arun gode

Inspirational

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arun gode

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रिटायरर्मेंट पार्टी

रिटायरर्मेंट पार्टी

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अरुन एक सरकारी कार्यालय में कार्यरत था। वह एक माह बाद कार्यालय से साठ वर्ष पुरे होने पर अपने पद से सेवानिवृत्त होने जा रहा था। सफल सेवानिवृत्ती के उपलक्ष में उसने एक पार्टी का आयोजन करने का मन में निश्चिय किया था। इसे वह एक अपने जीवन का यादगार लमहा बनाना चाहता था।इस अवसर पर उसने अपने कार्याला के सहकर्मि, मित्रागण, अधिकारी और अपने पुराने स्कूल के मित्रों को सहपरिवार आमंत्रित करने का मन बना लिया था।अपने करिबी रिश्तेदारों के साथ अपनी लडकी, दामाद और लडके को भी इस कार्यक्रम में आने को कहा था। इस बात पर वह अपने अर्धांगिनी के साथ भी चर्चा करना चाहता था। उसे मुककमल अंजाम देने के लिए पत्नि के सामने सेवानिवृत्ती पार्टी का प्रस्ताव रखा। उस पर अरुण कि पत्नि ने प्रतिक्रिया में कहा।

वर्षा : अच्छा हुंआ,जो मैं सोच रही थी। वही ईच्छा आपने प्रगट की। हम इस कार्यक्रम में आप के कार्यालय के अलावा। अपने नजदिक के रिश्तेदार, और स्थानिय परिचितों और आपके मित्रों को परिवार सहित बुलायेंगें। उसकी सहमती के बाद सेवानिवृत्ती पार्टी को सफल करने के आयोजन में हम दोनों जुट गये थे। जैसे- जैसे समय नजदिक आने लगा। दिल की धडकने भी तेज होती गई। फिर मैंने मित्रों को फोन लगाया। अरे क्या कर रहा है।

गुनवंता: उसने कहा, कुछ नहीं, बोल, कैसे आज मेरी सुबह- सुबह याद आई है। और कैसे हो। सब, कुशल मंगल है ना !

अरुण : हां यार। तू बता। तू कैसा है। उसने कहा अच्छा हुं। चलों बढीयां। भाभी के राज में अच्छे रहो वर्णा सिकायत सुनने को मिलेगी। अरे सुन, हमने आनेवाले छह जुन को मेरी सेवानिवृत्ती की पार्टी रखी है। उस में तुझे पपिवार के साथ आना है।श्रीकांत को भी पपिवार के साथ आने का न्योता दे रहा हुं।

गुनवंता: अच्छी बात है। तु उसे न्योता दे दे। हम लोग अपने- अपने पपिवार के साथ पक्का आयेंगें। और मैंने कहा। भुलना मत, पक्का आना है। चलो ठिक है।श्रीकांत को फोन करता हुं।

अरुण : हैलो श्रीकांत, क्या कर रहा है। कुछ नहीं, तुम्हारे भाभी के सेवा में लगा हुं। मैंने कहां। लगे रहो मुन्ना भाई । मेहनत का फल मिठा होता । अरे मिठे फल का तो पिछ्ले तिस साल से आनंद ले रहा हुं। हम दो मुस्कुरायें। अरे सुन, अभी मैंने तेरे पहिले गुनवंता फोन किया था।

श्रीकांत : क्या बात है। किस खुशि में हमें याद किया जा रहा है। 

अरुण : तुझे न्योता देने के लिए फोन किया है।

श्रीकांत : क्या खुश-खबरी है। क्या दुसरी शादी कर रहा है क्या ?। 

अरुण : अभी बुढापे में, क्या दुसरी शादी करनी है।? पहिली तो संभाल नहीं पा रहा हूं। दोनों मुस्कुराने लगे। मैंने कहां, अरे सुन हमने आनेवाले छह जुन को मेरी सेवानिवृत्ती की पार्टी रखी है। उस में तुझे परिवार के साथ आना है। गुनवंता को भी परिवार के साथ आने का न्योता दिया है।

