Rajeshwar Mandal

Tragedy

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Rajeshwar Mandal

Tragedy

रेस्टोरेंट वृतांत

रेस्टोरेंट वृतांत

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कोरोना काल खत्म होते ही पार्क रेस्टोरेंट में आवाजाही शुरू हो गई है।

होटल मालिक,संचालक एवं कर्मी खुश है।

फिर से पांच रुपए वाली चाय पच्चीस एवं दस बीस रुपए वाली काॅफी कोल्ड ड्रिंक्स पचास रुपए में बिकनी शुरू हो गई है। 

क्या रईशजादे क्या लफंगे सबों में कंपीटिशन है पैसों को उड़ाने की। 

जितने रुपए में अभिभावक लोग माह भर का राशन ले आते हैं उतने का बिल उनके शहजादे दो चार दोस्तों के साथ मिलकर फोन पे, गुगल पे या ए टी एम से पेमेंट कर आ जाते हैं। इन युवक-युवतियों के पास पैसा ज्यादा है या वक्त, ये अनुसंधान का विषय है। 

पर जो भी हो, स्टेटस शो करने का एक तरह के पागलपन से ज्यादा कुछ नहीं है ये सब।

रेस्टोरेंट लगभग भरा हुआ है। और सब अपने अपने मे मस्त।

चुपके से कुर्सी ने टेबल के कान में कहा। माह भर हो गया तुम्हारी वाली अभी तक एको दिन दिखाई नहीं दिया रे। कोई नया रेस्टोरेंट तों नहीं खोज लिया वो लोग ? 

टेबल नं झेंपते हुए कहा चुप पागल। वो मेरी वाली कब से हो गई। चूंकि हमारा जगह हाॅल के कोना में है इसलिए उ लोग हमपर बैठना ज्यादा पसंद करते थे ताकि बतियाने में कोई दिक्कत न हो , और कोई बात न थी।

तू अपना न बता। बहुत ऐंठते रहता था तुम उस चश्मैली को देखकर वो भी तो नहीं आई है एको दिन अब तक।

इसलिए कहते रहते हैं तुमको हमेशा मत रहा करो ई सब के फेरा में। किसी का नहीं है ऐसे लोग। पार्टनर चेंज मतलब होटल रेस्टोरेंट चेंज। अब भी कुछ समझा कि नहीं ?

हूं ... ई बात तो है। कल ही कोई बतिया रहे थे यहां पर कि कोई रीभर रिसोर्ट खुला है नदी किनारे। अब ज्यादातर लोग उधरे भागते है। काहे कि......? जानते ही हो।

खैर जो भी हो आधुनिकता के नाम पर ये चलन और परिपाटी ठीक नहीं है। दोनों आपस में बात कर ही रहे थे कि एकाएक टेबल उछल पड़ा। ए देखो ए देखो आ गई तुम्हारी चश्मैली। कुर्सी शर्म के मारे कुछ झेंप सा गया।

तो क्या हुआ, होटल रेस्टोरेंट है यहां कोई भी आ जा सकता है इसमें नयी बात क्या है प्रत्यूतर में कुर्सी ने कहा।

सही है पर भाई , पर एक चीज गड़बड़ है। पहले इनके साथ कोई और आया करता था लेकिन आज तो कोई और है ये क्या माजरा है।

माजरा वाजरा कुछ नहीं होता है ऐसे रिश्तों में। यूज एंड थ्रो की पाॅलिसी पर काम करता है ऐसे रिस्ते। जब तक दिल लगा, स्वार्थ वस लोग एक दूसरे से चिपके रहते हैं।

स्वार्थ खत्म रिस्ते खत्म। किसी बात पर थोड़ी सी भी नोंक झोंक हुआ नहीं कि अगले दिन से बात चीत बंद।

कोई किसी का जीवन साथी थोड़े ही है जो कुछ भी कह लो बर्दाश्त कर लेगा। बड़ा अजीब होते हैं ऐसे रिश्ते।बिड़ले ही मिलेंगे एक आध जो नि: स्वार्थ निर्वहन कर पाते हैं इन रिश्तों को जीवन भर।

रही बात चश्मैली की तो सूनो संक्षेप से मै सुनाता हूं बड़ा ही दुखभरी कहानी है इसका। कुर्सी ने कहा।

बात आज से पांच छः साल पहले की है,उस समय मैं किसी बगान में एक छायादार पेड़ हुआ करता था।

जिसे तुम चश्मैली कहते हो उसका असली नाम शालिनी है। उस समय शायद वह इंटर की छात्रा हुआ करती थी।

उन्हीं का एक सहपाठी था नागेश्वर। लोग प्यार से नागो कहकर बुलाया करता था उसे।

काॅलेज अवधि के बाद वो दोनों अक्सर मेरी ही छाया में घंटो बैठते और इधर उधर की बातें किया करते थे।

