चुनमुन की डायरी

चुनमुन की डायरी

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मम्मा ने मेरी 2 नन्ही चुटिया बनाई। मुझे लाल फक्कू पहनाई, मैं बुआ के साथ कहीं घुम्मी करने गई।बड़ा सा गेट था,खूब बड़ा सा घर।। मैं न् वहां सोफे पर बैठी थी,एक आंटी ने पानी दिया।बुआ ने कहा, मैम जो पूछेंगी बता देना, , ठीक।

मैं बोर हो गई बैठे बैठे।वहां और भी बच्चे अपनी मम्मा-पापा के साथ थे।मुझे लेकर बुआ एक कमरे में गई।वहां ढेर सारे खिलौने, क्ले, फल,गुब्बारे थे।

मैम ने मुझसे बात की वो मुझे बहुत अच्छी लगी,उन्होंने मेरा गल्लू भी छुआ,बोली स्वीट गर्ल।

मैंने सब कुछ बता दिया था,जो मैम ने पूछा था। मैम के कमरे से निकल बुआ ने कहा, ये तुम्हारा स्कूल है, अच्छा है न्।कल से यही आना पढ़ने, मुझे गिनती,पहाड़ा, सारे फलों के नाम,रंग,सब कुछ तो आता था, फिर स्कूल क्यों भेज रही है मम्मी मुझे, मैंने,पूछा, बुआ बोली सभी लोग स्कूल में ही पढ़ते हैं, फिर मैं घर आ गई थी।

मेरा बैग आया बार्बी वाला, पिंक कलर का। मेरा टिफिन और बोतल भी,।मुझे न् स्कूल में बहुत रोना आया, मैं बहुत रोई मैंने सबसे कहा, मुझे बुआ पास जाना है।किसी ने नहीं पहुँचाया, बस सब मुझे चुप कराते रहे। मम्मी  ने पराठा और आलू की सब्जी दी थी, मैंने नही खाया क्योंकि मुझसे पराठा टूट नहीं रहा था। फिर अगले दिन से रोज मम्मी पराठा छोटे छोटे टुकड़े करके देती थी।फिर मैं सारा टिफिन खा लेती। स्कूल अच्छा लगने लगा।

मेरा दोस्त अर्पित और शिवि थी। हम सब एक साथ डांस में थे। बुमरो बुमरो श्याम रंग बुमरो।

मेरी ड्रेस बहुत प्यारी थी, एलो कलर की,मेरी लंबी सी चोटी  बनी थी,खूब लंबी।डांस के बाद पापा मुझे पहचान ही नही पाये।

मैं स्कूल जाते समय रोज पार्क में कबूतरों के लिये चावल डालती,जिसे कबूतरों के साथ गिलहरी भी खाती।

गिलहरी मेरी दोस्त बन गई थी।

मैं उसे मोमफली भी खिलाती, वो मेरे ऊपर भी चढ़ जाती। मुझे गुदगुदी लगती, बहुत प्यारे दिन थे।


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