sanyukta pariwaar
sanyukta pariwaar
रात को जब सोने को हुई तो देखा ब्लडप्रेशर के पत्ते की यह आखरी गोली थी। खयाल आया अभी जाकर बेटे राजेश को बोल आती हूँ। तो वो सुबह जिम से लौटते वक्त ले आएगा। इनके गुजर जाने के बाद वही मेरी सारी चिंता पालता है। उसकी पत्नी भी बड़ी सीधी व सेवाभावी है, मेरा बडा खयाल रखती है। वहाँ पहुंचकर दरवाजा खटखटाने ही वाली थी। कि उनकी खुसर फुसर की आवाजें मेरे कानों में पड़ी। बहु कह रही थी ,बुढ़िया के जीते जी ही बटवारा कर लो वरना बाद में बड़े भाई साहब फूटी कौड़ी भी न देंगे। अभी तो तुम्हारी माँ मेरे इस बनावटी व्यवहार पर बड़ी लट्टू है।
हम सब से माँ की सेवा भी मांगेंगे जिससे उनका हिस्सा भी हमें ही मिले। और फिर तुम्हारी माँ अब कोनसी सो साल जीने वाली है। भाई साहब तो यूँ भी सरकारी नोकरी में है उन्हें भला क्या कमी है। पर यदि तुम्हारे इस पहलवान दिमाग मे मेरी कही बात अब भी न समझ आई। तो फिर हमारा तो सारा जीवन बस परिवार की सेवा में ही गुजरेगा। फिर खड़े रहना एक एक पैसे को भाई साहब के सामने सर झुकाए। बहु की ऐसी बातों से मन में ऐसा लगा कि आज धन संपत्ति के प्रभाव ने खून के रिश्तों को बोना साबित कर दिया है। वो वक्त ओर था जब रिश्ते इंसानों से हुआ करते थे। अब तो लोग मतलबी ओर रिश्ते व्यक्ति नही बल्कि उसके धन से है। तब मुझे लगा,की इनकी संजोई यह संयुक्त परिवार की माला अब बहुत कमजोर हो चुकी है। ओर किसी भी दिन इसके मोती टूटकर बिखर जाएंगे।
