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Vijay Vibhor

Abstract

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Vijay Vibhor

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सच्चा दोस्त

सच्चा दोस्त

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"सुनिए ! अरे रुको तो ज़रा।"

अपने आगे-आगे जा रही उस खूबसूरत लड़की को वह दबे स्वर से आवाज़ लगा रहा था। लड़की को उसकी आवाज़ सुनाई तो पड़ रही थी, लेकिन वह रुकी नहीं। लड़के ने अपनी चाल और तेज़ कर दी।

"देखो मुझे ग़लत न समझो, मैं आप से सिर्फ़ एक मिनिट बात करना चाहता हूँ।" वह लड़की के पास पहुँच चुका था।

"आप इस तरह मुझे नज़रंदाज़ करेंगी तो यह तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।" लड़के ने लगभग उससे सटकर कान में कहा। यह तो हद ही हो गयी थी। लड़की ने रुककर उसको नज़र भर देखा और, "आप जो भी हैं मुझे आप से कोई वास्ता नहीं है। मुझे इतना मालूम है आप उस टोली का हिस्सा हैं जो स्कूल-कॉलिज आती-जाती लड़कियों को छेड़ती है।"

"आप एकदम सही कह रही हैं। मैं उनके साथ रहता जरूर हूँ लेकिन मैं उनके जैसा लड़का हूँ नहीं। यदि वैसा होता तो आपसे अकेले इस तरह नहीं मिलता। आप यक़ीन करें या न करें आपकी मर्ज़ी।" लड़की चले जा रही थी और वह उसके साथ-साथ सतर्कता बरतते हुए बात करता जा रहा था।" हमारी टोली में कई लड़के ऐसे हैं जो न जाने लड़कियों पर क्या जादू करते हैं कि लड़कियाँ उनके जाल में फंसकर अपने को बर्बाद कर बैठती हैं। मैं आपको आगाह करने आया हूँ।"

"मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी।"

"मत सुनिए। लेकिन इतना ध्यान रखें मेरी भी एक बहन है। जो स्कूल जाती है। जिस तरह मैं उसके लिए चिंतित रहता हूँ उसी तरह दूसरों की बहन, बेटी के मान-सम्मान की भी चिंता करता हूँ। कल को यदि कोई लड़का आपको परेशान करे तो आप निश्चिंत होकर उसको कह देना मैं आपका दोस्त हूँ।" कहकर लड़का अपने रास्ते हो लिया। लेकिन लड़की के मन-मस्तिष्क में खलबली-सी मचा गयी, 'यह दोस्ती का ऑफर कर रहा था या सच में ही......'


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