तन्वी का रुचिर को लेकर डिवोशन ..उसकी समझ से परे था। मैंने उसे प्रियम और तन्वी को लेकर आप के मन की बात कही और उस से मदद को कहा। वो खुशी खुशी तैयार हो गया "एनीथिंग फ़ॉर तन्वी डार्लिंग ।"
तन्वी के घर पहुंचते-पहुंचते पता चला कि प्रियम ने तन्वी को उसे सर्फ "प्रियम" कहने को कहा है। "शायद अब तन्वी की सोच प्रियम के लेकर बदले" मैंने मयंक को विदा करतें हुए धीमें से कहा "
होप सो।" मयंक ने तन्वी को देखा। वो अपनी खिड़की से खड़ी उसको देख मुस्कराते हुए बाय कर रही थी। मयंक ने उसे सैल्यूट का इशारा किया और चल गया।
मेरे ऊपर आते ही तन्वी ने पूछा "आज कितनी बातें हो रहीं थी तुम्हारे और मयंक के बीच?" ," वैसे मयंक दिखता हंसोड़ हैं लेकिन बहुत समझदार भी है।"मैने कहा ,"वो तो मैं जानती हूँ ।" तन्वी ने अपने उसी अंदाज में मुस्कराते हुए कहा,"एक मिनट ,क्या मतलब?" ,"आज प्रियम मुझे पूरे समय मयंक के बारे में ही बता रहे थे।", "क्या????" , "जी" , "इट्स कंफ्यूसिंग यार !" तन्वी ने सुना नही शायद वो बोली "आज कौन सी गजल सुनोगी?"
मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा था। प्रियम तन्वी को बहुत पसंद करते हैं, लेकिन वो मयंक के लिए तन्वी से बात कर रहे थे!
मुझे अब बेसब्री से सुबह का इंतज़ार था। सुबह प्रियम हमे फोर्ट ले जाने आने वाले थे। और मेरे मन मे सवाल थे ।