Kunda Shamkuwar

Abstract Inspirational Others

4.0  

Kunda Shamkuwar

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साथ साथ

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"अरे, आजकल रीना दिखायी नहीं दे रही है ऑफिस में।" कैंटीन में चाय पीते हुए मैंने कहा। 

मेरे सवाल और मेरी प्रश्नवाचक निगाहों को देखकर वह खामोश रही। मेरी तरफ बिना कुछ कहे वह देखने लगी। वह रीना की अच्छी दोस्त थी तो आउट ऑफ़ कंसर्न मैंने उसे पूछा था। उन निगाहों में न जाने कितनी सारी बातें नज़र आयी। उन निगाहों में क्या कुछ नहीं था?

मैं हल्के से उसकी पीठ थपथपाने लगी। न जाने उसके मन में क्या था कि उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। थोड़ी देर के बाद वह कहने लगी," रीना मैम के हस्बैंड ठीक नहीं है। उन्हें हेल्थ रिलेटेड कुछ इश्यूज है।" उन शब्दों में दर्द था... मैं रीना और उनके हस्बैंड को पहले भी मिल चुकी हूँ... जब मैं उनसे पहली बार मिली थी तो वह मुझे एक खुशनुमा जोड़ा लगा था... मुझे लगा रीना से बात करनी होगी। पता चला की वह अभी हॉस्पिटल में गयी है...

शाम को रीना को फ़ोन लगाया...पति की हेल्थ के बारे में रीना कहने लगी, "कोई जगह नहीं छोड़ी है....सारे हॉस्पिटल हो गए...तुम यकीन नहीं करोगी जो कोई कहता है इस बाबा के पास जाओ.... किसी ने कहा की उस मज़ार पर जाओ वहाँ भी गयी.... बीइंग हिन्दू इवन मैं मज़ार पर भी गयी... यु नो....कोई बाबा नहीं छोड़ा।

मैं उससे बात करती रही..विश्वास रखो। जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा...कहते हुए मैंने फ़ोन रख दिया।

उसको मेरा यूँ बात करना अच्छा लगा था। कभी कही पढ़ा था कि शब्दों में वजन होता है। लेकिन आज उससे बात करते हुए मुझे एहसास हुआ की शब्द क्या कुछ नहीं करते? वे रिश्तों में जान डाल देते है। वे बिल्कुल खोखले नहीं होते...वे सुख दुख में साथ होते है.........

मैं उसे कहना चाहती थी की तुम बिल्कुल कहानी की सावित्री जैसी हो...बल्कि तुम सावित्री ही हो.....सत्यवान वाली सावित्री...



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