थर्ड पर्सन के नाम पर मैं ही सिर्फ था जो उन दोनों का बात चुपचाप सुनते थे। अगाढ़ मुहब्बत थी दोनों में। आते जाते रोज मुझे साक्षी मानकर साथ जीने मरने की कसमें खाया करते थे दोनों। न जानें कैसे इन दोनों के घरवालों की इस बात की भनक लग गई इन रिश्तों की। और मिलना जुलना प्रतिबंधित कर दिया गया। बाबजूद इसके वो लोग कभी कभार यहां आ जाया करती थी।

एक दिन की बात है उन दोनों के परिजन यहां तक ढुंढते ढुंढते पहुंच गए। और बड़ी ही बेरहमी से दोनों की पिटाई की गई। और गुस्से में इनके परिजनों के द्वारा मुझ पर अप्रत्यक्ष रूप से आरोप लगाते हुए मुझे भी जड़ से काट दिया गया। कालांतर में मै इसी रेस्टोरेंट का कुर्सी बना।

छोड़ो आगे की कहानी बड़ा ही दुखद है।

टेबल को आगे सुनने की अभिरुचि बढ़ गई थी। नहीं कुर्सी भाई आगे सुनाओ उसके बाद हुआ क्या?

हुआ यूं कि शालिनी के इस हरकत से परेशान होकर उनके परिजन उसे काॅलेज आने जाने पर रोक लगा दिये और शादी के लिए रिस्ते खोजना शुरू कर दिये।

और अंततः शादी के एक दिन पहले शालिनी और नागो चुपचाप घर से भाग निकले।

जहां तक संभव हुआ परिजनों के द्वारा बहुत खोजबीन किया गया परन्तु वो लोग नहीं मिले। परिणाम हुआ कि समाज में शालिनी के परिजनों को बहुत बड़ी शर्मिंदगी उठानी पड़ी। और इनके परिजन इस घनघोर बेज्जती से आहत होकर भविष्य में शालिनी से कोई रिश्ता न रखने की कसम खा लिये।

इधर नागो के इस हरकत से उनके भी परिजन आहत थे सो वहां भी आश्रय नहीं मिला। यहां तक कि दोस्त यार भी खुलकर सामने आने से कतराने लगे। कुछ दोस्तों ने थोड़ा बहुत आर्थिक मदद तो किया लेकिन सब की सीमा होती है।

दूसरी तरफ कोविड काल शुरू हो चुका था। काम धंधा भी मिलना बंद हो चुका था। रुम रेंट तो दूर की बात राशन पानी के लिए भी पैसे न थे। आखिर कब तक ऐसा चलता।

अन्ततः जीवन से परेशान होकर दोनों ने एक खतरनाक निर्णय ले लिया। और सुबह सुबह उफनती नदी में दोनों एक साथ छलांग लगा दिये। तेज धार में नागो का तो पता नहीं चला परंतु शालिनी को अर्धमृत अवस्था में एक मछुआरे के द्वारा किसी तरह बचा लिया गया। और मानवता का परिचय देते हुए मछुआरे ने ही स्वास्थ्य रक्षा से लेकर आम आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहे। और कालांतर में मछुआरे ने शालिनी की शादी अपने ही लड़का(रमेश) से कर दिया। आज जो सज्जन शालिनी के साथ है वह कोई और नहीं बल्कि उसी मछुआरे का पुत्र और शालिनी का पति है।

चूंकि शालिनी पढ़ी लिखी है सो वह भी किसी कंपनी में काम करने लगी है। मछुआरे का पुत्र भी अपने पैतृक व्यवसाय से कुछ अर्थोपार्जन कर ले रहा है।इस प्रकार अब दोनों का गृहस्थ जीवन बढ़िया चल रहा है।

चूंकि शालिनी के परिजन पहले ही शालिनी से सारे रिस्ते नाते तोड़ने का ऐलान कर चुके थे। और समय के साथ शालिनी को भी अपने कृत्य का अपराध बोध हो चुका है सो वह भी कभी मायके की ओर जाने जीद नहीं किया।

पूर्व की गलती को भूलते हुए अब जीवन की नई पारी को शालिनी अच्छे से जीना चाहती है।

रात के दस बज चुके है। शालिनी ने अपने हाथों कूल तीन सौ पचास रुपए बिल बुक में रख दी है। शायद शालिनी की यह पहली तनख्वाह थी। रमेश (पति) को प्यार वस छेड़ते हुए बोली अब तो चलिए कि यहीं रहियेगा।

कहानी सुनते सुनते टेबल की आंखे नम हो चुकी थी लेकिन नव दंपती की तरह दोनों का एक दूसरे के प्रति स्नेह देख टेबल क्लॉथ से अपना आंसू पोंछते हुए टेबल ने बस इतना ही कह पाया भगवान सलामत रखे इन जोड़ों को।


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