Savita Verma Gazal

Inspirational

4.2  

Savita Verma Gazal

Inspirational

बिखरे मोती

बिखरे मोती

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अभी एक महीना भी ठीक से नहीँ हुआ है आकाश की शादी कॊ ,और भाभी ने आते ही बहू कॊ हर छोटी-बड़ी बात पर टोका-टाकी शुरू कर दी है !

कभी उसके पहनावे तो कभी उसके मेकअप कॊ लेकर ।

अभी दो दिन पहले की ही बात है कॉलोनी की कुछ महिलाएँ बहू कॊ देखने आयीं थी और बहू अच्छे से तैयार होकर अपने कमरे से दूसरे कमरे मॆं जा ही रही थी कि भाभी ने देखते ही अपने तीखे शब्दों की बौछार शुरू कर दी

"ये लिपस्टिक किस कलर की लगायी है ?बिल्कुल भी अच्छी नहीँ लग रही ,उफ़्फ़! ये आई लाइनर कैसे लगाती हो , और समझ ही नहीँ आता मुझे तो इतनी पढी-लिखी होकर भी किसी गँवार जैसा पहनावा और मेकअप क्यों करती हो ?

तुम्हें देखकर लगता तो है कि जैसे किसी अनपढ़ और गँवार लड़की को हम बहू बनाकर ले आये हो....ओह गॉड ! ये कैसी लड़की पसंद की है आकाश ने भी ?जिसे हमारे स्टेट्स का बिल्कुल भी ध्यान नहीँ " ।

और भी न जाने क्या-क्या कहती भाभी बहू कॊ और बहू वो तो बस अपनी सास की बातों कॊ सुनकर या तो चुप रहती या फ़िर मुस्कुराती देती ....इतनी पढी-लिखी होने के बाद भी , उसमें जरा सा भी अभिमान या कोई किसी भी तरह का दिखावा और बनावट नहीँ है ।

सच मॆं लगता है अब इस घर की खुशियाँ अब लौट आयेगी , वरना जब से भाभी आयी थी ब्याहकर तब से घर तो बस उन्हीं के इशारे पर ही चलता है ॥

ये भी नहीँ सोचती कि बहू अभी नई-नई है तो उसे तो गहरे और चटख रंग ही अच्छे लगेंगे और फ़िर उसकी अपनी पसंद भी कोई मायने रखती है.....!

 बहू कॊ अभी इस घर मॆं आये दिन ही कितने हुये हैं ,अभी तो वो बेचारी इस घर और घरवालों से बिल्कुल अंजान ही है और थोड़ा वक्त तो लगेगा ही उसे इस घर-परिवार कॊ समझने मॆं ,वैसे भी जब कोई लड़की अपना घर-परिवार छोड़कर ससुराल मॆं आती है तो एक-दो साल तो ऐसे निकल जाते हैं एक-दूसरे कॊ समझने मॆं ,लेकिन वो कहते हैं न ! कि दूसरों कॊ प्रवचन देना बड़ा आसान होता है और खुद उन्हीं बातों पर अमल करना बड़ा ही कठिन...और यही हाल है हमारी मॉडर्न और जिद्दी भाभी का भी....खुद ने आज तक ये भी जानने की कोशिश नहीं की कि खुद उनके पति कॊ क्या पसंद है ? औरों की बात तो छोडिये !

पिछले जनम मॆं ही कौई पुण्य किये होंगे जो इतनी पढी-लिखी और संस्कारी बहू मिली है ।

  सच्ची मॆं कितनी प्यारी है बहू ,बिल्कुल गुड़िया सी है और बहुत खूबसूरत भी...बोलते हुये भी इतनी मधुर और सहज लगती है कि बस उसकी बातें सुनती ही रहूँ..बहुत ही समझदार भी है ,तभी तो अपनी सास की किसी भी बात का बुरा नहीँ मानती है ।

उस दिन जब मैंने बहू से पूछा "एक बात बताओ शुचि ?"

