Savita Verma Gazal

Tragedy Inspirational

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Savita Verma Gazal

Tragedy Inspirational

"अटूट रिश्ता"

"अटूट रिश्ता"

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लगता है आज कोमल कुछ उदास और उसके जबरदस्ती मुस्काराने के बाद भी उसके चेहरे की उदासी साफ दिखायी दे रही थी।

इस बार पूरे छः महीने बाद हम दोनों सहेलियों का मिलना हुआ है, यूँ तो अक्सर कोमल और मेरा एक-दूसरे के घर एक -दो महीने मॆं एक चक्कर ज़रूर लग ही जाता था, क्योंकि हम दोनों एक-दूसरे को ज्यादा दिन तक देखे बगैर रह ही कहाँ पाती हैं, लेकिन इस बार बस मैं भी अपनी किट्टी पार्टी तो कभी इनके प्रमोशन की पार्टी मॆं व्यस्त रही।

इनके प्रमोशन की पार्टी पहला ऐसा पारिवारिक समारोह था जब कोमल शामिल नहीं हो पायी थी, क्योंकि उसकी प्यारी बेटी का भी एग्जाम था उस दिन।

पहली बार मैं सबके साथ होते हुये भी खुद को अकेला महसूस कर रही थी।

अभी बेटा भी एक सप्ताह की छुट्टी पर आया हुआ है, तो इसे भी साथ ही लेकर आयी हूँ, क्योंकि ये भी अपनी कोमल मौसी को हमेशा याद करता रहता हैं ...और तरु से भी अच्छी दोस्ती है रवि की !कोमल मेरी बचपन की सहेली हैं और हम दोनों सहेलियों में सगी बहनों से भी बढ़कर प्यार हैं, हम दोनों बचपन से स्कूल और कॉलेज में भी एक साथ ही पढ़े, कोमल के पिताजी आर्मी ऑफिसर थे, किंतु कोमल और उसकी माँ हमेशा अपने गाँव के घर में ही रहते थे, अपने दादा जी के साथ।

मेरे पिताजी शहर में एक डिग्री कॉलेज में प्रिंसिपल थे तो गाँव से स्कूली शिक्षा के बाद हम दोनों सहेलियों ने शहर में मेरे पिताजी के कॉलेज मां ही आगे की पढ़ाई पूरी की !मुझे आज भी अच्छे से याद है कॉलेज के दिनों में एक लड़का था शैलेश जो हमेशा कोमल के इर्द-गिर्द ही रहता था मौका पाते ही....क्योंकि कोमल थी ही इतनी सुंदर।

उसने कई बार कोमल को प्रेम पत्र भी भिजवाये वो भी मेरे ही हाथों से...क्योंकि तब पत्र ही माध्यम होते थे अपने दिल की बात एक-दूसरे तक पहुँचाने के लिये।

मैं जानती थी कि कोमल भी मन ही मन शैलेश को चाहती है, किंतु जैसे ही मैं उसके प्रेम पत्र उसे देती तो वो मेरी जान को आ जाती और हम दोनों मॆं हँसी मजाक के साथ ही खूब झगडा होता था इस बात को लेकर क्योंकि कभी-कभी मैं कोमल को बड़ा तरसाती थी शैलेश द्वारा लिखे प्रेम पत्र को देने में...खूब चिढ़ाती थी और जब तक वो मेरी खुशामद ना कर ले तब तक पत्र उसके हाथों में नहीं पहुँचता था।

सच ! स्कूल और कॉलेज के दिनों की बात ही अलग होती थी।

काश ! वो दिन फ़िर से लौट कर आ जाया करते तो मजा ही आ जाता ॥

वक्त तो जैसे पंख लगाकर उड़ रहा था, मेरे पापा ने मेरी शादी अपने उधोगपति मित्र के बेटे से कर दी जो अच्छी सरकारी नौकरी मॆं था और कोमल की सिफारिश मुझे ही लगानी पड़ी थी उसके माँ और पिताजी से और वो दोनों जल्दी ही राजी भी हो गये थे उन दोनों की शादी के लिये क्योंकि शैलेश ने भी इंजीनियरिंग कर ली थी, उस ज़माने में इंजीनियर लड़के बड़े ही किस्मत वालों को मिलते थे।

हम दोनों एक ही शहर में थी और हमारा प्यार शादी के बाद और भी बढ़ गया था और संयोग की बात ये थी की हम दोनों पहली बार माँ बनने वाली थी वो भी दो-तीन महीने का ही अंतर था।

एक बार हम दोनों ऐसे ही बैठे हुये थे मेरे घर ड्राइंगरूम में जब मेरे पति को पता चला कि कोमल भी माँ बनने वाली है तो अचानक से जाने उन्हें क्या सूझी कि कहने लगे "अरे वर्षा क्यों न तुम्हारी और कोमल की दोस्ती को हम रिश्तेदारी में बदल दें ?"

