सफ़र
सफ़र
शाम का वक़्त था। ऑफिस से मैं अपने फ्लैट पर आ चुका था फ्रेश होने के बाद चाय बनाई और अपनी इंस्टाग्राम चेक कर रहा था की मेरे अजीज़ "मिज़ाज साहब" जिन्हें मैं "दादा" कहता हूँ उनकी एक शे'र दिखी उस शे'र का असर कुछ यूँ पड़ा कि 2 साल पुरानी मेरी जिंदगी का एक हसीन सफ़र आँखों के सामने से गुजर गया।
शे'र कुछ यूँ था - "सफ़र में ही हम हैं सफ़र में ही तुम भी, सफ़र ना ख़तम हो मजा आ रहा है।"
दिसंबर का महीना था। मैंने घर जाने के लिए ऑफिस में 15 दिन पहले ही छुट्टी कि अर्जी दे दी थी। ट्रैन कि टिकट मिलना थोड़ा मुश्किल होता था इसलिए सब - कुछ पहले से ही प्लान किया हुआ था। ऑफिस के आखरी दिन सब से विदा लिया और अपने फ्लैट पर आ गया। पैकिंग तो बहुत पहले से ही कि हुई थी बस देरी थी तो ट्रैन पकड़ने की। फ्रेश होने के बाद कपड़े बदले और स्टेशन जाने के लिए कैब बुक किया। 10 मिनट के अंदर कैब भी आ गयी और मैं स्टेशन के लिए निकल पड़ा। 6 महीने बाद आख़िरकार घर जा रहा था तो एक्साइटमेंट का लेवल कुछ अलग ही था।
एक्साइटमेंट में फ़ोन चार्ज करना तक भूल गया यूँ मुझे पावर बैंक की जरुरत नहीं पड़ती थी तो मैंने कभी पावर बैंक लेने की नहीं सोची। मगर जब कैब के 336 रूपये ज्यादा देने पड़ गए तब इस बात का अफ़सोस हुआ। हुआ यूँ की जब मैंने कैब बुक कराई थी तब कैब का फेयर 578 रूपये दिखा रहा था। पर ड्राइवर के शॉर्टकट रोड से ले जाने के वजह
से ये फेयर कम हो गया था। जब मैं स्टेशन पहुंचा और सामान उतारने के बाद ड्राइवर से फेयर के लिए पूछा तो उसने कहा की सर आपके फ़ोन में दिखा रहा होगा चेक कर लीजिये।
पर अपने पे तो एक्साइटमेंट का भूत सवार था, फ़ोन ऑफ हो जाये इसकी परवाह किसे थी? फिर मैंने ड्राइवर से कहा की मेरा फ़ोन तो ऑफ हो चुका है तो वह मेरी और देख कर हंसने लगा। और कहा कि सर आपने जब कैब बुक करा था तब जो फेयर दिखा रहा था वही दे दीजिये।
मैं करता भी क्या मेरे पास और कोई रास्ता भी तो नहीं था ऊपर से ट्रैन का समय हो रहा था। तो मैंने उसे पूरे 578 रूपये दे दिए और वहां से निकल गया। ट्रैन को आने में अभी 15 मिनट का समय बचा था तो मैंने स्टेशन पर ही अपना डिनर ख़तम कर लिया।
ट्रैन अपनी सही समय 10 बजकर 13 मिनट पर आ गयी थी। मैंने चार्ट में अपना नाम पढ़ा और सामान लेकर अंदर आ गया। चूँकि ठण्ड के दिन चल रहे तो मैंने कम्बल और चादर भी साथ लाया हुआ था। मेरे केबिन में अभी तक मैं अकेला ही था, ट्रैन चल पड़ी।
थोड़ा थका होने कि वजह से मुझे जल्द ही नींद आ गयी और मैं सो गया। अगली स्टेशन पर गाडी रुकी कुछ पैसंजर मेरे केबिन में भी आये। हल्की आवाज और लाइट जलने कि वजह से मेरी आँखे खुली मगर मैं उठना नहीं चाहता था सो मैं सोया रहा।
मेरी सबसे निचे वाली लोअर बर्थ थी। सब अपनी अपनी बर्थ पर चले गए और लाइट फिर से बंद हो गयी। पर मेरे सामने के लोअर बर्थ पर किसी के मोबाइल कि रौशनी मेरे आँखों पर पड़ रही थी जिसकी वजह से मुझे गुस्सा भी आ रहा था तो मैंने बिना देखे सामने वाले को झेंप के कहा :- रात बहुत हो गई है सोइये और सोने दीजिये। पर मुझे क्या पता था कि वो सामने वाले नहीं सामने वाली थी... इक बेहद खुबसूरत लड़की मेरी ओर
पलटी उसकी मोटी-मोटी आँखे जिन्हें मैं देखता रह गया। बहुत ही मीठे लहजे में उसने मुझे सॉरी कहा और मोबाइल को साइड मैं रख ली।
मैं खुद को शर्मिंदा महसूस करने लगा था तो मैंने उससे माफ़ी मांग ली ओर कहा कि दरअसल मैं बहुत थका हुआ हूँ तो इसीलिए गुस्से में......
