Zahiruddin Sahil

Inspirational

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Zahiruddin Sahil

Inspirational

टिंकू , एक मुड़ा हुआ पन्ना

टिंकू , एक मुड़ा हुआ पन्ना

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उसका नाम टिंकू था...छोटा सा ये लड़का मॉल के बच्चों और मोहल्ले में अक्सर अपनी मासूमियत को लेकर चर्चा में रहता था...मेरा उसकी गली से बार-बार गरीबी होती थी...वो हाथ में दोस्त नमस्ते कहा था.. बताओ तुम्हें दूं--टिंकू एक ऐसी बीमारी है जिसके शिकार व्यक्ति का शारीरिक विकास रुक जाता है। वो भी 12 साल की उम्र में ज्ञान जैसा था..मानो वो कोई इंचीटेप नहीं था जो पांच फुट के बाद ख़तम हो जाता है।

इस अजीब ओ गरीब बीमारी से बचपन वो कंचे लट्टू के खेल में मस्त रहता था। टीशर्ट निक्कर के बाद वो अब हमेशा कुर्ता पजामा पहने रहती थी...उसकी उम्र बढ़ रही थी मगर कद जहां रुका हुआ था..मैं उस नजर एक नोट की थी कि..उसके चेहरे की मुस्कान अब पढ़ी थी.. .पर वो मेरे हंसकर से पूछा गया - "क्या हाल हैं भैया? आज काम पर लेट जा रहे हो?"

"हां आज लेट हो गया! और तुम कैसे हो? तबियत ?दवा ली!"

"हाँ भय्या !! दिल्ली से इलाज चल रहा है..."

मैं कभी-कभी उसके साथ कंचे खेलता था... कुछ दिन वो मुझे नहीं दिखा तो मैं घर के बाहर खड़ी होकर अपनी मां से पूछती हूं __"अतिरिक्त जी कहां हैं क्या साक्षात् जी टिंकू दिखाई नहीं दे रहे हैं?"

"बेटा वो दिल्ली में एडमिट है!"

"ओह !! क्या हुआ है उसे आन्त जी?"

"बेटा अब वो एज पर ही डेट कर चुका है। अब बिजनेसमैन को पता चला कि उसकी दोनों किडनियां खराब हो गई हैं!"

"ओह!!...ये अच्छी खबर नहीं। कौन से अस्पताल में है टिंकू?"

अस्पताल से एड्रेस ले लिया और उनसे मुलाकात का मन बना लिया। इतवार की छुट्टी का फ़ायदा उठा मैं दिल्ली से मिलकर कुछ कॉमिक्स ले गया. उन दिनों कॉमिक्स किराए पर पे मिलती थी। मैं भी किराए पर पे कॉमिक्स ली और अस्पताल पहुंच गया।

टिंकू के वार्ड में पहुंचा तो वो बहुत खुश हो गया, उसने चिर परिचित मुस्कान से मेरा स्वागत किया और नमस्ते के बाद उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया..मैने उसका हाथ तो मिला..उसके हाथ में रोशनी की हरारत नहीं थी..उसके हाथों पर पीलापन सा साफ़ नज़र आ रहा है। मुझसे पूछा गया कि एस्टिएट वो ही मेर तपाक से क्वेस्ट अंटार्कट - "केसे हो भैया?"

"अबे मैं तो ठीक हूँ..तू कैसी बीमार पड़ी?"

"पता नहीं भैया!... पर डॉक्टर कह रहे हैं मैं जल्दी अच्छा हो गया..! एक सप्ताह में!"

"बहुत बढ़िया!! तुम जल्दी अच्छे हो जाओ फिर मैं स्टार फिल्म दिखा कर लाऊंगा!"

“ठीक है भैया !” वह बेहद खुश हो गये कहा.

टिंकू को मारधाड़ की फिल्में बहुत पसंद थीं और मिथुन दा का वो बहुत बड़ा फैन था।

मैंने उसे कॉमिक्स दी जिसमें वह किसी खज़ाने की तरह लपका .."जैसे ही पढ़ लो ।फिरएक्ज़ा करके नई कॉमिक्स ले आ लेगा !"