मैंने उनकी तरफ़ आश्चर्य से देखते हुये हँसकर कहा "जी वो कैसे ?"

क्योंकि हम दोनों ही सहेलियों के कोई ननद या देवर तो थे नहीं जो उनकी आपस में शादी करके रिश्तेदारी जोड़ते !मैं सोच ही रही थी कि इन्होंने फ़िर हम दोनों की तरफ़ देखकर हँसते हुये कहा "भई देखो सीधी सी बात है तुम दोनों मॆं से जिसको भी लड़की या लड़का होगा तो हम अपने दोनों बच्चों का अभी रिश्ता तय करते है आज़ ही।"

इनकी बात पर हम दोनों सहेलियाँ खूब जोर से खिलखिलाकर हँसने लगी और कोमल ने हँसते हुये कहा "लेकिन भाई साहब यदि हम दोनों के ही बेटे या बेटियाँ ही हुई तो....तब आप क्या कीजियेगा ?"

इन्होंने कहा भई मैं शर्त लगाता हूँ कोमल के घर बेटी और हमारे घर बेटा ही होगा ताकि हम कोमल की बेटी को हमेशा के लिये अपने घर की लक्ष्मी बनाकर ले आयें ! सब इनकी बात पर हँसने लगे और मैं प्लेट में रखी मिठाई सबको खिलाने लगी !देखते ही देखते मेरा बेटा रवि और कोमल की बेटी तरु दोनों बच्चे कब बड़े हो गये पता ही नहीं लगा !

लेकिन आज कोमल की उदासी देखकर मैं भी चिंतित हो उठी ! वैसे तो जब कभी कोमल ज्यादा परेशान होती तो अक्सर मेरे पास आ जाया करती थी, परंतु ! इस बार ना जाने क्या जिद्द हुई कि एक रट लगाये थी मैं ही उसके घर आऊं ...।

ये लीजिये मैं अतीत में खोई हुई थी कि कोमल चाय भी लें आयी बनाकर ....वो भी गरमागरम समोसों के साथ !

"ये लें वर्षा गरम-गरम सोमोसे खाओ और चाय पियो और रवि तुम भी लो ना बेटा ....जानते हो तुम्हारे लिये ही मैंने ये समोसे अपने हाथों से बनाये हैं।"

कोमल मेरी और रवि कि तरफ़ देखे बिना ही बोले जा रही थी ...मैं अच्छे से देख और समझ रही थी कि ज़रूर कोई बड़ी बात हैं जो कोमल को इतना परेशान कर रही हैं।

खैर ! हम तीनों ने पहले नाश्ता किया तब तक कोमल की बेटी तरु भी आ गई थी .तरु रवि को अंदर अपने कमरे में ले गई दोनों आपस बातें करने लगे ! दरसल दोनों बच्चे भी एक -दूसरे से खूब घुल मिलकर रहते हैं बचपन से ही

मै और कोमल अंदर दूसरे कमरे में चले आये बहुत देर तक हम दोनों यूँ ही खामोश बैठे एक-दूसरे के बोलने का इंतजार करते रहे ...मैंने ही कमरे में छाई खामोशी को तोड़ते हुये कोमल की तरफ़ देखते हुये कहा ..." कोमल क्या बात हैं तू कुछ ज्यादा ही परेशान लग रही हैं इस बार ?"

"नहीं ....नहीं वर्षा ऐसा कुछ भी नहीं ...बस यूँ ही " कहकर कोमल की आँखों के आँसू बिना इजाजत के उसके गालों पर लुढ़क आये ....

"ए पगली !बता ना क्या बात हैं ?देख रवि कुछ ही दिनों की छुट्टी लेकर आया हैं और हमें थोड़ी देर में ही यहाँ से निकलना होगा क्योंकि उसकी कल दोपहर की फ्लाइट हैं, अब तू जल्दी से बता क्या बात हैं जिसने तेरे चेहरे की रौनक और हँसी दोनों ही छीन ली हैं " ?

