सबूत
सबूत
उस रात ..घाटी में सारी रात बर्फ गिरती रही ..हत्ता कि सुबह की आमद का काफी वक़्त भी बर्फबारी के हिस्से में आ गया था..गर्म कहवे के घूँट जब हलक से नीचे गए तो हाथ में थामे अख़बार की सुर्खियां भी कुनकुनी लगने लगी... अख़बार क्या !! अब तो हादसों का आईना लगने लगा है । खबरों के मुँह पर इंसानी खून के निशान लगे हुए थे.. लगा कि अभी उबकाई आ जायेगी । अचानक ही तीसरे पेज की खबर ने उसकी रही सही सर्दी भी दूर कर दी..और वो बड़बडाने लगा .." गलत सरा सर गलत ... रिज़वान को मैं अच्छे से जानता हूँ !"
आशीष की घाटी में पोस्टिंग हुए आज एक महीना हो चुका था । और अब वो चप्पे चप्पे से वाकिफ था । छुट पुट घटनाओं के अलावा अभी तक तो शांति थी । कल रात मेजर लियाकत के इलाके में कुछ आतंकी पकड़े गए थे और 2 जवान शहीद हुए थे ..एक आतंकी पकड़ा गया था ...रिज़वान !...ये खबर आशीष के गले से नीचे नही उतर रही थी और उसने मौका ए वारदात पे पहुँचने की ठान ली और मेजर लियाकत से भी मिलने की तलब हुई । कहवे के घूँट अब कड़वे लग रहे थे !
" ओहो !.. आइये आशीष साहब !.. कैसे हैं ?.. कहिये कैसे याद आ गई हम खकसारो की ?"
" गलत !.. लियाकत साहब !.. खाकसार नहीं , जां निसार !"
" हा हा हा !!!.. हाँ सही कहा आपने जनाब !.. किसी न किसी गोली पे अपना ही नाम लिखा है माँ की गोद में लौरी सुने हुए तो बरसों हो गए अब तो घाटी की गोद में गोलियों और बारूदों की लोरियाँ सुनते हैं ..!"..मेजर लियाकत ने इक ठण्डी साँस भरकर कहा .." न जाने किसकी नज़र लग गई इन वादियों को.. ऐसे आसेब बेठे हैं चिनारों पर कि नज़्मों के एहसास किसी ख़ातून की तरह बचकर गुज़रते हैं !..खेर आप कहिये !..कैसे आना हुआ ?"
आशीष ने रिज़वान का ज़िक्र किया कि वो रिज़वान को अच्छे से जानता है और कॉलेज के ज़माने का दोस्त है और वो अनाथ है उसकी परवरिश एक हिन्दू ने की है जो रिश्ते में उसके चाचा लगते हैं ..महेंद्र चौधरी ने ..!मुझे लगता है कि आपने शक कि बिना पर उसे गलत गिरफ्तार किया है !"
" नहीं आशीष साहब !.. वो मुठभेड़ के वक़्त वहीँ बेहोश मिला और उसके पास ही गन मिली है ! "
" सिर्फ उस जगह मिलने भर से ?..पास रखी गन से ?.. हो सकता है कि उसे बेहोश करके लाया गया हो और गन के साथ ...कोई और रंग देने के लिए ..मुझे लगता है कि वो निर्दोष है !"
" आशीष साहब सिर्फ निर्दोष लगने भर से हम उसको नहीं छोड़ सकते !...आपके पास क्या सबूत है उसकी निर्दोष होने का ?.. जनाब ये भटके हुए लोग हैं .. आप खां मां खां !..."
आशीष निरुत्तर हो गया ...खेर आशीष की गुज़ारिश पर रिज़वान को उसके सामने लाया गया ..कोमल रंग ओ सूरत का रिज़वान उसके सामने बेबस सा खड़ा था और आशीष को देखकर उसकी आँखों में इक गुज़ारिश सी तैर रही थी ... उसके हाथ पीछे से बंधे हुए थे और पावों में भी सांकल बन्धी थी...
" लीजिये ! आशीष साहब ये है आपके कॉलेज के ज़माने का गुमराह दोस्त !.."
अभी लियाकत का जुमला पूरा हुआ ही था कि कई गोलियां उसके कान के पास से गुज़र गई .. उनकी चौकी पे आतंकी हमला हो चुका था ...!
आशीष और लियाकत ने फौरन अपना अपना मोर्चा सम्भाल लिया था ... गोलियां चलाते चलाते आशीष और लियाकत पास पास आ गए और दोनों ही मिलकर दुश्मन से लोहा ले रहे थे इस बात से बेखबर कि उनके पीछे इक आतंकी पहुँच चुका है !... इससे पहले की वो पलटे आतंकी ने उन पर गोलियां बरसा दी ...पर एक भी गोली उन्हें लगी... क्योंकि रिज़वान उन दोनों के सामने आ गया था और सारी गोलियां खुद पे झेल चुका था और इतने में आशीष ने उस आतंकी को भून डाला !
5 आतंकी मारे गए... 1 घण्टा चली लड़ाई में । सफेद बर्फ पे कई जगह लहू से खामोश दहशत का अफ़साना लिखा हुआ था ... मेजर लियाकत ने आशीष की बहादुरी की तारीफ की .. नज़दीक पड़ी रिज़वान की लाश को देखकर दोनों सोच में पड़ गए थे !
रिज़वान की लाश की तरफ इशारा करके आशीष ने मेजर लियाकत से कहा " आप इसके निर्दोष होने का सबूत मांग रहे थे न ?... ये है सबूत !!!"
मेजर लियाकत हक्का बक्का खड़ा रह गया और अपनी सर की केप उतार के ठण्डी आह ! भरकर ... रिज़वान को देखता रह गया जिसकी जेब से उसकी माँ की तस्वीर बाहर आ गई थी !