"जी बुआ जी पूछिये " बहू ने मेरी तरफ़ देखते हुये कहा !

"तू अपनी सास की हर बात पर बस या तो चुप ही रहती है और या फ़िर हल्का सा मुस्कुरा देती है ,तुझे बुरा नहीँ लगता बेटा ,वो तुझे बात-बात पर टोकती रहती है ?"

बहू पहले तो थोड़ी देर कुछ सोचती रही ,फ़िर थोड़ा हँसते हुये कहने लगी "बुआ जी मम्मीजी की आदत को मैं अच्छे से जानती हूँ क्योंकि मुझे आकाश ने सब बता दिया था , आकाश को भी डर था कि कहीँ हम सास-बहू मॆं हर वक्त महाभारत न होती रहे , लेकिन मैंने आकाश से वादा किया था कि मेरी वजह से उन्हें कभी किसी बात पर शर्मिंदा नहीँ होना पड़ेगा ॥

बस ! मैं मम्मीजी की किसी भी बात कॊ दिल पर नहीँ लेती...और रही बात मेरे पहनावे और सादगी की तो आकाश कॊ मैं ऐसी ही पसंद हूँ ॥

  हम दोनों ने एम॰ बी.ए. की पढाई एक साथ ही की और पिछले एक साल से हमारी जॉब भी एक ही कम्पनी मॆं है और हम दोनों ने एक महीने की छुट्टी ली हुई है और अब दो दिन बाद हम दोनों चले जायेंगे तो मम्मीजी की बातों कॊ बुरा मानकर या फ़िर उनकी हर बात पर जवाब देकर मैं अपने और आकाश के साथ-साथ घर मॆं किसी का भी मूड खराब करना नहीँ चाहती ,मम्मी जी जैसी हैं ,वो वैसी ही अच्छी लगती हैं मुझे ॥

मैंने बहू कॊ गले से लगाकर इतना ही कहा कि "बस !बेटा तू जैसी है वैसे ही रहना हमेशा "

"जी , बुआ जी आप चिंता न करिये !"

 अचानक मेरी नज़र दरवाजे पर पड़ी मैंने भाभी कॊ उल्टे पाँव दरवाजे से जाते हुये देखा ,मै तो मन ही मन डर गई कि कहीँ भाभी ये न समझ बैठे कि मैं बहू कॊ सीखा रही हूँ ॥

 ओह....सोच ही रही थी कि तभी राकेश भैया की आवाज़ सुनायी पड़ी !

"बात इतनी सी थी..कि बहू ने साड़ी पहनी और तुमने उसे गँवार और न जाने क्या-क्या कह दिया...तुमने तो सबका मूड ही खराब करके रख दिया , जाह्न्वी.....सास बन गई हो, पर अभी तक तुम्हारा बचपना वैसा का वैसा ही है, भला तुम्हें क्या ज़रूरत पड़ी थी बहू कॊ टोकने की ? वो साड़ी पहनकर जाना चाहती है तो तुम क्यों उसे फोर्स कर रही हो कोई दूसरे कपड़े पहनने के लिये ?और तुम बहू कॊ बुलाने गई थी तो क्या उसमें भी तुम्हारे शान मॆं फर्क आ जाता ?"

राकेश भैया ने गुस्से से जाह्न्वी भाभी की तरफ़ देखते हुये कहा ! माँ तो इतनी देर से भैया और भाभी की बातें या फ़िर यूँ कहिये कि बहसबाजी चुपचाप सुन और देख रही थी हमेशा की तरह।

बचपना नहीँ मानती मैं इसे जो आजकल भाभी कर रही हैं ...अरे !वो सिर्फ और सिर्फ अपने ही बारे मॆं सोचती आयी हैं हमेशा से ही ,भूल गई कि जब वो नई-नई आयी थी ब्याहकर इस घर मॆं !

घर मॆं खुशियाँ तो क्या आती उल्टे सुकून चैन सब जाता रहा था !

