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Jyoti Dhankhar

Tragedy Inspirational

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Jyoti Dhankhar

Tragedy Inspirational

सावित्री जी

सावित्री जी

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सावित्री जी गांव में रहती थी , दो बेटे और एक बेटी , पति अध्यापक थे , वक्त सही जा रहा था । सावित्री जी दिन भर घर बार के कामों में लगी रहा करती ।


बेटी श्यामा का रिश्ता आ गया और बहुत अच्छे घर से रिश्ता आया तो तुरंत चट मंगनी पट ब्याह कर दिया श्यामा का । श्यामा को अच्छा ससुराल मिला । मां पिता को बेटी की सुखी गृहस्थी से प्यारी क्या खबर होगी ? 


सावित्री के पति सत्यार्थ जी बेहद अनुशासित जीवन जीने वाले और बहुत ही सामाजिक व्यक्ति हुआ करते । एक दिन गांव की बैठक में बैठे थे की अचानक दिल का दौरा पड़ गया और देखते ही देखते सावित्री जी की दुनिया ही उजड़ गई । 


बड़ा बेटा अभी कॉलेज के फाइनल में था , अपने पिता की जगह अनुकंपा के आधार पर सतीश को नौकरी मिल गई । छोटा बेटा दो एक साल बाद अपना कारोबार करने लगा । सावित्री जी ने सतीश को ब्याह दिया उसकी गृहस्थी भी बस गई । सतीश के जुड़वां बच्चे हो गए एक बेटा एक बेटी । सावित्री जी भी रम गई पोता पोती में ।


वक्त बीत रहा था की छोटे बेटे सुनील का भी रिश्ता आया और कुछ ही महीनों में उसका भी ब्याह हो गया । हंसी खुशी वक्त बीत रहा था सतीश के बच्चों के साथ सुनील के यहां भी नए बच्चे के आने की खुशखबरी सुनील ने मां को सुनाई । सावित्री जी ने बहु की सुनील की नजर भी उतारी । वक्त अपनी रफ्तार से दौड़ रहा था ।


 एक दिन किन्हीं पड़ोसियों की कहा सुनी हो रही थी तो सावित्री जी उनको बीच में पड़ कर छुड़वाने लगी तो धक्का मुक्की में गिर गई और लहूलुहान हो गई तो सुनील से देखा ना गया वो लगा उन लड़कों को धमकाने और उनमें से एक ने उसके पेट में छुरा घोंप दिया और भाग गया ।


 सुनील ने मौके पे ही दम तोड दिया , जहां घर में कुछ दिन पहले खुशियां बरस रही थी वहां मातम छा गया । सुनील की बीवी की इस हालत में वक्त से पहले डिलीवरी हो गई , छोटा सुनील आ तो गया , सावित्री जी उसको अपना सुनील मान के तसल्ली दे रही थी पर 23 साल की उम्र में विधवा बहू को क्या सांत्वना दें सावित्री जी यही सोच कर कूढ़ी जाती थी उनकी बूढ़ी हड्डियां । 


उन्होंने पंचायत बुलाई और सुनील की विधवा को अपने बड़े बेटे सतीश का पल्ला ओढ़ा दिया । सतीश की बीवी की रजामंदी से ये काम किया गया । असल में हरियाणा में लत्ता ओढ़ाना एक प्रथा है जहां विधवा का पुनर्विवाह उसी परिवार के उसके देवर या जेठ से कर दिया जाता है , कहीं इस प्रथा के बुरे प्रभाव भी देखने को मिलते हैं और कहीं कहीं घर भी बस जाते हैं । 


अब सतीश की पत्नी और सुनील की पत्नी दोनों ही सतीश की पत्नियां बन गई । दो औरतें अमूमन आपस में नही निभा पाती उनमें आपस में टकराव होता ही रहता है । सतीश इन दो पाटों में खुद को पीसता पीसता गृहस्थी की गाड़ी को चलाने की कोशिश कर रहा था । 


पर दोनों औरतों के साथ सामंजस्य बैठाने की कोशिश में वो नाकाम रहा और अपनी जीवन लीला खत्म कर बैठा ।सावित्री जी अपने दो पोतों और अपनी एक पोती को छाती से चिपकाए शून्य में देखती हैं और सवाल करती हैं भगवान से की क्या बिगाड़ा था मैंने तेरा । 


उम्मीद उन्होंने अभी भी नही छोड़ी , उन्होंने कमर कस कर अपने पोते पोतियों को संभालने का जिम्मा खुद पर ले लिया । आंख का आंसू सूख गया है उनका । इन हालातों में कोई भी टूट कर बिखर जाता है पर सलाम है सावित्री जी की इच्छाशक्ति को कि उन्होंने हर बार टूट जाने पर भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा । 


आज उनका बड़ा पोता सतीश का बेटा सत्येंद्र फौज में अफसर बन कर घर लौटा है और सावित्री जी की बूढी आंखें खुद ब खुद नम हो रही हैं और पोती नव्या को खेलों में स्वर्ण पदक मिला है । 


आज सावित्री जी को अपने ज़िंदा होने का आभास हुआ है , उन पथराई आंखों में एक चमक फिर लौट आई है । आज सत्यार्थ जी की प्रतिमा के आगे फूल चढ़ाते हुए वो सिसक ही पड़ी कि जी, आप जिस जीवन रूपी तपस्या में मुझे अकेले छोड़ गए थे , शायद आज मेरी साधना पूर्ण हुई देखिए आपके पोता पोती आज आपका नाम ऊंचा कर रहे हैं ।


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