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Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract

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Chandresh Kumar Chhatlani

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रसीला फल

रसीला फल

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उस राज्य में सियासी सरगर्मी और बढ़ गयी, चुनावों के मौसम में दंगों के वृक्ष पर पलायन नामक एक फल लगा था। राजनीतिक दल ‘अ‘ का प्रमुख सोच रहा था, इस वृक्ष को मैनें सींचा है, पानी दिया है इसलिये यह फल मेरे लोग खायेंगे, उसी तरह राजनीतिक दल ‘ब‘ का प्रमुख भी सोच रहा था कि इस पेड़ का बीज हमने बोया है, इसलिये इस फल को खाने के अधिकारी मेरे लोग हैं।

दोनों दलों के लोग उस वृक्ष के पास पहुँच गये और अपने-अपने तरीके से उस फल को तोड़ने का प्रयास करने लगे। लेकिन एक दल के कार्यकर्ता उस फल को तोड़ने वृक्ष के ऊपर चढ़ते तो दूसरे दल के कार्यकर्ता शोर मचा कर उन्हें उतार देते और ऐसा ही दूसरे दल के साथ भी होता।

आखिर दोनों जनता की अदालत में चले गए, लेकिन उस अदालत के अनुसार दंगो का वृक्ष अवैध और अनैतिक था।

‘अ‘ के प्रमुख ने रंग बदलते हुए अपनी पैरवी में कहा, "दंगों के पेड़ का बीज 'ब' ने बोया है, इसलिये ‘ब’ बुरा है।"

और ‘ब‘ के प्रमुख ने भी समय को पहचान कर अपनी दलील में कहा, "दंगों के पेड़ को 'अ' ने सींचा है, अतः ‘अ’ बुरा है।"

उसी समय यह समाचार आया कि एक और जगह अकाल नाम का पेड़ अपने आप ही उग आया है और ‘किसान-पलायन’ नाम का एक फल उस पर भी लगा है।

दोनों दलों के प्रमुखों ने तब धीमे स्वर में अपने कार्यकर्ताओं से कहा, "उस राज्य में फ़िलहाल चुनाव का मौसम नहीं है, इसलिए वहां के फल में रस की सम्भावना नहीं।"

और बहस पुनः प्रारंभ हो गयी।


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