उसने कहा कोई बात नहीं। फिर हमारी बातें शुरू हुई। वो किसी कॉलेज में एमबीए कि पढाई करती थी ओर छुट्टी में घर जा रही उसने बताया। हमने अब तक एक दूसरे का नाम नहीं पूछा था शायद नाम जानना हमारे लिए जरूरी भी नहीं था। वो कुछ यूँ बात कर रही थी जैसे मुझे बहुत पहले से जानती हो। महज डेढ़ घंटे में उसने अपनी 2 साल कि कॉलेज
कि पूरी कहानी सुना दी। हमारी बातों से ऊपर के बर्थ वालों को दिक्कत होने लगी थी तो अब हमने खुस-फूस वाली तकनीक से बाते करना शुरू कर दिया पर रुके नहीं।
कुछ उसने अपना सुनाया कुछ मैंने ओर यूँ ही बाते चलती रही। कोई स्टेशन आने वाला था ट्रैन रुकी ओर फिर से कुछ पैसंजर गाड़ी में चढ़े और कुछ उतरे।
एक औरत उस लड़की के सामने अपना सामन लेकर खड़ी हो गई और कहा कि माफ़ करियेगा मगर ये बर्थ मेरा है। अब वो लड़की मेरी ओर देखने लगी।
मैं समझ गया कि जो सीट खाली वो हमारी वाली बात थी यहाँ। उसकी वेटिंग वाली टिकट थी।
इससे पहले कि वो औरत दुबारा से उसे कुछ कहती उसने बर्थ खाली कर दिया। और मेरी बर्थ पर आकर बैठ गयी। मिडिल वाली बर्थ खुली होने कि वजह से हमें थोड़ा झुक कर बैठना पड़ रहा था। सामने के बर्थ में आयी वो औरत ने अपना सामान रखा। वो उस लड़की का सामान नीचे से निकालने ही वाली थी कि मैंने ना के इशारे में सर हिलाया तो वो समझ गयी और मुस्कुराने लगी। सब कुछ ठीक-ठाक से रखने के बाद एक बार फिर से लाइट बंद हुई। रात के करीब डेढ़ बज चुके थे पर हम दोनों अब भी बैठे हुए ही थे। मैंने उससे कहा कि एक काम करो तुम मेरे बर्थ पर सो जाओ मैं बैठ जाता हूँ। यहाँ पर एक बात मैंने नोटिस कि वो ये की मैं आप से तुम पर आ चुका था।
मैं खिड़की के बगल में झुक कर बैठा रहा और वो मेरे सामने लेट गयी। हमारे पास कोई तकिया नहीं था जब मैं सोया था तो मैंने अपने बैग को ही तकिया बना लिया था पर जब वो मेरे बर्थ पर आ गयी तो मैंने बैग नीचे रख दिया था। उसे बिना तकिया के सोने में दिक्कत हो रही थी इसीलिए करवट बदलने का सिलसिला चल रहा था। ये देख मुझे हंसी आ गयी। उसने सर उठाकर मेरी ओर देखा और मीठे गुस्से वाले लहजे में अपना सर मेरी गोद में रख दिया। इतना देख मेरी हंसी रुक गयी, अब वो मेरी और एक टूक नजर से देख रही थी, मैं सकपका गया। मैंने उससे नजर हटाने के लिए चार्जर पॉइंट की ओर देखा मगर पहले से ही किसी ने अपना चार्जर उसमे ठूस रखा था।
ये सब वो देख रही थी फिर उसने अपना पावर बैंक मेरी ओर बढ़ा दिया। मैंने अपना फ़ोन चार्ज में लगा कर बंद खिड़की से बाहर झाँक रहा था कि इतने वो आँखे बंद कर चुकी थी। नाईट बल्ब कि नीली रौशनी से सब-कुछ हल्का हल्का सा दिखाई दे रहा था। मेरी नींद उड़ा के मोहतरमा आराम से सो रही थी, और मैं उसे देख रहा था। हालाँकि ट्रैन के दरवाजे बंद थे फिर भी हल्की-हल्की हवा अब भी अंदर आ रही थी जिससे कि उसके कुछ बाल चेहरे पर आ रहे थे मैं उन्हें हटाना चाह रहा था। मैंने उसके बाल चेहरे से हटा कर कान के पीछे कर दिया। वो आँखे बंद करके ही मुस्कुराई, उसे इस बात का पता चल चुका था शायद। ना जाने उसको देखते देखते कब मैं भी सो गया पता ही नहीं चला।