अपनी मर्जी से देर रात तक ऊँची आवाज़ मॆं गाने सुनकर सोना और सवेरे दस-दस बजे सोकर उठना ,न खाना बनाने का वक्त और न खाने का ही था कुछ !

 आधी उम्र हो गई हैं और अब तो बेटे की शादी तक कर चुकी...सास बन गयी लेकिन....अभी भी बस ! अपनी जिद पर अडे रहने की आदत नहीँ गई इनकी....इन्हें अब समझना चाहिये कि हमेशा एक राजा का ही राज़ नहीँ होता और अब तो घर मॆं बहू भी आ गयी है.....!

हे भगवान भाभी को इस उम्र मॆं तो इतनी सद्बुद्धि दे कि वो बेटे और बहू को भी अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने दे.....अब बच्चों को हर बात पर रोकने-टोकने का ज़माना तो रहा नहीँ और फ़िर उनकी खुद की जिंदगी है और अच्छे से जानते और समझते हैं कि उन्हें क्या करना है क्या नहीँ ।

भैया की बातों का जवाब दिये बगैर ही भाभी अपने कमरे मॆं चली गयी ॥

तभी मैंने देखा कि बहू तैयार होकर आ भी गयी !

कितनी सुंदर तो लग रही थी बहू भारी बॉर्डर वाली जयपुरी साड़ी मॆं...खुद ने तो कभी साड़ी कॊ हाथ तक नहीँ लगाया , हमेशा कभी जीन्स तो कभी सूट वो भी पजामी कुर्ता और अब तो गाऊन पहनने लगी हैं !

मुझे आज भी अच्छे से याद है जब पहली बार गाँव मॆं देवता पूजन के लिये जाना था तो माँ और भैया के लाख कहने के बाद भी इन्होने साड़ी नहीँ पहनी थी.

और तो और जब आकाश छोटा था भाभी ने तो उसे कभी अपना दूध तक नहीँ पिलाया इस डर से कि कहीँ इनकी सुंदरता कम न हो जायें ,!

सोच ही रही थी कि तभी माँ ने मुझे अपने पास बुलाया और कहने लगी "उषा देख तो कहीँ तेरी भाभी नाराज़ न हो गई हो?

तेरी मौसी इंतजार कर रही होगी, पोते के जन्मदिन पर सबको ही तो बुलाया है और बहू तो पहली बार जा रही है ,भला उसकी साड़ी पहनने से इसे क्या परेशानी ? खुद तो पहनती ही है उट-पटांग कपड़े, न उम्र का लिहाज और न ही नई बहू की शर्म ,हे भगवान अब तो मेरी इस बहू कॊ सद्बुद्धि दे..."

माँ कॊ परेशान देखकर मैंने समझाते हुये कहा "माँ तू परेशान मत हो ,हाँ ! मै इस बार भाभी कॊ समझाकर ही जाऊँगी...अब तक तो वो अकेली थी घर मॆं ,तो उन्हीं की हर बात पर हाँ मॆं हाँ मिलाते रहे हम सब...लेकिन !अब वो सास बन गई हैं और यदि अब भी भाभी नहीँ समझेगी तो परिवार रूपी ये माला टूट जायेगी और रिश्तों के ये मोती बिखर जायेंगे !"

  मैं माँ कॊ समझा ही रही थी कि तभी बहू मेरे पास आयी और बोली "चलिये न बुआ जी ,दादी जी ...अब देर मत कीजिये वरना तो वहाँ जन्मदिन मन भी चुका होगा "।

बहू के चेहरे की मुस्कान देखकर तो मेरा मन ही खिल उठता है क्योंकि वो है ही इतना प्यारी !

मैंने तभी भाभी के कमरे की तरफ़ इशारा करते हुये बहू से कहा "हाँ बेटा हम सब तो तैयार हैं लेकिन तुम्हारी सास ?"

