मिली साहा

Abstract Inspirational

4.5  

मिली साहा

Abstract Inspirational

सच्ची दोस्ती

सच्ची दोस्ती

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रिया क्या कर रही हो जल्दी करो..... मेरे सभी दोस्त आते ही होंगे। वो सारे स्नेक्स और मिठाइयाँ टेबल पर रखो जल्दी जो मैंने खास अपने दोस्तों के लिए मंगवाई है।

रिया हाथ में स्नेक्स और मिठाइयाँ लाते हुए...... अरे बाबा! आ रही हूँ। ये तुम और तुम्हारे दोस्त मैं तो तंग आ गई हूँ रोज़-रोज़ की इन पार्टियों से।

गौरव मुस्कुराते हुए रिया से........ प्लीज यार, रिया अब फिर मत शुरू हो जाना पार्टी का सारा मूड ख़राब हो जाएगा।

रिया एक ठंडी सांस भरते हुए..... ओके बाबा, तुम्हारे दोस्तों को कुछ नहीं बोलूंगी।

गौरव मुस्कुरा कर वहाँ से जाते-जाते रिया को कहता है अब जल्दी से तुम भी तैयार हो जाओ और तनू को भी तैयार करो।

रिया बेमन से तैयार होने चली जाती है।

उधर गौरव अपने दोस्तों का वेलकम करने के लिए मेन गेट पर मौजूद हो जाता है। फिर सभी दोस्त हँसी ठहाका लगाते हुए एक साथ अंदर आते हैं।

यही उथल पुथल शोर-शराबा, पार्टीज गौरव के घर में हर हफ़्ते की कहानी बन चुकी थी। जिससे रिया और गौरव की निजी ज़िंदगी तो डिस्टर्ब होती ही थी साथ ही साथ तनू की पढ़ाई पर भी इसका बहुत गहरा असर पड़ता था।

किंतु गौरव को इस बात का एहसास बिल्कुल भी नहीं था। उसने तो मानो अपनी आँखों पर पट्टी बाँध ली थी। उसे अपने दोस्तों के अलावा और कुछ सूझता ही नहीं था। यहाँ तक कि अपने काम पर भी बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता था।

गौरव एक बहुत बड़ी सोसाइटी में अपनी पत्नी रिया और बेटी तनू के साथ रहता था। उसकी दोस्ती का दायरा बहुत बड़ा था। आए दिन छोटी बड़ी पार्टियाँ, कभी गौरव तो कभी उसके दोस्तों के घर होती रहती थीं। खूब मस्ती मज़ाक, खाना पीना ऐसा लगता था मानो गौरव की ज़िंदगी उन्हीं दोस्तों के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गई है।

रिया इन पार्टियों में शामिल तो होती थी, किन्तु उसे यह सब बिल्कुल भी पसंद ना था। क्योंकि रिया को लगता था "यह दोस्ती केवल स्वार्थवश ही कायम है। जब तक हम एक दूसरे को खिला पिला रहे हैं, तब तक की ही ये दोस्ती है, मुसीबत के वक़्त इनमें से कोई एक भी काम नहीं आएगा"। उसने यह बात गौरव को कई बार समझाने की कोशिश भी की। किंतु गौरव हर बार यह कह कर टाल देता कि ये सभी मेरे सच्चे मित्र हैं, ज़िंदगी के किसी भी मोड़ पर मेरा साथ नहीं छोड़ेंगे। "तुम तो बेवजह ही मेरे दोस्तों पर शक करती हो।" रिया की समझाने की कोशिश हर बार नाकाम हो जाती थी लेकिन फिर भी रिया अपनी बात पर अडिग रहकर हर बार गौरव को यही बात समझाती रहती थी। क्योंकि उसे यकीन था कि गौरव किसी न किसी दिन तो यह बात ज़रूर समझेगा।

खैर इसी प्रकार दिन गुज़र रहे थे वही पार्टियाँ, मस्ती मज़ाक, खाना पीना आए दिन होती रहती थीं। किंतु एक दिन अचानक एक ख़बर से मानो गौरव के सर पर आसमान टूट पड़ा। दोस्तों के साथ समय व्यतीत करने के चक्कर में पिछले कुछ महीनों से गौरव अपने बिजनेस पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दे रहा था। जिसका खामियाजा गौरव को एक बहुत बड़े नुकसान के रूप में सहना पड़ा। और उस नुकसान की भरपाई हेतु गौरव का सारा बैंक बैलेंस खाली हो गया। गौरव क़र्ज़ में पूरी तरह से डूब गया। उसके लेनदार फोन पर फोन करके उसे परेशान करने लगे उसका जीना दूभर हो गया। उधर दूसरी ओर तनू के स्कूल का रिजल्ट भी बहुत ख़राब आया। एक तो गौरव की परेशानी ऊपर से तनू का रिजल्ट रिया को समझ ही नहीं आ रहा था कि वो क्या करे।

