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सांझा चूल्हा

सांझा चूल्हा

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बस अटैची में कुछ कपड़े,थोड़े से पैसे,बस यही थाती,,बमुश्किल एक कोठरी किराये पर ले पाये।सुबह की दो कप चाय नीचे का चाय वाला दे जाता , छोटे से प्लास्टिक कप ,,,हलक तक भी पूरी नही पड़ती,,,पास के जैन ढाबे से रोटी और सब्जी लाकर खा लेते,,,कुछ समझ मे नही आ रहा था, आगे क्या होगा।

एक रोज खाते वक्त ही पड़ोसी पति- पत्नी आकर खड़े....

"कब तक ढाबे से खावोगे ,,,तृप्ति नहीं होती इससे"

हमारे पास कुछ भी बर्तन,सामान नहीं है,, ना ही खरीदने को पैसे है ,,मैंने जबाब दिया

कोई बात नहीं ,,मेरी छोटी गैस ले लो ,दो किलो गैस पड़ती है,, यहां पास ही।

बर्तन कुछ भी नही है,,मैंने कहा

मेरे ले कर काम चला लो ,,भाई ,,! ये जीवन है, हारना नही ,बस।

उन्होंने अपनी दुछत्ती से गैस उतार, कर उसे इस्तेमाल करना बताया,,,।

हमने गैस भरवा दी,,गीता ने उन्ही के बर्तन में खाना पकाया , फिर उन्हें साफ कर दे दिया।कभी वो पहले पकाती ,कभी गीता।

मैं रोज की तरह आज भी देर से लौटा,, गीता अभी दो रोटियां ही सेक पाई ,गैस खत्म,,।

असहाय हमदोनों एकदूसरे को देख रहे थे।भूखे हम दोनों थे ।इतनी रात दुकान भी बंद ,ढाबा भी बंद,,।

गीता बाहर गई ,,,बगल के कमरे में लाइट बंद थी वो सो चुके थे,,,।

कमरे के सामने ही पड़ोसी की रसोई थी,बस कुंडी भर लगीं थी।गीता ने कुंडी खोली ,,,उनकी गैस पर अपनी बाकी की रोटियां सेकीं,, और फिर कुंडी लगा दी ।

उसने मुझसे कहा, सुबह बता दूंगी, अभी वो लोग सो गए हैं।

सुबह उठते ही,,सबसे पहले गीता ने उन्हें देखते ही यही कहा- हमने आपसे पूछे बिना रात में आपके चूल्हे पर रोटियां बना ली थी,,,आप नाराज मत होना ।

वो मुस्करा रहे थे,,बोले",मुझे पता चल रहा था,,आवाजें आ रही थी,,",,,फ़िकर मत करो,,,

,ये सांझा चूल्हा है,,,,,,।


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