  तभी बहू ने धीरे से मुस्कुराते हुये कहा  "बुआ जी मम्मीजी भी बस आ ही रही हैं "

"बहू तू अपनी सास की बात से नाराज़ तो नहीँ...?"माँ ने धीरे से बहू कॊ अपने पास बैठाते हुये कहा ।

तभी मैंने जो देखा उसे देखकर मुझे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीँ हो रहा था ,क्योंकि आज सूरज पूरब से नहीँ पश्चिम से जो निकला था....अरे भई मेरी जिद्दी और मॉडर्न भाभी ने आज साड़ी जो पहनी थी और वो भी गुलाबी रंग की !

इससे पहले कि कोई कुछ बोलता मैंने देखा कि भाभी की आँखें भीगी हुई थी और वो मेरा हाथ पकड़कर कहने लगी "सॉरी दीदी मैं हमेशा ही अपनी हर बात मनवाती रही हूँ आप सबसे और बहू पर भी अपनी ही इच्छा थोप रही थी लेकिन हमारी बहू इस नये ज़माने की और पढी-लिखी होँते हुये भी इतनी संस्कारी है कि उसने मेरी बात का कभी बुरा भी नहीँ माना !

आप सब मुझे माफ कर दीजिये...मैं रिश्तों के ये बिखरे मोती अब और बिखरने नहीँ दूँगी "

भाभी का ये बदला हुआ रुप देखकर हम सबकी आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गई और हम भाभी कॊ ऐसे देख रहे थे जैसे की पहली बार देखा हो !

  तभी माँ अचानक से बोल पड़ी "सवेरे का भुला यदि शाम कॊ घर लौट आये तो वो भुला नहीँ कहलाता ।"

भैया ने बहू के सिर पर हाथ रखते हुये कहा "बेटा जो काम हम पिछले अट्ठाइस सालों मॆं नहीँ कर पायें वो तूने कुछ ही दिनों मॆं कर दिखाया !

  सच बेटा तुझे बहू के रुप मॆं पाकर हम सब आज धन्य हो गये ॥

सविता वर्मा "ग़ज़ल"बिखरे मोती"

अभी एक महीना भी ठीक से नहीँ हुआ है आकाश की शादी कॊ ,और भाभी ने आते ही बहू कॊ हर छोटी-बड़ी बात पर टोका-टाकी शुरू कर दी है !

कभी उसके पहनावे तो कभी उसके मेकअप कॊ लेकर ।

अभी दो दिन पहले की ही बात है कॉलोनी की कुछ महिलाएँ बहू कॊ देखने आयीं थी और बहू अच्छे से तैयार होकर अपने कमरे से दूसरे कमरे मॆं जा ही रही थी कि भाभी ने देखते ही अपने तीखे शब्दों की बौछार शुरू कर दी 

 "ये लिपस्टिक किस कलर की लगायी है ?बिल्कुल भी अच्छी नहीँ लग रही ,उफ़्फ़! ये आई लाइनर कैसे लगाती हो , और  समझ ही नहीँ आता मुझे तो इतनी पढी-लिखी होकर भी किसी गँवार जैसा पहनावा और मेकअप क्यों करती हो ? 

तुम्हें देखकर लगता तो है कि जैसे किसी अनपढ़ और गँवार लड़की को हम बहू बनाकर ले आये हो....ओह गॉड ! ये कैसी लड़की पसंद की है आकाश ने भी ?जिसे हमारे स्टेट्स का बिल्कुल भी ध्यान नहीँ " ।

और भी न जाने क्या-क्या कहती भाभी बहू कॊ और बहू वो तो बस अपनी सास की बातों कॊ सुनकर या तो चुप रहती या फ़िर मुस्कुराती देती ....इतनी पढी-लिखी होने के बाद भी , उसमें जरा सा भी अभिमान या कोई किसी भी तरह का दिखावा और बनावट नहीँ है ।

सच मॆं लगता है अब इस घर की खुशियाँ अब लौट आयेगी , वरना जब से भाभी आयी थी ब्याहकर तब से घर तो बस उन्हीं के इशारे पर ही चलता है ॥

ये भी नहीँ सोचती कि बहू अभी नई-नई है तो उसे तो गहरे और चटख रंग ही अच्छे लगेंगे और फ़िर उसकी अपनी पसंद भी कोई मायने रखती है.....!

