साहित्यसेवी सत्येन्द्र सिंह

Abstract

4.7  

साहित्यसेवी सत्येन्द्र सिंह

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सेंध

सेंध

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वो बहुत पराक्रमी था

शायद राजा से भी ज्यादा


पर आज वह हारना चाहता था

राजा के हाथों मरना चाहता था


राज्य तो उसे मिलने वाला न था

किन्तु मरकर राजा के दीवार पर

अपना सिर टंगा देखना चाहता था


सेंध लगाने के लिए उसने

आज अपना सिर गवां दिया


कालांतर में यही उसके

अनुयायियों को प्रेरणा देगा कि


अब अगला कदम उन्हें उठाना है

कि सेंध तो लग चुकी थी।


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