रंग भेद
रंग भेद


दोनों उस दिन हमेशा की तरह सुबह की चाय साथ पी रहे थे।
तभी श्रीमती जी ने अखबार पढ़ते पढ़ते पूछा:
"ये आजकल पूरी दुनिया मे रंग भेद का मामला बड़ा गरमाया हुआ है, क्यों ?"
"हम्म"
पति धीमे से बुदबुदाया
"अरे कुछ बोलोगे की बस हम्म हम्म ही करते रहोगे"
पत्नी ने झल्लाते हुए कहा
क्या बोलूँ, ये काले गोरे की लड़ाई कोई आज की है, ये तो पता नही कबसे चली आ रही है"
पति ने कहा
"ये अंग्रेज़ चाहे जितने अपने आपको फारवर्ड या ओपन माइंड कहें, लेकिन दिमाग में इनके कालों के प्रति एक द्वेष रहता ही है"
पति ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा
"बताओ क्या फायदा हुआ इनके इतना पढ़े लिखे होने का"
पत्नी ने रस्क चाय में डुबोते हुए कहा
"देखो, मैं तो इन सब काले गोरे को नही मानती, हैं, क्या दोनों ही इंसान नहीं हैं , क्या दोनों ही हाड़ मांस और वही लाल रंग के खून से नही बने हैं, या इनमें से किसी के अंदर सफेद खून बहता है, कमाल हो गया ये तो
न न हम नहीं मानते ये सब"
पत्नी ने रस्क मुँह में रखे हुए ही कहा
"हाँ हाँ ठीक है , अच्छी बात है ये तो"
पति ने फिर एक बिस्किट उठाते हुए कहा
"क्या अच्छी बात है",
पत्नी फिर झल्लाते हुए बोली
"लो, कह तो रहा हूँ कि ठीक कह रही हो तुम, कमाल है समर्थन करने पर भी बिगड़ रही हो"
पति ने कुर्सी थोड़ी पीछे खिसकाते हुए और अपने पैर फैलाते हुए कहा
"देखो, मैंने तो सोच लिया है कि मैं अमन पर कोई ज़ोर नहीं डालूँगी, अब उसकी मर्जी वो शादी चाहे गोरी से करे या काली से, बस लड़की सुशील होनी चाहिए"
इस बार पत्नी ने फिर एक लंबी चाय की चुस्की लेते हुए कहा।
“हाँ, एक बात उसे ज़रूर कहूँगी की भले लड़की गोरी हो या काली कोई फर्क नही पड़ता लेकिन इतना ध्यान ज़रूर रखे कि लड़की बस नीची बिरादरी नहीं होनी चाहिए"
थोड़े से ग़ुरूर के साथ पत्नी ने फिर से कहा।
अख़बार के पन्ने पलटते हुए शर्मा जी मुस्कुरा रहे थे और सोच रहे थे की क्या रंग भेद सिर्फ पश्चिम में ही है।