 बहू कॊ अभी इस घर मॆं आये दिन ही कितने हुये हैं ,अभी तो वो बेचारी इस घर और घरवालों से बिल्कुल अंजान ही है और थोड़ा वक्त तो लगेगा ही उसे इस घर-परिवार कॊ समझने मॆं ,वैसे भी जब कोई लड़की अपना घर-परिवार छोड़कर ससुराल मॆं आती है तो एक-दो साल तो ऐसे निकल जाते हैं एक-दूसरे कॊ समझने मॆं ,लेकिन वो कहते हैं न ! कि दूसरों कॊ प्रवचन देना बड़ा आसान होता है और खुद उन्हीं बातों पर अमल करना बड़ा ही कठिन...और यही हाल है हमारी मॉडर्न और जिद्दी भाभी का भी....खुद ने आज तक ये भी  जानने की कोशिश नहीं की कि खुद उनके पति कॊ क्या पसंद है ? औरों की बात तो छोडिये !

 पिछले जनम मॆं ही कौई पुण्य किये होंगे जो इतनी पढी-लिखी और संस्कारी बहू मिली है ।

  सच्ची मॆं कितनी प्यारी है बहू ,बिल्कुल गुड़िया सी है और बहुत खूबसूरत भी...बोलते हुये भी इतनी मधुर और सहज लगती है कि बस उसकी बातें सुनती ही रहूँ..बहुत ही समझदार भी है ,तभी तो अपनी सास की किसी भी बात का बुरा नहीँ मानती है ।

उस दिन जब मैंने बहू से पूछा "एक बात बताओ शुचि ?"

"जी बुआ जी पूछिये " बहू ने मेरी तरफ़ देखते हुये कहा !

"तू अपनी सास की हर बात पर बस या तो चुप ही रहती है और या फ़िर हल्का सा मुस्कुरा देती है ,तुझे बुरा नहीँ लगता बेटा ,वो तुझे बात-बात पर टोकती रहती है ?" 

बहू पहले तो थोड़ी देर कुछ सोचती रही ,फ़िर थोड़ा हँसते हुये कहने लगी "बुआ जी मम्मीजी की आदत को मैं अच्छे से जानती हूँ क्योंकि मुझे आकाश ने सब बता दिया था , आकाश को भी डर था कि कहीँ हम सास-बहू मॆं हर वक्त महाभारत न होती रहे , लेकिन मैंने आकाश से वादा किया था कि मेरी वजह से उन्हें कभी किसी बात पर शर्मिंदा नहीँ होना पड़ेगा ॥

बस ! मैं मम्मीजी की किसी भी बात कॊ दिल पर नहीँ लेती...और रही बात मेरे पहनावे और सादगी की तो आकाश कॊ मैं ऐसी ही पसंद हूँ ॥

  हम दोनों ने एम॰ बी.ए. की पढाई एक साथ ही की और पिछले एक साल से हमारी जॉब भी एक ही कम्पनी मॆं है और हम दोनों ने एक महीने की छुट्टी ली हुई है और अब दो दिन बाद हम दोनों चले जायेंगे तो मम्मीजी की बातों कॊ बुरा मानकर या फ़िर उनकी हर बात पर जवाब देकर मैं अपने और आकाश के साथ-साथ घर मॆं किसी का भी मूड खराब करना नहीँ चाहती ,मम्मी जी जैसी हैं ,वो वैसी ही अच्छी लगती हैं मुझे ॥

मैंने बहू कॊ गले से लगाकर इतना ही कहा कि "बस !बेटा तू जैसी है वैसे ही रहना हमेशा "

"जी , बुआ जी आप चिंता न करिये !"