श्रीकांत : अच्छी बात है। हम दोनों अपने-अपने परिवार साथ पक्का आयेगें।

अरुण : पक्का, आप लोगों को आना ही है।खास आप लोगों के लिए मेरे घर में ही पार्टी रखी है।जरुर आना। भुलना मत।

श्रीकांत : नहीं भुलेगें। जरुर आयेगें।

अरुण : अरे यार, सेवानिवृत्ति के पहिले मुझे कितने कार्यालियन कामकाज निपटाने है। उपमहानिदेशक द्वारा मई में सेवानिवृत्त होने के पहिले प्रादेशिक मौसम केंद्र के अंतर्गत आनेवाले कार्यालय के कर्मचारियों के लिए विमानन पुनश्र्चर्या पाठ्यक्रम करवाना है। हैद्राबाद में होनेवाली अखील भारतीय हिंदी संगोष्ठी में भी भाग लेने है। ये सब करके रीटायरर्मेंट पार्टी की भी तैयारी करनी है। समय के साथ चलते –चलते मैंने इन सब कार्य को पुरा किया। रीटायरर्मेंट के आखरी दिन अनुभाग द्वारा मेरे सम्मान में एक पार्टी का आयोजन हुआ था। तीन जुन को प्रादेशिक मौसम केंद्र के परिसर में मेरे लिए कार्यालय के और से एक रीटायरर्मेंट पार्टी परिपाटीनुसार रखी गई थी। कई वक्ताओं ने मेरे कार्य के प्रति अपने –अपने विचार प्रगट किये थे। अंत में मैंने भी अपने विचार, अनुभव और कार्यालय के सहयोगीयों द्वारा दिये गये सहयोग के लिए उन्हे धन्यवाद दिया था। सभी को छह जुन को होनेवाली रीटायरर्मेंट पार्टी में आमंत्रित किया था। इस कार्यक्रम के लिए दामत जी को भी बुलाया गया। कार्यक्रम के दिन सुबह से ही रिश्तेदार आने शुरु हुयें थे। धीरे –धीर माहोल बनता चला गया। शाम होते होते, घ्र्र में अच्छी चहल-पहेल होने लगी थी। कार्यक्रम शुरु हो गया था। मेहमान आने लगे थे। मुझे और श्रीमतीजी को बधाई दे रहे थे। ये सिल-सिला चलता रहा। वो समय आ गया। जब बहुअपेक्षीत मेरे स्कूलीमित्र अपने परिवार के साथ आयें थे। तब मेरे खुशी का कोई ठिकाना नहीं था ।

श्रीकांत: हैलो अरुण, लो मैं आ गया अपने घ्र्रवाली के साथ। ये मेरी पत्नी कांता है। लो इन से मिलो।

कांता : नमस्ते भाईसाहब।

अरुण : नमस्ते भाभीजी। मैं मुस्कुरायां। और बोला ये है तेरी घरवाली।

श्रीकांत : क्या तुझे झूठ लग रहा है ?। भाभीजी से पुछों।

अरुण : मैं क्यों पुछु । शंका तो मैंने जाहिर नहीं की। है ना भाभीजी। मैंने मजाक जारी रखते हुयें कहां। आने दे गुनवंता को, फिर, दुध का दुध और पानी  

का पानी हो जाएगा। मैंने कहा किधर है वो। अभी तक आया नहीं है ।

श्रीकांत : अरे मेरे साथ ही आया है। गाडी लगा रहा है। वो देख दोनों मस्ती से आ रहे है।

अरुण: देख,पती-पत्नी होने से कैसे मस्ती से आते है ? और तुम दोनों कैसे आ रहे थे।

श्रीकांत : तेरे कहने का मतलब, हमें क्या नाचते हुयें आना चाहिए था।हम सब फिर जोर से हसने लगे।

गुनवंता: हाय अरुण,।हाय भाभी, देख मैंने अपना वादा निभाया। हम दोनों आये है।

अरुण : हाय भाभी, मुस्कुराते हुयें कहा। धन्यवाद।, जो आप आये, साथ में बहार लायें । आज के पार्टी की शान बढाई। कल की ईद आज मनाई।चलो मैं अपने परिवार से मिलाता हुं। हम सब लोग घर के हॉल में पहुंचे थे। जहां मेरी श्रीमती हॉल में विराजमान थी। मैंने कहां देखो मेरे मित्र आये है। 

वर्षा : अच्छा हुंआ। आप लोग आ गयें। नहीं तो इनकी पार्टी अधुरी ही रह जाती। अरे भाईसहब अकेले ही आये हो क्या ?