धीरे धीरे ट्रैन कि रफ़्तार बढ़ती जा रही थी और ठण्ड भी। रात को उस औरत ने जो हमारे सामने के बर्थ में थी उन्होंने अपने साइड कि खिड़की खोल दी थी जिससे कि तेज ठण्ड हवा अंदर आ रही थी और मैं ठण्ड के मारे काँप रहा था, मेरे पैर भी कांपने लगे जो कि उसके नींद टूटने कि वजह बनी। वो उठी और खिड़की को फिर से बंद किया, मुझे अच्छे से चादर ओढ़ाकर वो फिर से सो गयी। रात यूँ ही गुजर रही थी और मेरा उसके लिए प्यार था या क्या मुझे नहीं पता मगर जो भी था बढ़ता जा रहा था।
अचानक मुझे दरवाजे के पास से कुछ खट-खट की आवाज सुनाई दी मेरी नींद खुल गयी, जैसी ही मैंने आँखे खोली मैं डर सा गया। वो मेरे पास से गायब थी मैं इधर-उधर देखने लगा फिर दरवाजे की तरफ भागा। दरवाजे के पास पहुँच कर मैंने उसे पाया तो चैन की सांस ली, मुझे नहीं पता था की एक पल उसके ना होने से मैं इतना घबरा जाऊंगा। दरअसल बात ये थी की पैसंजर का ट्रैन में चढ़ने या उतरने के क्रम में किसी ने दरवाजा खुला छोड़ दिया था और तेज़ हवा अंदर आ रही थी इसीलिए वो उसे बंद करने गयी थी। मगर उसकी छोटी कद के कारण वो दरवाजे को बंद नहीं कर पायी फिर भी वो कोशिश कर ही रही थी। मैंने उसके पीछे से आकर दरवाजे को बंद किया वो मेरे बांहो के दरमियाँ खड़ी रही जैसे ही मैंने दरवाजे की सिटकनी लगाई वो मेरी और मुड़ी और दोनों की आँखें मिली और हम एक-दूसरे में कहीं खो से गए। अगर ट्रैन की सिटी न बजती तो शायद ही हम वापस इस जहाँ में आ पाते। कोई स्टेशन आने वाला था, ट्रैन रुकी और पैसंजर चढ़ने वाले थे तो मैंने दरवाजा खोल दिया। हम वापस अपनी सीट पर आ गए। फिर से मैं खिड़की के बगल में बैठ गया और वो मेरी गोद में सर रखकर मुझे देखने लगी और मैं उसकी ओर, हम खामोश जरूर थे मगर हमारे दिल आपस में बातें कर रहे थे।
यूँ ही एक-दूसरे को देखते देखते हमारी आँख लग गयी ।और मैं उसके सपनों में गुम हो गया।
सुबह चाय वाले की आवाज से मेरी नींद खुली, आँखे मलते मलते मैं उठा। मैंने अपने सीट पर उसे ना पाया। एक बार फिर मैं डर गया कुछ मिला तो बस एक रुमाल जिस पर किसी के होठों की लाल लिपस्टिक की छाप थी। मैं समझ गया की वो अपने स्टेशन पर उतर गयी होगी और मुझे नींद से जगाना उसे ठीक न लगा होगा। मैं उदास सा चुपचाप बैठा रहा… बस कुछ सुनाई दे रहा था तो चाय वाले की आवाज…. मैं सोचने लगा की काश मैं उस रात सोया ना होता तो शायद आज बात कुछ और होती या हो सकता है हमारी बात कुछ आगे बढ़ती।
आज भी उस हसीन सफर की यादें ताजा है। अब जब भी मैं छुट्टी में घर आता हूँ तो ये उम्मीद रहती है कि फिर से वो मुझे मिल जाये ताकि मैं उसे अपने दिल कि बात बता सकूँ और ये भी बता सकूँ कि जो होठों के निशान उसने रुमाल में दिए थे वो जगह गलत थी।