" ठीक है भैया !"

मैं अपना हाथ पूरी तरह से चल रहा था, मुझे अपने हाथों में अपने हाथ महसूस की ओर ले जा रहा था। जिस हाथ में रोशनी की कोई गर्मी नहीं थी। ..

डॉक्टर अपना वादा नहीं निभाया...एक हफ्ते ही जगह अब 2 हफ्ते हो गए थे ऐसे ही एक महीना गुजर गया। मैं कॉमिक्स लेकर आया हूं और ओर-ओर पढ़ी गई कॉमिक्स वापस ले आता हूं।

इस बार मैं चंदामामा मैगजीन के लिए टिंकू लेकर गया था। उसे दिया तो उसे बड़ी ख़ुशी हुई। जीवित रहते उसने जो बोला उसे सुनकर मेरी पलकें भीग गईं।

उसने मुख से कहा--"भैया! अगर कभी तुम्हें एम्बुलेंस की नींद आ जाए तो बताना। यहां सब डॉक्टर मेरे दोस्त बन गए हैं!!"

उसकी मुझसे बात हंसी भी आई और रोना भी। खैर मैं उसे चंदामामा पकड़ा कर चला आया।

कुछ दिन बाद उसकी अस्पताल से छुट्टियाँ हो गईं। मगर अब वो व्हील चेयर पर भुगतान किया गया था और उसने मुझे अपनी व्हील चेयर भी बड़ी च हक के दिखाई दी.. "देखो भैया मेरी नई गाड़ी!"

उसे कुछ खो जाने का गम कम था वो कुछ पा लेने की खुशी ज्यादा थी।

उस दिन मैंने उसे नई चंदा का करिश्मा दी और एक महीने बाद आने का खुलासा किया। मुझे बाहर जाना था काम से। उन्होंने कहा था _"इतना मैटिरियल काफी है भैया!"

एक महीने बाद मैं वापस लौटा..उसका दरवाजा खटखटाया..एंटी जी ने दरवाज़ा खोला और मैंने कहा, "एंटी जी अभी तक क्या सो रहा है टिंकू? ये कॉमिक्स स्टूडेंट थी और पुरानी वापस लेनी थी!"

"अच्छा !..आओ बेटा अंदर आ जाओ..वो पंख ही याद कर रहे हो।"

उनकी बात मुझसे कुछ अजीब लगी। अंदर तो टिंकू के कमरे में उसकी बड़ी सी तस्वीर लगी थी जिस पर माला चढ़ी हुई थी... उफ्फ !!!.. सारा केस समझ आ चुका था मुझे...अताना ने टेबल पर से चंदामामा उठा के दी... मेन मैगजीन लेकर कुल मिलाकर एक पन्ना मुड़ा हुआ था...शायद वो ये पत्रिका पूरी नहीं पढ़ी थी इसलिए। अचानक से मुझ पत्रिका के अंदर नकली हुई पेंसिल से लिखी एक नमूने मिली जिस पर टिंकू ने पेंसिल से लिखा था..'' चंदामामा के लिए धन्यवाद भैया! और सोरी !!.. शायद आपके साथ फिल्म देखने नहीं जाऊँगा! बाय भैया!"

मैं गुमसुम रह गया। अनंत जी मेरे सामने ही रो पड़े __" बहुत याद आया टिंकू!! कह रहा था भैया तो किताब लेकर भूल ही गया। किताब का बिजनेस बढ़ रहा होगा।"

मेरे दोस्त जी को चुप हो जाओ। उसकी विदाई ली ..मेरी नजर कमरे में रखी टिंकू की बच्ची कुर्सी पर रखी...टिंकू को अब उसका कूड़ा नहीं था ..वो उसका पंख ही जा चुका था ...एक नई डगर ...एक नई राह को .. .!



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