इंतज़ार
इंतज़ार


ये आसमान का रंग अचानक से इतना सुर्ख कैसे हो पड़ गया और बिजली भी कड़कने लगी अभी-अभी तो आसमान बिल्कुल साफ दिखाई दे रहा था फ़िर ये अचानक से मौसम कैसे बिगड़ गया ? ऐसा लगता हैं मानों किसी ने लाल रंग से रंग दिया हो आसमान कॊ "!, बिमला का ऐसा सोचना गलत भी तो नहीँ क्योंकि धरती का आँचल रक्तरंजित होता हैं तो उसका असर आसमान पर भी पड़ता हैं और जब अपने मासूम जवान बेटों की लाश धरती की छाती पर बिछी होती हैं तो जहाँ धरती दहाडे मर कर रोती हैं ,वहीँ आसमान भी उसके दुःख में भागीदार बन आँसू बहाता हैं आखिर धरती और आसमान भी तो एक-दूसरे के सुख-दुःख के साथी हैं !
"सुनो मैं छत पर जाकर रस्सी पर फैले कपड़े उतार कर लाती हूँ " ! बिमला ने पति की तरफ़ देखते हुये कहा और सीढियों पर चढ़ने लगी वो छत पर पहुँच भी नहीँ पायी थी कि तभी उसके पति का मोबाइल बज उठा ,ना जाने क्यों मोबाइल की आवाज़ सुनते ही बिमला के पाँव जहाँ के तहां रुक गये और अचानक से उसका जी भी घबराने लगा जबकि मोबाइल का बजना तो एक साधारण सी ही बात हैं पर ! ना जाने क्यों वो सीढियों से उल्टे पाँव ही उतर आयी ,
आसमान ने भी तब तक बरसना शुरू कर दिया छत पर रस्सी पर फैले कपड़े भीग रहे हैं ये तो वो भूल ही गई बस पति के पास आकर घबराई हुई सी बोल उठी "किसका फोन हैं ? रिसीव क्यों नहीँ किया ? "
"अरे ना जाने किसका फोन था कट गया बात ही नहीँ हो पायी मौसम खराब होने के कारण शायद नेटवर्क प्रोब्लम हैं और तू इतना घबरा क्यों रही हैं ?मोबाइल बजा हैं कोई युद्ध का बिगुल तो नहीँ जो रस्सी पर से कपड़े उतारे बगैर ही चली आयी भीग गये ना सूखेसुखाये कपड़े ?" बिमला के पति राधेश्याम ने उसकी तरफ़ देखते हुये कहा !
"पता नहीँ जी जाने क्यों आज अचानक से जी घबराने लगा मोबाइल की घंटी सुनकर पता नहीँ आज राजेंदर की याद बहुत आ रही हैं "!
बिमला के इतना कहते ही राधेश्याम का मोबाइल फ़िर से बज उठा परंतु ! इस बार बिमला मोबाइल के बजने पर ध्यान नहीँ दे पायी क्योंकि जैसे ही इधर मोबाइल की घंटी
उधर सामने ही कमरे में बहू के प्रसव वेदना से कराहने की आवाज़ सुनकर बिमला दौड़कर बहू के पास चली गई !
उसने देखा कि उसकी बहू के माथे पर ठंडे पसीने छूट रहे हैं और मारे दर्द के बेहाल हो रही हैवो झट से राधेश्याम के पास आयी और घबराते हुये बोली "जल्दी से गाड़ी बाहर निकालो बहू कॊ लेकर अस्पताल जाना होगा " !
"अरे तू इतना घबरा क्यों जाती हैं और डाक्टरनी ने तो आठ तारीख बतायी थी और आज तो छः तारीख ही हैं ?"!
"अब डाक्टर भगवान से तो बड़ी नहीँ हैं ना , ये पीडा तो बच्चा होने की ही लग रही हैं जल्दी करो ? ये वक्त बहस करने का नहीँ हैं "!
