रिषि का खत ( ग्रहण )
रिषि का खत ( ग्रहण )
प्रिय मनु ,
आज कितने सालों बाद तुम्हें देखा कोर्ट में .. वैसे तो बाते फोन पर ही होती थी पर तुम्हें पता है तुम्हें उस दिन देखकर बस देखता ही रह गया .. कितनी पुरानी बाते आंखों के सामने जो किसी चित्रपट की तरह चल रही थी मेरे .. ! और दूसरी तरफ चल रहा था कोर्ट में क्या मैं दोषी हूं या नहीं ? सब मुझे दोषी ठहराने में लगे थे इस बार में खुद को बचाना नही चाहता था .. इतने साल में मैने खुद को छुपा रखा था ! ऋषि से कुछ और बन गया था पर किसके लिए ! ये तुम जानती हो क्या तुम्हें बताने की जरूरत है ?
हमारा प्रेम कितना सरल और गहरा था पर मनु उसे ग्रहण लग गया था उन 84 के दंगों का !! वैसे 84 का ग्रहण बहुतों को निगल गया था कुछ लाख ( हां कुछ ही लिख रहा हूं.. बड़े से देश में .. बड़े कद के राजनेताओं के लिए ये आंकड़ा बहुत छोटा है ना.. ) लोगों को हत्या कर दी गई और सबसे बड़ी बात यह थी कि उन हत्याओं का गुनहगार कोई नहीं था .. किसी को सजा नहीं हुई उन मौतों के लिए किसी को तो जिम्मेदारी लेनी थी और उन लाखों मौतों का तो नहीं पर मैं शामिल था उस गुनाह में इसीलिए मैंने कोर्ट में सब कह दिया जिंदगी के इस अंतिम पड़ाव पर में उन लाशों का बोझ नहीं सह पा रहा था !
मनु तुम्हें याद है हमारा वो पहली बार एक दूसरे को देखना .. फिर धीरे धीरे करीब आना इश्क़ हमारी इन जिंदगी के इन गलियों में मिला था और साथ चल दिया था .. जैसे वो क्या था "चाहे कोई भी गली तुम चुनो प्रीत मिल जायेगी जी रास्ते बस वैसा ही कुछ हुआ था"
हम दोनों के साथ.. मनु शुरुआती इश्क़ कितना सुकून देता है न...एक ठहराव आ जाता है ज़िंदगी में .. हां मेरे लिए जिंदगी ठहर सी गई थी तुम्हारी उन बड़ी बड़ी आंखों में ..सब कुछ खूबसूरत सा लगने लगा था ..प्यार अपने रंग में रंग रहा था... अलावा तुम्हारे कुछ सूझता नहीं था ..ढेरों सपने देखने लगा था ये दिल और अनगिनत मंसूबे तैरते रहे थे ज़हन में ..एक खुमारी सी चढ़ी होती थी हरदम, प्यार का नशा सिर चढ़ कर बोल रहा था
अजीब सा ही था वो दौर मीठी बेचैनियों और असीम इच्छाओं से लिपटा हुआ... ! वो तुम्हारा आए बड़े कहना और घूर कर देखना उफ्फ मैं तो वही घायल हो जाता था ...जिस वक्त मैंने पहली बार तुम्हारा हाथ अपने हाथों में थामा ठीक उसी वक्त मुझे ऐसा लगा कि दूसरी दुनिया के एक मजदूर नें किसी परियों की दुनिया की रानी का हाथ थाम लिया हो...! तुम्हारे साथ बिताए हुए एक एक पल जैसे सदियों लम्बे वक्त की तरह है ..प्यार के वो लम्हे आज भी उतने ही ताजा है जैसे मानो कल की ही बात हो ..! फिर आई वो ग्रहण वाली रात जहा से सब कुछ बदल गया .. कितनी जिंदगियां उजड़ गई तो कई जिंदगियां खत्म हुई .. हम दोनों भी कहा बचे थे उस ग्रहण से .. हमारे लिए भी तो सब कुछ बदल गया था एक ही रात में .. तुम्हारे साथ जो हुआ क्या वो बदला जा सकता है ? मैं तुम्हें सुरक्षित रखना चाहता था पर नहीं कर पाया इस बात का मलाल मुझे ताउम्र रहा .. में उस रात के बाद पूरी तरह बदल गया था .. एक नया नाम पहचान तो थी मेरी जिंदगी में जो सूनापन पसरा हुआ , उसका अंदाज़ा किसी को नहीं था...उस ग्रहण ने सब कुछ निगल लिया था मेरा और न जाने कितने लोगों का.. जो अभी ढेर सारी बातें की हमने जो पल बीते साथ, वो सब कहीं खो गया था उस रात के बाद से पैदा हुए इस घने अंधेरे में..मैंने ख़ुद को कई बार ढूंढा.. .हर बार खाली हाथ ही लौटा ..!
किसकी गलती थी आखिर इस तबाही के पीछे ? इसका जवाब शायद कभी नहीं मिलेगा.. बस अब और मुझसे नहीं लिखा जा रहा !!
सुनो मनु तुम आती रहना मुझ से मिलने जेल में .. मैं जिंदगी के अपने इन आखरी क्षणों में तुम्हारे साथ कुछ और आखरी पल बिताना चाहता हूं .. जो शायद जीने रह गए थे ..!!
हां तुमने सही कहा था ये प्रेम के मिलन की राह कटिली ही है ...!!
तुम्हारा रिशी ...!!

