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Zahiruddin Sahil

Drama

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Zahiruddin Sahil

Drama

लक्ष्मी विला

लक्ष्मी विला

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हाँ ! सरोज, आज मन कुछ हल्का सा महसूस हो रहा है। मेरी तरह बूढ़े हो चुके इस मकान को मैंने आज एक स्कूल को दान कर दिया हैताकि वो गरीब बच्चे यहाँ तालीम पा सकें जिससे मैं महरूम रह गया था। हाँ सरोज ! तुम्हारा मेरा ये लक्ष्मी-विला अब हमारा नहीं रहाक्या करता इसका मैं ? एक अकेले के लिए इत्ता बड़ा मकान ?

मुझे कुछ जमा नहींऔर फिर तुम भी तो हाथ छुड़ा कर आसमानों में चली गईं ?

अरे बेटे बेवफ़ा हो गए थे तो क्या ?इसका मतलब ये तो नहीं था कि तुम भी बेवफाई कर जाती ?

अब लक्ष्मीविला में हमारे खांसते रहने की आवाज़ें नहीं आएंगी बल्कि यहाँ पर क ख़ ग A B C D पढ़ने लिखने की आवाज़ें आएंगी। अरे हांवो बुढापा पेंशन का पैसा आज मिला जबकि मैं ये घर छोड़कर जा रहा हूँ। इस पैसे से आज बिट्टू के ढाबे पर खाना खाऊंगा फिर गुड़ वाली चाय अच्छा लग रहा है आखिरी बार अपने घर की चौखट पे बैठकर धूप सेंकना…मुझे अब ऐसे सफ़र को निकलना है जहां अच्छे जूतों की भी ज़रूरत नहीं होती।

एक बात बताये देता हूँ सरोज अब जब भी लौटो तो मुझसे बेटों की शिकायत मत करना न ही लक्ष्मी विला के लिए अपने ज़ेवर बिक जाने की मैं अपने दोस्त अख़्तर और करतार सिंह के पास जा रहा हूँ। हां वो भी अपने बेटों के निकाले हुए हैं। सुना है वृद्धआश्रम में यारों की खूब महफ़िल जमती है। बस वहीं जा रहा हूँहाँ हाँ हाँ !!सुन लिया !सुन लिया !!अपना ख़याल रखूंगा ! अच्छा अब चलता हूँ वरना देर हो जाएगी, हम जल्द ही मिलेंगे ! सांस की डोरी अब बस ख़त्म होने को है !


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