बिमला राधेश्याम की बात सुने बिना ही अंदर कमरे में बहू के पास चली
गई बहू का दर्द से बुरा हाल था और बिमला वो तो बैग में कुछ पुराने कपड़े और कुछ बच्चे के छोटे कपड़े और बहुत से ज़रूरी सामान फटाफट रखने लगी खुशी के मारे ,कुछ देर पहले की उसके जी की घबराहट शायद कहीँ दब सी गई थी लेकिन राधेश्याम कांपते हाथों से गाड़ी बाहर निकालकर ड्राइवर की प्रतीक्षा कर रहे थे आँखों का सैलाब ना जाने कैसे रोक रखा था मर्द हैं न ! तो हर परिस्थिति में आँसुओं पर विजय पा ही लेता हैं वरना रोने बैठ जायें तो मुसीबत में परिवार कॊ कौन सम्भालेगा वो अपने मन की पीडा कॊ अभी कहे भी तो कैसे बिमला कॊ भी नहीँ कह सकता क्योंकि इस समय बहू कॊ अस्पताल ले जाना बहुत ज़रूरी हैं और बिमला ये सदमा बर्दाश्त नहीँ कर पायेगी ,ऐसी नाजुक हालत में बहू कॊ भी कुछ बता पाना मुमकिन नहीँ बहू कॊ समय रहते अस्पताल ना ले जाया गया तो
मैं बिल्कुल कंगाल ही हो जाऊँगा हे भगवान ये तेरी कैसी माया हैंना इकलौते बेटे का शोक मना सकता और नहीँ दादा बनने कि खुशी कितना अभागा इंसान हूँ मैं बेटे कॊ देश की रक्षा के लिये भेजा था ना कि दुश्मन की साजिश का शिकार होने के लिये कितना बदकिस्मत बाप हूँ मैं "
"सोच ही रहा था कि बिमला ने थोड़ा चीखते हुये कहा "कितने साल लगेंगे गाड़ी निकालने में ? बहू का मारे दर्द के बुरा हाल हैं ज्यादा देर हो गई तो कहीँ बच्चे कॊ "!
बिमला की बात अभी पुरी भी नहीँ हुई थी कि अचानक से राधेश्याम चीख पड़े "कुछ नहीँ होगा बच्चे कॊ मेरे राजेंदर की निशानी कॊ कुछ नहीँ होगा अभी ड्राइवर कॊ फोन किया हैं वो आता ही होगा " राधेश्याम की हालत देखकर बिमला घबराते हुये बोली " राजेंदर की निशानी ? पागल हुये हो क्या ? मेरे राजेंदर का बच्चा होगा देखना ये खुशी की ख़बर सुनते ही वो छुट्टी लेकर आयेगा "!
बिमला की बात सुनकर राधेश्याम सोचने लगे "काश मेरा राजेंदर आ पाता ऊपर वाले ये तेरा कैसा कानून हैं जो घर-परिवार के सब सुख छोड़कर देश की रक्षा के लिये गया हो तू उसकी रक्षा भी ना कर सका " !
"अरे क्या सोचने लगे आप ?
ड्राइवर के इंतजार का समय नहीँ हैं अब आप खुद ही ड्राइविंग करो जल्दी से चलो ?"
"मै मैनहीँ जा सकता बिमला तू जा और हाँ जितना ज़रूरत हो उससे ज्यादा रुपया-पैसा लेकर जाना बहू और बच्चे की अच्छे से देखभाल कराना "!
"अरे आप साथ तो चल रहे हो तो रुपये-पैसे की जिम्मेदारी खुद रखना पता नहीँ क्या हो गया आपको दादा बनने की खुशी में बौखलाओ तो ना "!
बिमला ने थोड़ा मजाक लेते हुये कहा , दादी बनने की खुशी में वो भी तो भूल गई थी कि फोन किसका आया था और राधेश्याम वो तो खुशी और ग़म के बीच में उलझ कर ये भी नहीँ सोच पा रहे थे कि बिमला के साथ बहू कॊ लेकर जायें और अपने पोते या पोती के होने की खुशी मनायें या देश के लिये शहीद हुये जवान इकलौते बेटे की तिरंगे में लिपटी लाश का इंतजार कर !