न्याय
न्याय
रतन जब तक शहर पहुचा 11 बज चुके थे। जल्दी -जल्दी कचहरी की तरफ भागा। वकील साहब ने कहा था अब जल्दी ही फैसला करवा देंगे ।बप्पा मुकदमा देखते- देखते चले गए,फैसला न आया।
लगभग हाफते हुये वकील साहब के तख्ते पर पहुच उसने हाथ जोड़ अपनी हाजिरी जताई।
वकील साहब नीचे से ऊपर तक उसे देखते हुए आश्वस्त भाव से बोले-
"बैठो,अभी बताता हूँ"
रतन, के भीतर आशाओ के दीप जगमगा उठे-फैसला होते ही पहले "समयमाईं "को कराही चढ़ाना है और उस खेत में पहली फसल उखड़ी बोना है,फिर सारा का सारा गन्ना शुगर मिल पर दे ,जो मिल से भुगतान होगा उससे मीनू का इस बरस बियाह करना है।
इन्हों विचारों में डूबा रतन, वकील साहब के पुकारने से हड़बड़ा कर जाग सा उठा।
वकील साहब उसे लेकर किनारे चले गये,
"देखो,रतन!मौके की जमीन है । जज साहब को तैयार कर लिया है, उन्हें ,पेशकार और भी खर्चे जोड़ बस पचास हजार में तुम्हारी बात बन जायेगी ।हम जैसा चाहेंगे जज साहब फैसला वैसा देंगे।एक महीने बाद की तारीख ले लेते है ।तुम इंतजाम कर मेरे पास पहले ही आ जाना।"
रतन पचास हजार सुन सुन्न पड़ गया, माथे पर पसीना चुहचुहा आया, चेहरा पीला पड़ने लगा।
"पचास हजार "
आजी तो बताती रहीं कि,"सामने वाली बगिया के मामले मा गांव में ही पंचायत भई रही और जुगनू का हमार बगिया लउटायेक पड़ा रहा, पंचाइत जुगनू के उप्पर खंसी (बकरा) डाँड़ बोले रहे।"
आज इ जज साहब पचास हजार लेइ है, उहौ हमरै जमीन हमहीं पइसा देई।
अब इ कौन न्याय है, कौन सुराज है। थके कदमों से हताश रतन घर लौट रहा था।