परेशान होकर एक दिन गौरव ने सोचा उसे अपने उन दोस्तों से मदद मांगनी चाहिए जो उसके साथ रोज पार्टियाँ किया करते थे। गौरव में अपने एक एक दोस्त को फोन करके मदद की गुहार लगाई पर सभी ने किसी न किसी बहाने गौरव को टाल दिया। ये वही दोस्त थे, जिन्हें गौरव सच्चा मित्र कहता था। आज उनमें से कोई एक भी ऐसा नहीं था जो उसकी मदद के लिए आगे आता। यहाँ तक की सभी ने गौरव के घर आना जाना भी बंद कर दिया। गौरव के फोन नंबर को भी सभी ने ब्लॉक कर दिया। अब वो अलग ही अपनी पार्टियाँ करने लगे, और गौरव का उसमें कोई आमंत्रण नहीं होता था। गौरव के सामने से वो लोग ऐसे निकल जाते थे जैसे कभी गौरव को जानते ही नहीं थे।

हर तरफ़ से हताश गौरव को रिया की एक एक बात याद आने लगी। गौरव पछताते हुए कहने लगा काश! मैंने रिया की बात सुनी होती तो आज यह दिन देखना ना पड़ता। रिया से गौरव का दुःख देखा नहीं जा रहा था वो उसे बार-बार तसल्ली दे रही थी कि सब कुछ ठीक हो जाएगा।

गौरव और रिया इसी प्रकार परेशान बैठे थे कि तभी अचानक दरवाजे पर घंटी की आवाज़ सुनाई दी। रिया ने जाकर दरवाजा खोला तो वहाँ गौरव का पुराना दोस्त दीपक खड़ा था। गौरव ने पूछा, कौन है? रिया के कुछ बोलने से पहले ही दीपक ने पैसों से भरा हुआ एक बैग गौरव को थमाते हुए कहा, दोस्त बस इतनी ही मदद मैं कर सकता हूँ , इसे रख लो।

गौरव अचंभित होकर दीपक के चेहरे को देखता रह गया। वह तो अपने नए दोस्तों के चक्कर में दीपक को भूल ही बैठा था, कि कभी वो उसका जिगरी दोस्त हुआ करता था। और आज दोस्ती का फ़र्ज़ अदा करने वह मुसीबत के समय मसीहा बनकर आया है।

गौरव की आँखें छलक आईं, उसने दीपक को कसकर गले से लगा लिया, तुम ही मेरे सच्चे दोस्त हो "यार"। मुझे माफ़ कर दो इस चकाचौंध भरी ज़िंदगी में आकर मैं तुम्हें भूल गया था।

दीपक ने बिना कुछ कहे ही गौरव का हाथ थामते हुए पलकें झपकाईं। और राहत की साँस लेते हुए वहां से चला गया।

गौरव के पास तो शब्द ही नहीं थे कुछ कहने को.... क्या कहता कैसे दीपक का धन्यवाद करता। दीपक ने आज जो कुछ भी किया था धन्यवाद शब्द उसके लिए बहुत ही छोटा था।

दीपक की मदद से गौरव का कारोबार फिर से हरा भरा हो गया। पर गौरव को यह बात समझ नहीं आ रही थी कि दीपक को उसकी मुसीबत के बारे में पता कहाँ से चला। तब रिया ने बताया "जब तुम मुसीबत में थे तो तुम्हारी यह दशा मुझसे देखी नहीं जा रही थी, तब मुझे तुम्हारी पुरानी डायरी से दीपक का नंबर मिला जिसके आगे लिखा था, जिगरी यार, मैंने ही दीपक को तुम्हारे बिजनेस में हुए नुकसान के बारे में बताया था।" और मेरे एक फोन करने से ही वो तुम्हारी मदद के लिए तुरंत यहाँ आ गया।

अब गौरव को "सच्ची दोस्ती" का सही मतलब पता चला। वो समझ चुका था जो मुसीबत में काम आए वही सच्चा दोस्त है। हमारी शान ओ शौकत और दौलत देखकर जो दोस्ती करते हैं वो दोस्ती पल भर की होती है। ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर मुसीबत आने पर तो सच्चे दोस्त ही काम आते हैं। उस दिन के बाद से गौरव ने उन मतलबी सभी दोस्तों का साथ छोड़ दिया। और अपने परिवार और बिजनेस पर पूरा ध्यान केंद्रित करने लगा।

नसीब से मिलते हैं सच्चे दोस्त जीवन में, ईश्वर का उपहार होते हैं वो। अगर ईश्वर ने आपको सच्ची दोस्ती से नवाजा है तो उसकी कद्र करना भी सीखिए। 

सच्चे दोस्त तो वो होते हैं जो आपके आँसुओं को थाम ले, ना कि आप को रोता हुआ मझधार में छोड़ कर चला जाए। 



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