सौभाग्य
सौभाग्य
आज फिर किट्टी में सबकी चर्चा का विषय वह ही थी। उसने कभी चाहा नहीं थी कि इस तरह लोग बाग उसकी चर्चा किया करें। यूं उसने कभी इस तरह का किट्टी ग्रुप भी नहीं चाहा था जहां महिलाएं एकत्रित होकर कुछ रचनात्मक करने की बजाए अपने गहने कपड़े दिखाएं और अपनी सास या बहू की चुगली करें। पर उसकी ससुराल की स्टेटस के लिए यह जरूरी था कि उसके भी किट्टी ग्रुप हो। उसकी सासू मां के पास किट्टी के पांच ग्रुप थे। एक सत्संग की महिलाओं का, एक अपने कास्ट की महिलाओं का, एक ससुरजी के जैसे हैसियत वाली महिलाओं का, एक कॉलोनी की सीनियर सीटीजन का और सासू मां की मॉर्निंग वाकर फ्रेंडस के ग्रुप का था। सासू मां इन ग्रुप की मीटिंग के लिए खास तैयारी करतीं। हर बार अलग- अलग साड़ियां, ज्वेलरी सब कुछ का ध्यान रखा जाता। उसे भी खास निर्देश थे, कभी भी किट्टी में साड़ियों को दुहराए नहीं हर बार नई साड़ी होनी चाहिए। किसी खास प्रकार की ड्रेस जैसे गाउन आदि भी पहनना चाहे तो किट्टी के लिए वो भी स्वकृत था। सासू मां महीने में तीन चार दिन उसे शॉपिंग पर भेज देती। हर बार वह कहती मम्मी सुरेश के साथ जाउंगी। जवाब मिलता मेरा बेटा कोई मजदूर नहीं है हीरा कारोबारी है, वो बीबी के पल्लू में छिपकर शॉपिंग कराएगा तो ये बीस- बीस हजार की साड़ियां कहां से पहनेगी। अरे शुक्र मना कि तुझे ख्रुद से खाने- पहनने की आजादी दी जा रही है। किसी दूसरे के घर ब्याही होती तो पति के खूंटे से बंधी डेढ़ सौ की साड़ी साल में एक बार खरीद रही होती।
वीणा को लगता काश वो पति के साथ जाकर उसकी पसंद की वो डेढ सौ रुपए की अनमोल साड़ी खरीदने की अधिकारी होती।
तेरा सेट पन्ने का है न, मिसेज पाटिल की बात सुनकर उसका ध्यान भंग हुआ। हां, उसने बिना कुछ सोचे ही बोल दिया। बाप रे लेकिन मान गए, कितनी सौभाग्यशाली हो। कितना खर्च करते है पति तुमपर। तुम्हारी ये साड़ी भी तो कांजीवरम ही लगती है। कितने की है। वीणा ने एक मिनट रूक कर दाम याद करने की कोशिश और बता दिया 21 हजार की थी। वाह ब्लाउज आदि तैयार करने में 23 तो लग ही गए होंगे। तब तक मिसेज कटारिया भी उसकी बगल में आ खड़ी हुई। अरे यार वीणा के सौभाग्य की तुलना हम क्या कर सकेंगे। पिछली पार्टी में भी इसने असली हैदराबादी मोती पहन रखे थे। पचास हजार का सेट था। है न वीणा। वीणा कुछ कह न सकी।
हां यार, सौभाग्यशाली ही है। पता है मैं दो महीने में इनके साथ चार बार बाजार गई। तब जाकर एक साड़ी और एक सेट दिलाए। पहली बार ये मोती शो रूम में गए ही नहीं। दूसरी बार तीन हजार का सेट दिला दिया। तीसरी बार तो मीना बाजार में घुसने के नाम पर ही मुझे मुवी का लालच दे दिया। और जाकर चौथी बार में चार हजार की साड़ी खरीदवा सकी हूं। मिसेज पाटील बोलती जा रही थी और वीणा की आंख के सामने सुरेश का हाथ पकड़े मॉल में खड़ी तस्वीर उभरती रही बार- बार।
मिसेज कटारिया कहने लगीं मेरा हाल भी तुम्हारी तरह ही है, जब भी शॉपिंग को कहती हूं कहीं न कहीं घूमने की बात छेड़ देते हैं। कभी पिक्चर तो कभी रेस्टोरेंट, कभी वाटर पार्क तो कभी जूं। कभी चार दिन का बाहर जाने का कार्यक्रम बना लेंगे, मुझे बताते भी तब हैं जब छुट्टी सैंशन हो जाती है। बहुत बुरा लगता है कभी- कभी काश वीण जैसा सौभाग्य होता हमारा है न। तब तक और सखियां चारों तरफ आकर खड़ी हो गई थीं और एक लंबी हूं निकली पर वीणा सोच रही थी काश ! ऐसा सौभाग्य उसका भी होता कि कभी कहीं वह सुरेश के साथ जा पाती। उसके साथ मन की दो बात कर पाती, उससे उसके मन की, काम की, थकान की कोई बात पूछ पाती या कहीं वे दोनो सिर्फ वे दोनों होते भले ही एक कप कॉफी ही पी रहे होते। काश !की सौभाग्य उसके दरवाजे भी दस्तक देता।