"माँ की ममता"
"माँ की ममता"
आज कई साल बाद सन्दूक खोलकर देखा तो उसमें रखे पीतल का चिमटा, सिंडासी और चांदी की कटोरी देखकर माँ की याद आ गई। जब ब्याह के समय माँ सन्दूक में सहेज कर रख रही थी ये सब गृहस्थी के सामान और कहे जा रही थी...देख लाडो !बड़े चाव से ये सब तेरी नानी ने दिया था मुझे ...ब्याह में और मैंने भी तेरे पैदा होने के साथ ही सोच लिया था ये पीतल का चिमटा, सिंडासी और कटोरी चांदी की मैं भी तुझे ही दूंगी। ताकि ससुराल में ये सब तुझे दिलाती रहें याद मेरी। माँ कहे जा रही थी और अपनी आंखों की गीली हुई कोर पोंछ रही थी आँचल से अपने। माँ मेरे ब्याह का सामान लगा रही थी और अपने मन को बना रही थी मजबूत और मजबूत ...बेटी की बिदाई के दर्द को सहने के लिए। सच !माँ आज नहीं है लेकिन माँ की दी हुई ये सब चीजें माँ के स्पर्श ममता का अहसास कराती हैं मुझे मानो इन सब में भरी है ममता मां की कूटकूट कर।।