कोमल ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रखते हुये कहा "वर्षा मैं तुझे परेशान करना नहीं चाहती थी डा. ने इन्हें कैंसर बताया है और पिछले एक महीने से इनके इलाज में इतना रुपया खर्च हो गया और ऊपर से प्राइवेट नौकरी ही तो थी वो भी छूट ही गयी समझो। बस ! घर के हालात पहले से कितने कमजोर हो गये हैं ...और ऐसे में जहाँ भी तरु के रिश्ते की बात चलती हैं ..सब कुछ पसंद आने के बाद आखिर में बात लेन-देन पर आकर टिक जाती हैं ..और कई रिश्ते हाथ से निकल गये अब तो तरू पच्चीसवां साल भी पार कर चुकी हैं "

कहते-कहते उसकी आँखें तो मानो ऐसी हो रही थी कि अभी बाढ़ आ जायेगी ...मैंने कुछ देर चुप रहने के बाद कोमल की तरफ़ देखते हुये कहा ..

"मेरी नज़र में एक लड़का हैं तू कहे तो बात चलाऊं ?"

"हाँ ....हाँ ...तेरी ही तो बेटी हैं तरु और तुझे पूरा हक है वर्षा जहाँ तू कहेगी मैं ना नहीं करूँगी ....बस देने को बेटी के सिवा अब और कुछ भी नहीं हमारे पास।"

"अरे ! उन्हें तो तो तेरी बेटी के सिवा कुछ चाहिये भी नहीं "

"तो जल्दी से बताना कौन हैं लड़का ? और क्या करता हैं ? देखने में कैसा हैं ?"

कोमल की उत्सुकता ऐसी बढ़ गई जैसे कि किसी बच्चे को नया खिलौना लेने की ....मैंने उससे थोड़ा गम्भीर होते हुये कहा

" लेकिन एक शर्त हैं कोमल लड़के वालों की ?"

मेरी बात सुनकर वो फ़िर से उदास हो गई ..

"शर्त ? कैसी ? वर्षा ...तू तो जानती हैं कि ......."

"अरे पहले शर्त तो पूछ ले ..."

" तो ...तो ..बताना ""शर्त ये हैं कि ..कि .....तू हमेशा खुश रहे ....भई लड़की की माँ खुश रहेगी तभी तो अपने दामाद और समधी और समधिन जी को गरम-गरम समोसे खिला पायेगी अपने हाथों से बनाकर ...."

कहते ही मेरी हँसी छूट गई ...कोमल को अभी भी कुछ समझ नहीं आया था और वो अपलक मेरी तरफ़ देख रही थी .....मैंने फ़िर उसे गले से लगाकर कहा .....

"कितनी पागल हैं न तू ? मेरे बेटे की खुशी को किसी और की खुशी बनाने की सोच रही थी ....मेरे रवि और इसके पापा को, मुझे हमेशा से तरु पसंद हैं और मैं सिर्फ रवि के आने का ही इंतजार कर रही थी तुझे सरप्राइज देना चाहती थी .....पर ! तूने तो एक बार भी मुझसे पूछना ज़रूरी नहीं समझा ? क्या भूल गई रवि और तरु के जनम से पहले ही इन्होंने दोनों बच्चों का रिश्ता भी पक्का कर दिया था ?"

"लेकिन वर्षा ये बात तो सच हैं कि हम दोनों बचपन की सहेली हैं और एक-दूसरे पर जान छिड़कती हैं ....और मुझे भाई साहब की बात भी आज तक अच्छी तरह से याद है....पर ..र ...अब रिश्तें के बारे में इस डर से नहीं सोच पायी कि ...." कहते-कहते कोमल रुक गई मैंने आश्चर्य से पूछा "कि क्या ? बोल ना रुक क्यों गई ...."

"यही की कहाँ तुम राजा भोज और कहाँ मैं ....??"

"चल पगली प्यार और रिश्तों को पैसों से नहीं तौला जाता और....और दिन हमेशा एक जैसे नहीं रहते हैं, और हाँ ! तेरी हिम्मत भी कैसे हुई मेरी बहू को किसी और के घर की बहू बनाने की ? आँ.....? चल मेरी बहू को लेकर आ और हमारा मुँह मीठा करा जल्दी से ..."

कोमल की आँखों में अब आँसू तो थे मगर खुशी के आँसू थे, आज वो मन ही मन खुश थी और यही सोच रही थी कि सचमुच कितना अटूट रिश्ता होता है ये दिल का रिश्ता भी, जिसे दुनिया की बड़ी से बड़ी दौलत भी तोड़ नहीं पाती। कोमल और वर्षा की बात सुनकर तरू और रवि भी मन ही मन बहुत खुश थे और दोनों ही शर्म से आँखें झुकाये अब एक-दूसरे को कनखियों से देख रहे थे ॥



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