Mukta Sahay

Tragedy

4.5  

Mukta Sahay

Tragedy

सच्चाई और सीख का फ़र्क़

सच्चाई और सीख का फ़र्क़

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मिताली स्कूल से घर आ रही थी, अकेली थी और पैदल थी। घर और स्कूल में ज़्यादा दूरी नही थी इसलिए वह पैदल ही आती जाती थी। अभी वह सातवीं कक्षा में पढ़ती थी। वह जिस रास्ते से आती थी उसपर हर समय लोग का आना जाना बना रहता था लेकिन घर के पास सौ कदम का रास्ता थोडा पगडंडी सा हुआ करता था जहां कोई आता जाता नही था। 

उस दिन वह आराम से स्कूल से आ रही थी, लेकिन उसे लगा जैसे कोई उसके पीछे आ रहा है । स्कूल में कई बार अपनी सुरक्षा और ग़लत-सही स्पर्श के बारे में बताया जाता रहा है इसलिए मिताली थोड़ी चौकन्नी हो गई। पलट कर देखने की उसकी हिम्मत नही हो रही थी। वह तेज़ी से कदम बढ़ने लगी। फिर भी वह अपनी सारी हिम्मत जुटा कर पीछे पलटी है तो देखती है एक दीदी चली आ रही थी उसके पीछे और उन दीदी के पीछे कुछ लड़के। 

कभी वे कुछ गंदी बातें बोलते तो कभी वे बहुत ही बुरी तरह हँस पड़ते। 

थोड़ी देर वह दीदी उसके बिलकुल साथ में ही चलने लगी। वे लड़के अब बहुत पास आ गए थे। वैसे तो सड़क में बहुत से लोग थे पर कोई भी उन लड़कों को माना नही कर रहा था। दीदी बहुत ही डरी हुई थी की तभी उन लड़कों में से एक ने दीदी के कंधे पर हाथ रैक दिया और दूसरे ने तो हाथ ही खींच लिया। दीदी ने आगे जाते हुए आदमी को आवज लगाई, चाचाजी इन्हें कुछ बोलिए ना ये मुझे बहुत ही परेशान कर रहे है। उसने दूसरे आदमी को भी कहा देखिए ना ये मुझे परेशान कर रहे हैं लेकिन ऐसा लगा जैसे किसी ने भी दीदी की आवज नही सुनी हो। सभी अपने रास्ते पर चलते रहे। 

मिताली ने अनुभव किया कि इस भेद वाली सड़क में भी कोई उस अकेली लड़की की मदद नही कर रहा है। ना ही किसी को कूच दिख रहा है ना ही कुछ सुनाई दे रहा है। और जब ना दिख रहा है और ना सुन रहा है तो कोई बोले भी कैसे।

तभी अचानक पुलिस की गाड़ी उधर से गुजर रही थी जिसे देख वे लड़के अलग अलग दुकानों या जगहों पर छितर बितर हो गए। उस पल भर के समय में वह दीदी तेज़ी से कहीं आगे निकल गई, इन लड़कों और इस भीड़ से कहीं आगे। जब पुलिस की गाड़ी निकल गई तो वे लड़के उस दीदी को ढूँढने लगे और जब वह कहीं नज़र नही आई तो वह फिर कुछ और काम करने लगे।  

आगे बढ़ते हुए मिताली सोंचने लगी कि उसे स्कूल में सिखाया जाता है बुरा ना देखो, बुरा ना सुनो और बुरा ना कहो लेकिन यहाँ तो लोग बुरा को होते हुए भी नही देखते हैं, ना ही रोकते हैं। लोग बुरा सुन कर भी उसे नही रोकते है और जब कोई मदद के लिए बुलाते हैं तो वह नही सुनते हैं। जब ग़लत के ख़िलाफ़ बोलना होता है तो चुप्पी ले लेते हैं। मिताली अब असमंजस में थी कि जो स्कूल में सिखाया जाता और जो असल ज़िंदगी में होता है क्या अलग होते हैं। उस बाल मन में भीषण दुविधा ने जन्म ले लिया था और साथ में बहुत सारे कठिन प्रश्न। 


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