 अचानक मेरी नज़र दरवाजे पर पड़ी मैंने भाभी कॊ उल्टे पाँव दरवाजे से जाते हुये देखा ,मै तो मन ही मन डर गई कि कहीँ भाभी ये न समझ बैठे कि मैं बहू कॊ सीखा रही हूँ ॥

 ओह....सोच ही रही थी कि तभी राकेश भैया की आवाज़ सुनायी पड़ी !

"बात इतनी सी थी..कि बहू ने साड़ी पहनी और तुमने उसे गँवार और न जाने क्या-क्या कह दिया...तुमने तो सबका मूड ही खराब करके रख दिया , जाह्न्वी.....सास बन गई हो, पर अभी तक तुम्हारा बचपना वैसा का वैसा ही है, भला तुम्हें क्या ज़रूरत पड़ी थी बहू कॊ टोकने की ? वो साड़ी पहनकर जाना चाहती है तो तुम क्यों उसे फोर्स कर रही हो कोई दूसरे कपड़े पहनने के लिये ?और तुम बहू कॊ बुलाने गई थी तो क्या उसमें भी तुम्हारे शान मॆं फर्क आ जाता ?"

राकेश भैया ने गुस्से से जाह्न्वी भाभी की तरफ़ देखते हुये कहा ! माँ तो इतनी देर से भैया और भाभी की बातें या फ़िर यूँ कहिये कि बहसबाजी चुपचाप सुन और देख रही थी हमेशा की तरह।

बचपना नहीँ मानती मैं इसे जो आजकल भाभी कर रही हैं ...अरे !वो सिर्फ और सिर्फ अपने ही बारे मॆं सोचती आयी हैं हमेशा से ही ,भूल गई कि जब वो नई-नई आयी थी ब्याहकर इस घर मॆं !

 घर मॆं खुशियाँ तो क्या आती उल्टे सुकून चैन सब जाता रहा था !

 अपनी मर्जी से देर रात तक ऊँची आवाज़ मॆं गाने सुनकर सोना और सवेरे दस-दस बजे सोकर उठना ,न खाना बनाने का वक्त और न खाने का ही था कुछ !

 आधी उम्र हो गई हैं और अब तो बेटे की शादी तक कर चुकी...सास बन गयी लेकिन....अभी भी बस ! अपनी जिद पर अडे रहने की आदत नहीँ गई इनकी....इन्हें अब समझना चाहिये कि हमेशा एक राजा का ही राज़ नहीँ होता और अब तो घर मॆं बहू भी आ गयी है.....!

हे भगवान भाभी को इस उम्र मॆं तो इतनी सद्बुद्धि दे कि वो बेटे और बहू को भी अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने दे.....अब बच्चों को हर बात पर रोकने-टोकने का ज़माना तो रहा नहीँ और फ़िर उनकी खुद की जिंदगी है और अच्छे से जानते और समझते हैं कि उन्हें क्या करना है क्या नहीँ ।

भैया की बातों का जवाब दिये बगैर ही भाभी अपने कमरे मॆं चली गयी ॥

 तभी मैंने देखा कि बहू तैयार होकर आ भी गयी !

कितनी सुंदर तो लग रही थी बहू भारी बॉर्डर वाली जयपुरी साड़ी मॆं...खुद ने तो कभी साड़ी कॊ हाथ तक नहीँ लगाया , हमेशा कभी जीन्स तो कभी सूट वो भी पजामी कुर्ता और अब तो गाऊन पहनने लगी हैं !

मुझे आज भी अच्छे से याद है जब पहली बार गाँव मॆं देवता पूजन के लिये जाना था तो माँ और भैया के लाख कहने के बाद भी इन्होने साड़ी नहीँ पहनी थी.

और तो और जब आकाश छोटा था भाभी ने तो उसे कभी अपना दूध तक नहीँ पिलाया इस डर से कि कहीँ इनकी सुंदरता कम न हो जायें ,!

