Ashish Kumar Trivedi

Inspirational

5.0  

Ashish Kumar Trivedi

Inspirational

रीति रिवाज

रीति रिवाज

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पहली बार गुप्ता जी का दामाद बेटी को पगफेरे की रस्म के बाद विदा कराने आने वाला था। उसके स्वागत की सभी तैयारियां हो चुकी थीं। 

बस एक चीज़ की कमी रह गई थी। बेटी के साथ जो मिठाई, पकवान और तोहफे जाने थे, उनकी पैकिंग रह गई थी। गुप्ता जी, उनकी पत्नी विमला और छोटी बेटी रीमा मिल कर यही काम कर रहे थे। तभी उनकी बड़ी बेटी रोली जिसकी विदाई होनी थी वह भी आकर हाथ बंटाने लगी। रोली ने कहा।

"पापा इतना क्यों परेशान हो रहे हैं। आपको पता है कि मेरी ससुराल वाले पुराने विचारों के नहीं हैं। आप मुझे ऐसे भी विदा कर देंगे तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा।"

गुप्ता जी ने अपनी बेटी को समझाते हुए कहा।

"तुम्हारे ससुराल वाले कोई दबाव नहीं डाल रहे इसलिए तो मैं अपनी खुशी से यह सब कर रहा हूँ।"

उनकी बात सुन कर रीमा बोली।

"पापा एक बात बताइए। इन पुराने रिवाजों को मानने से क्या फायदा ?"

बात का जवाब उसकी माँ विमला ने दिया। 

"बेटा रीति रिवाज तो मानने ही पड़ेंगे। वरना समाज क्या कहेगा।"

अपनी पत्नी को टोंकते हुए गुप्ता जी ने कहा।

"नहीं विमला....रीति रिवाज समाज के डर से नहीं माने जाने चाहिए। उनका पालन तभी तक करना चाहिए जब तक उन्हें निभाने में खुशी मिले। मैं रोली को यह सब इसलिए दे रहा हूँ क्योंकि यह मेरी सामर्थ्य में है और अपनी बेटी को देते हुए मुझे खुशी हो रही है। अगर इसकी ससुराल वालों ने कोई बेजा मांग की होती तो मैं उसका विरोध करता।"

अपने पापा की बात समझते हुए रीमा बोली।

"मतलब ये है कि जो रिवाज समाज में ख़ुशियां लाएं उन्हें मानो पर जब वह गले का फंदा बनें तो उनका विरोध करो।"

अपनी बेटी की समझदारी पर गुप्ता जी खुश हुए। उन्होंने रीमा की पीठ थपथपाई।


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