किरीचें

किरीचें

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बाऊजी,चाय... बाऊजी ने अखबार से बिना नजरें हटाये ही ,हल्का सा सर हिलाया। चाय बगल की मेज पर रख ,अचला किचन में आकर फुर्ती से हाथ चला रही थी ।उसे अभी सभी के लंच-बॉक्स तैयार करने हैं।पति को तुरत -फुरत कुछ नाश्ता भी देना है ।

,'अचला मैं नहाने जा रहा हूँ ,मेरी शर्ट-पैंट निकाल दो।''

''हाँ, आयी।"

गैस की आँच धीमी कर अचला अलमारी से पति की पैंट-शर्ट निकाल कर रख ,पराठे सेंकने लगी।

 तभी अम्मा जी को झाड़ू लगाते देख अचला बोल पड़ी 

''अरे !अम्मा जी,आप क्यूँ लगा रही ,मैं अभी सबको ऑफिस और स्कूल भेज लगाऊंगी न।"

"बिटिया,मुझे भी कुछ करने दिया कर वरना हाथ-पैर बंध जायेंगे।"

असहज अचला बिना कुछ बोले ,अंकुरित मूँग, चना,प्याज,टमाटर,नीबू मिलाती रही।बाऊजी और अम्मा दूध के साथ सुबह यही लेते हैं।

"बाऊजी ,आपका नाश्ता ले आऊँ?"

"नहीं तेरी अम्मा आ जाय तब।"

"ठीक है।''

अचला ने अपनी चाय पी और दूसरे कामों में लग गई ।

आश्चर्य....

अम्माजी आकर बाऊजी और अपने लिये अलग नाश्ता तैयार कर ले गईं।तीन /चार दिन बराबर जाकर अचला पूछती ,बाऊजी मना करते फिर अम्मा जी बना कर ले जातीं।

अचला परेशान,अम्माजी,बाऊजी ने ये कौन सी नई रीत निकाली है।खैर ...उसने कहा कुछ नहीं।

दोपहर में समर भइया और भाभी आये।

अचला पकौड़े बनाने लगी ।तभी उसने अम्मा को कहते सुना -''बहुत थक जाती हूँ। सुबह झाड़ू मैं ही लगाती हूँ।अपने दोनों का नाश्ता भी मुझे ही बनाना पड़ता है।''

"अरे, अचला से मैं बात करूं?"

"नही बेटा,मुझे झगड़े -लड़ाई से बड़ा डर लगता है।वो बस अपने परिवार का ही बनाती है ।"

सन्न हुई अचला ,बुत बनी कढ़ाई में पकौड़ों को लाल से काला होता देख रही थी।


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