अरुण : गुनवंता, तो अपने परिवार के साथ आया है।लेकिन श्रीकांत के बारे में अभी शंका है।

कांता : अरे भाईसाहब, मैं कौन हुं।

अरुण : मुझे क्या पता। भाभीजी आप कौन है। हम सब मुस्कुराने लगे।

वर्षा :अरे इनकी आदत हमेशा कुछ न कुछ मजाक करने की है। 

अरुण : अरे अपने दोस्तों की मजाक नहीं करेगें,तो किसी दुश्मन की करेंगें ! दोस्त होते ही है मजाक करने के लिए और समय आनेपर मुसिबत में काम आने के लिए। मेरे इस विचार से सभी सहमत थे। सभी ने मुझे और मेरे परिवार को रीटायरमेंट की शुभकामनायें दी। मैंने फिर अपने पुत्र,पुत्री और दामात का एक-एक करके परिचय करवायां था। मेरी पत्नी ने सभी को बैठने को कहां।

वर्षा : अरे अच्छा हुंआ। आप दोनों आई। इस बहाने आप से मुलाखात हो गई। और उसने कहां । गुनवंता भाईसाहब की तो शादी के बाद इस साल मुलाखात हुंई है।वे तो ईद के चाँद हो गयेंथे थे।

शांता : अरे आप इनको जानती है। अरे हां।

वर्षा : अरे ये, इनके बडे भाईसाहब आप के पतीराज, तीनों ही तो मुझे देखने आये थे।

अरुण : हसते हुयें बोला,अरे भाभीजी, इसलिए तो इनका, तिन तिगाडा और काम बिगाडा हो गया है। गलत आदमी के साथ शादी हो गई है।

शांता : वो कैसे, अरे मत पुछो। यह राज की बात है। राज ही रहने दो।

अरुण : राज की बात को, भाभीजी, मैं खोल ही देता हुं। हम सब मित्र हसने लगे। वो समझ गई की राज की बात सिर्फ उसे और कांता को पता नहीं है। वो राज जानने के लिए वो दोनो बहुंत उसुक्त थी। इनकी ये शिकायत है कि मैंने इनके साथ छल किया है।

शांता : कैसा छल। ये गलती से गुनवंता को लडका समझ बैठी। शादी के लिए हां।कर दी थी। अगर उसे ये पता होता कि गुनवंता लडका नहीं है। तो वो मुझे ना कहती। हम सब लोग। जोर से हंसने लगे। 

कांता : अरे उस में क्या बात है। वो हसते हुयें बोली।ऐसा करो। आप अपनी भूल सुधार लो। और अपनी भूल को सुधार लेती हुं। हम सब लोग फिर जोर से हसने लगे।

वर्षा : चलो बहुंत हंसी मजाक हो गई है।वो बोली इनके पिछे पडोगी, तो ये चुटकुले ही सुनाते रहेंगें। आप लोगों का इसी से पेट भर जाऐगा। हमारा खाना बेकार हो जाऐगा। चलो आप लोग खाना खाईयें । हम लोग उन्हे खाना खाने के लिए ले गयें थे। इतनें में मेरे बॉस आ गये थे। हम लोग उन्हें अटेंड करने के लिए फिर चले गये। कार्यालय के मित्रगण भी धीरे –धीरे आने लगे थे।हम उनका स्वागत करते रहे। हमारी रीटायरमेंट की पार्टी चलती रही। आखीर वो घडी आ गई। जब मेरे मित्र मेरे पास आयें। और कहां। खाना तो बहुत अच्छा है। लेकिन पार्टी की व्यवस्था भी अच्छी की है।

अरुण : हां यार, धर्मापत्नी, परिवार और आप लोगों का सहयोग है।मैंने दोनों भाभीयों का आने के लिए विशेष धन्यवाद किया। वे हमारी रजामंदी से अपने –अपने घर चल पडे थे।


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