Savita Verma Gazal

Romance

2.6  

Savita Verma Gazal

Romance

"सदियों का इंतज़ार"

"सदियों का इंतज़ार"

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शहनाई की गूंज में खोकर रह गयी थी वृंदा, लाल जोड़े में सजी नवनी को देखकर न जाने क्यों आज उसका भी मन कर आया कि वो भी अपना वही बारह साल पहले पहना हुआ लाल जोड़ा आज फिर से पहने।

मगर घर -परिवार और समाज ने तो उसे किसी विधवा से भी बदतर जीवन जीने पर मजबूर कर दिया था।

उसे आज भी अच्छे से याद जब उसने सूर्या के जाने के बाद खुद को संभालने की सोचकर, काफी दिन बाद आईने में खुद को देखा था और अपनी बड़ी-बड़ी खूबसूरत गहरी झील सी आंखों में काजल लगा लिया था तो उसकी भाभी ने ही उसे कहा था।

"अरे ओ वृंदा जिज्जी ! इब आंखों में कजरा वजरा मत लगाओ, जानत तो हो कि गांव वाले तुमरे साथ ही हमरा जीना भी हराम कर देवेंगे।"

"भाभी आज दिल कर आया तो लगा लिए हम आंखों मा ई काजल तो का हम गांव वालन की खातर जीना बी छोड़ देंवे?"

वृंदा ने बड़ी बेपरवाही से अपनी भाभी को जवाब दिया और चल दी अपनी सहेली के साथ खेतों में फूली सरसों देखने ।

वृंदा और उसकी सहेली दोनों खेत से चने का साग व बथुआ तोड़ रही थी और साथ ही गुनगुना रही थी एक गीत।

"काहे रूठे सजनवा, हमसे तोरे बिन रहा न जावे

तेरी बाट में हमार ,जिया धड़क-धड़क जावे।

काहे रूठे हो सजनवा...."

वृंदा का मधुर व सुरीला स्वर पास ही अपने खेतों पर काम कर रहे सुमेर के कानों में पड़ा।

वो झट से वृंदा के आगे अड़कर खड़ा हो गया और उसका हाथ पड़कर कहने लगा।

"आय हाय कतई जान काढक रख दे तेरी यो मीठी आवाज़ , अरे कब तक बाट देखगी उस दगाबाज की ?

एं ...?

चल म्हारे साथ फेरे डलवा ले रानी बनाक रखूंगा रानी'।

वृंदा ने गुस्से से सुमरे के हाथ में दरांती मार दी ।

सुमेर के हाथ से खून बहता देख वृंदा और उसकी सहेली डर के मारे भाग कर झट से अपने घर आ गयी।

वो दिन और आज का दिन वृंदा ने हालात से समझौता कर लिया था आखिर ।

लेकिन आज न जाने क्यों नवनी को दुल्हन के रूप में सजा देख और शहनाई की गूंज ने उसके मन में सोये अरमानों को मानो फिर से जगा दिया हो।

उसने मन में ठान ही ली कि वो आज खूब सजेगी। उसके मन में इंद्रधनुष के रंग खिलखिला उठे।

वो अपने घर गयी और सन्दूक में से अपना लाल रंग का जोड़ा निकाला कर उसे बार-बार चूमने लगी।

मन ही मन सोचने लगी कहाँ गया रे तू मुझ इस लाल रंग म रंगक भी बदरंग करक चला गया । मरते दम तक देखूंगी बाट तेरी सूर्या ।

तू कधी तो आवगा पूरा विश्वास ह म्हारे मन म। आज तो जी बी बस म ना ह ...तेरी खूब याद आ री।

ले इब चाहे गाँ वाले मन्न खत्म बी कर दँ पर म यो लाल जोड़ा पहारूँगी रे।

वृंदा ने लाल जोड़ा पहनकर आज खूब सिंगार भी किया और बालों में लम्बी चोटी में गजरा भी लगा लिया।

न जाने आज उसमें कहाँ से इतनी हिम्मत आ गयी थी कि पिछले बारह सालों से सुहागिन होते हुए भी एक विधवा सा जीवन जीने वाली आज पूरी सजधज कर आ रही है न गांव वालों का भय और न ही उनसे मिलने वाले तानों और सजा का ही डर।

नवनी अब तक फेरों पर बैठ चुकी थी कि तभी उसकी अन्य सहेलियों के साथ ही वृंदा भी वही उसके पीछे ही आकर बैठ गयी थी।

जैसे ही वृंदा के ताऊ की नजर उस पर पड़ी तो उन्होंने सीधे उसके पास जाकर उसे चोटी से पकड़कर जोर-जोर से चिल्लाकर बोलना शुरू कर दिया।

"अरी कुलच्छनी ,कुलटा यो तू का पाप करन जा री?

म्हारी नाक तो पहले स कटा दी थी तन्न उस परदेशी स ब्याह करक, इब जब वो तुझ छोड़ क भाग ग्या तो तू इब यो सिंगर किसकी खातर कर ह?"

" ताऊ मन्न छोड़ देओ दुख रे सिर के बाल ..

म्हारी चोटी छोड़ ताऊ.. अर म्हारा सूर्या भागा ना ।

वो आवगा तम देखना ।

म्हारी बारह बरस की तपस्या नु ही न जावेगी।" वृंदा दर्द से कराह रही थी मगर उसके ताऊ और उसके अन्य रिश्तेदार भी अब वृंदा को खूब मार पीट रहे थे।

तभी वहाँ किसी ने बंदूक से फायर की और बंदूक की आवाज़ सुनकर सब चौंककर एक-दूसरे की तरफ देखने लगे।

वृंदा ज़मीन पर पड़ी सिसक रही थी।

तभी उसने देखा वो बंदूक से गोली चलाने वाला कोई और नहीं उसका सूर्या ही था।

सूर्या की आंखों से दर्द और पीड़ा आंसुओं के रूप में बहने लगी थी।

उसने वृंदा को उठाकर अपने सीने से लगा लिया।

सब गांव वाले अब ज़मीन में आंख गड़ाए खड़े थे और वृंदा पर अपने किये ज़ुल्मों को याद कर शर्मिंदा हो रहे थे।

सूर्या ने वृंदा से माफी मांगते हुए कहा ...

"मुझे माफ कर दे वृंदा, तू नहीं जानती में कितने कष्ट में था इन बारह सालों में तूने मेरी वजह से जो दुख सहा मैं शर्मिंदा हूँ पर मेरा यकीन कर वृंदा मैं पिछले दस साल से कोमा में रहा।

सीमा पर युद्ध के दौरान सिर में गोली लगने से मेरा ये हाल रहा ।

अपनी सुध नहीं थी तो भला तेरी सुध कैसे लेता।?"

वृंदा कुछ बोल नहीं पा रही थी बस वो अपने सूर्या के सीने से लगकर रोये जा रही थी व गर्व हो रहा था उसे अपनी तकदीर पर।

आज तो उसकी मांग सज उठी थी सूर्या के प्रेम के रंग से,

उसके हाथों की चूड़ियां खनक उठी व लाल चुनरिया भी लहरा कर कह रही हो मानो कि सदियों का इंतज़ार आज खत्म हुआ।

खुशियों की शहनाई गूंज उठी थी।।



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