Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Bhawna Kukreti

Romance

4.7  

Bhawna Kukreti

Romance

शायद-10

शायद-10

3 mins
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      खाना खा कर तन्वी अपनी खिड़की के पास आ कर बैठ गयी।हाथ में पेपर थे ,जिसे समझ कर एक कवर को सेलेक्ट करना था।इंट्रो पढ़ने के बाद उसकी नजर और दिमाग को अगले पेपर पर लिखी कुछ लाइन्स ने कैद कर लिया।


कोई एक


मुझे एक दूसरे मेंं

सेंध लगाते रिश्ते

सच अब बड़ी कोफ्त देते हैं।

कोई मित्र है तो मित्र ही रहे न !

वो प्रेमी क्यों होना चाहता है?


जो दो मेंं मेंरे साथ पूरा है

वो ढाई मेंं अकेला

अधूरा क्यों होना चाहता है।


कोई ये मानता क्यों नहींं,

मेंरी मित्रता सदियों

सागौन सी हर मौसम झेलती

पकती रहती है।


लेकिन मेंरे प्रेमी बनते मित्र को

उसका ही अधूरापन बहुत जल्द

दीमक हो जाता है।


सच अब आस पास

एक भी दीमक नहींं चाहती हूँ,

उकता चुकी हूँ,

इन जबरदस्ती की अधूरी

बेगानी कहानियों की 

अभिशप्त नायिका होकर।


मेंरी उपस्थिति के बगैर भी

अगर तुम मेरे कुछ हो सकते हो तो

तो पहले सिर्फ

'ख़ुद 'के प्रेमी हो जाओ

बस... वो कोई 'एक '।


इतना ही काफी है

मेंरी अभिन्न मित्रता के लिए।


इन पंक्तियों को पढ़ते हुए उसे महसूस हुआ मानो उसी ने उसके मन की बात जस की तस लिख दी हो।उसके दिमाग मे मयंक का चेहरा घूमने लगा। उसके दिमाग के बायस्कोप को फोन की घण्टी ने आज़ाद कराया।

"हेलो"

"अभी तक जगी हुई हो डार्लिंग!!?" दूसरी तरफ मयंक था।

"तुम ठीक हो?!",

"क्या चाहती हो कुछ हो ही जाय? "मयंक की आवाज मेंं फिर वही खनक थी।

तन्वी उसकी वापसी से रिलैक्स मोड मेंं आ गयी।

 " सॉरी यार ..",

"किस बात की सॉरी मांग रही हो?",

"वो.."

 मयंक ने फिर हंसते हुए कहा

"मुझे पागल कुत्ता काटा है क्या की तुमको खो दूं? अच्छा असल बात सुनो तुम्हारे प्रियम सर है न..." 

तन्वी के चेहरे पर हलकी सी मुस्कान आते आते रुक गयी।

"प्रियम सर क्या?",

"कुछ नहीं, क्रक्स पढ़ लेना वरना तुम्हे मेंरी नजरों से दूर रखने का कोई मौका नहीं छोड़ता वो हहहहहह",

"शट अप यार...वैसे वही पढ़ रही हूँ।",

" तुम्हारा शट अप भी ..वैसे वो क्रक्स पढ़ा है मैंने टोटल बकवास है ...चलो गुड नाइट,सुबह मिलते हैं।"


       तन्वी, अब अपना बिस्तर धीमें धीमें सही कर रही थी, रुचिर से कुछ दिन से ठीक से बात नहीं हो पा रही थी।कल उसने कॉल किया था तो किसी कॉकटेल पार्टी के बीच में था। आज भी उसका कॉल नहीं आया। शायद उस एक्सीडेंट के बाद रुचिर के लगातार फोन पर जुड़े रहने से उसे कॉल की आदत हो गयी है, वो ऐसा ही तो है,जब काम में डूब जाता है तो उसका क्या उसे ख़ुद का भी कहाँ ध्यान रहता है।


    खिड़की से छनती पूनम के चांद की रोशनी उसके बिस्तर पर पड़ रही थी।तन्वी ने अपने मोबाइल पर गोल्ड FM लगा लिया ,आज वैसे भी नींद नहींं आ रही थी। गाने सुनते-सुनते लगातार वो चांद को ही देखे जा रही थी।आज अलग सा सम्मोहन था उसमेंं । हवा भी साटन के पर्दे को बीच-बीच में उड़ा कर उसके मुह पर ले आ रही थी। छनती चांदनी, चेहरे पर बार बार आता- फिसलता पर्दा और पुराने गाने कैसा जादू सा असर था ।

          जाने कब वो सपनो की दुनिया में ख़ुद को रुचिर के साथ देखने लगी।रुचिर और वो सागर किनारे, आगे-आगे रुचिर और पीछे उसके कदमों के निशान पर अपने पैर रखते बढ़ती वो, अचानक वो गिर पड़ी। रुचिर भागता उसे उठाने आया।अपने करीब रुचिर को महसूस कर उसने उसके चेहरे की ओर देखा... "सर आप!!?" , तन्वी हड़बड़ा कर नींद से जाग उठी। उसका पूरा शरीर तप रहा था।


       सामने टेबल पर रखी तस्वीर मेंं रुचिर उसे देख मुस्करा रहा था।तन्वी की आंखों से एक आँसू चुपचाप लुढ़क गया। नीन्द बिस्तर पर खीच रही थी,पर वो अब सोना नही चाह्ती थी। उसने अपनी डायरी मे लिखना शुरु कर दिया।





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