 सोच ही रही थी कि तभी माँ ने मुझे अपने पास बुलाया और कहने लगी  "उषा देख तो कहीँ तेरी भाभी नाराज़ न हो गई हो?

तेरी मौसी इंतजार कर रही होगी, पोते के जन्मदिन पर सबको ही तो बुलाया है और बहू तो पहली बार जा रही है ,भला उसकी साड़ी पहनने से इसे क्या परेशानी ? खुद तो पहनती ही है उट-पटांग कपड़े, न उम्र का लिहाज और न ही नई बहू की शर्म ,हे भगवान अब तो मेरी इस बहू कॊ सद्बुद्धि दे..."

माँ कॊ परेशान देखकर मैंने समझाते हुये कहा "माँ तू परेशान मत हो ,हाँ ! मै इस बार भाभी कॊ समझाकर ही जाऊँगी...अब तक तो वो अकेली थी घर मॆं ,तो उन्हीं की हर बात पर हाँ मॆं हाँ मिलाते रहे हम सब...लेकिन !अब वो सास बन गई हैं और यदि अब भी भाभी नहीँ समझेगी तो परिवार रूपी ये माला टूट जायेगी और रिश्तों के ये मोती बिखर जायेंगे !"

  मैं माँ कॊ समझा ही रही थी कि तभी बहू मेरे पास आयी और बोली "चलिये न बुआ जी ,दादी जी ...अब देर मत कीजिये वरना तो वहाँ जन्मदिन मन भी चुका होगा "।

बहू के चेहरे की मुस्कान देखकर तो मेरा मन ही खिल उठता है क्योंकि वो है ही इतना प्यारी !

मैंने तभी भाभी के कमरे की तरफ़ इशारा करते हुये बहू से कहा "हाँ बेटा हम सब तो तैयार हैं लेकिन तुम्हारी सास ?"

  तभी बहू ने धीरे से मुस्कुराते हुये कहा   "बुआ जी मम्मीजी भी बस आ ही रही हैं "

"बहू तू अपनी सास की बात से नाराज़ तो नहीँ...?"माँ ने धीरे से बहू कॊ अपने पास बैठाते हुये कहा ।

तभी मैंने जो देखा उसे देखकर मुझे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीँ हो रहा था ,क्योंकि आज सूरज पूरब से नहीँ पश्चिम से जो निकला था....अरे भई मेरी जिद्दी और मॉडर्न भाभी ने आज साड़ी जो पहनी थी और वो भी गुलाबी रंग की !

इससे पहले कि कोई कुछ बोलता मैंने देखा कि भाभी की आँखें भीगी हुई थी और वो मेरा हाथ पकड़कर कहने लगी "सॉरी दीदी मैं हमेशा ही अपनी हर बात मनवाती रही हूँ आप सबसे और बहू पर भी अपनी ही इच्छा थोप रही थी लेकिन हमारी बहू इस नये ज़माने की और पढी-लिखी होँते हुये भी इतनी संस्कारी है कि उसने मेरी बात का कभी बुरा भी नहीँ माना !

आप सब मुझे माफ कर दीजिये...मैं अपने परिवार रूपी माला के रिश्तों रूपी मोतियों को अब और बिखरने नहीँ दूँगी "।

भाभी का ये बदला हुआ रुप देखकर हम सबकी आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गई और हम भाभी कॊ ऐसे देख रहे थे जैसे की पहली बार देखा हो !

तभी माँ अचानक से बोल पड़ी "सवेरे का भुला यदि शाम कॊ घर लौट आये तो वो भुला नहीँ कहलाता ।"

भैया ने बहू के सिर पर हाथ रखते हुये कहा "बेटा जो काम हम पिछले अट्ठाइस सालों मॆं नहीँ कर पायें वो तूने कुछ ही दिनों मॆं कर दिखाया !

सच बेटा तुझे बहू के रुप मॆं पाकर हम सब आज धन्य हो गये ॥


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