Madan lal Rana

Abstract Children Stories Inspirational

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Madan lal Rana

Abstract Children Stories Inspirational

रामू की दिवाली

रामू की दिवाली

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रोशनियों का त्योहार दीपावली तो वैसे हर वर्ग के लोगों में खास महत्व रखता है पर विशेष कर यह पर्व तो जैसे खासकर बच्चों के लिए ही बनाया गया है। पटाखों के धूम-धड़ाके पर जोर-जोर से चिल्लाकर शोरगुल करना और फुलझड़ियों की रंग बिरंगी रोशनियों में उछल-उछलकर नहाने में तो जैसे उन्हें स्वर्ग का आनंद मिलता है।

     दशहरा गुजरते ही बच्चों में दिपावली का सुरूर छाने लगता है। दिपावली को लेकर मन में विभिन्न प्रकार की तैयारियां भी शुरू हो जाती हैं जिनमें मुख्य रूप से पटाखों को लेकर होती हैं। मां-बाप चाहे लाख घर की रंगाई-पुताई, लक्ष्मी पूजन, दीया-बत्ती, कपड़े मिठाई और अन्य तैयारियों पर तरजीह दे पर बच्चों का बस एक ही चीज पर ध्यान केंद्रित रहता है और वो है पटाखे।

     आठ साल का राहुल भी दीपावली को लेकर खासा उत्साहित था। जैसे-जैसे दीपों का त्योहार दीपावली नजदीक आ रही थी राहुल की व्यग्रता बढ़ती जा रही थी। विद्यालय के सहपाठियों एवं आस-पड़ोस के मित्रों के साथ जमकर दीपावली की चर्चाएं हो रही थी, खासकर पटाखों की।

    और जब यह अंधकार पर प्रकाश के विजय का प्रतीक पर्व दीपावली आयी उसका खुशी का ठिकाना ना रहा। सुबह से ही सारे घर में खुशी से‌ चहकते हुए उछल करता रहा कि कब शाम हो । पापाजी ने उससे वादा किया था कि उसे ढेर सारे पटाखे ला देंगे। इस बाबत सैकड़ों बार वह मम्मी से पूछा चुका था कि--"मम्मी, पापाजी पटाखे ला देंगे ना.?"और हर बार मम्मी का यही जवाब होता था कि ---"हां बेटा क्यों नहीं ला देंगे जरूर ला देंगे। "

    जवाब पाकर वह कुछ समय शांत अवश्य होता था। मगर उसका मन अशांत ही रहता था और यह क्रम तबतक चलता रहा जबतक कि उनके पापाजी घर नहीं आ गये।

    सारा घर दीपों और मोमबत्तियों से सजाया जाने लगा। राहुल पापा और मम्मी के साथ दौड़-दौड़कर दरवाजों, खिड़कियों, चारदीवारियों, छत की मुंडेरों आदि पर मोमबत्तियां रख-रखकर सजा रहा था। जब सब जगह मोमबत्तियां रख दी गयीं राहुल ने पापा जी से पटाखे मांगे--"पापा.!!लो सारी मोमबत्तियां जला दीं अब तो मेरे पटाखे दे दो"

    पापा यानि राकेेश मुस्कुराकर बोले---"अभी नहीं बेटा.!! पहले माता लक्ष्मी की पूजा तो कर लो.!!

   पापा के मना करने पर उसने मम्मी से लिपटकर आग्रह करने लगा---"मम्मी, पापा से पटाखे दिला दो ना.!!देखो सब जगह पटाखे और फुलझडियां चल रही हैं। "

     मां तो मां होती है। राहुल की मासूमियत पर वह तुरंत पसीज गयी और राहुल के पापा से बोली---"सुनो जी, इसे पटाखे दे दीजिए ना.!!"बच्चा है दो-चार पटाखे और फुलझडियां चलाएगा फिर खुद ही थककर सो जाएगा। " 

     ‌ " तुम भी गजब करती हो शालिनी, बच्चा है ऐसे कैसे दे दूं पटाखे इसके हाथ में कहीं कुछ उन्नीस-बीस हो गया तो.?"--उसने पत्नी को समझाते हुए कहा।

    "अच्छा ठीक है बाबा.!!"---फिर राहुल से मुखातिब होकर बोली---"तो ऐसा करते हैं राहुल.!! चलो हम लोग जल्दी से पूजा कर लेते हैं फिर एक साथ सब मिलकर पटाखे चलाएंगे। ठीक है.?"

     " हूं..!"---राहुल ने मायूस हो थीमें से सर हिला कर सहमति जताई और सब नीचे चले आये।

     तीनों ने मिलकर श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी की पूजा की और प्रसाद आदि ग्रहण कर छत पर आ गये।  

      सारा छत पहले की तरह मोमबत्तियों से जगमगा रहा था और केवल अपना ही छत क्यों सारा मुहल्ला दीपक और सजावट की इलैक्ट्रिक बत्तियों की रोशनियों से नहा रही थी। दीपक और सजावट की इलैक्ट्रिक रंग-बिरंगी बत्तियों की जगमग देखते ही बनती थी। राहुल का बाल मन खुशी से झूम उठा। कुछ पल के लिए पटाखे चलाना भूलकर वह नजरें घुमा घुमा इन नजारों का लुत्फ उठाने लगा। वह कभी दीपों और इलैक्ट्रिक बत्तियों की झिलमिल तो कभी आसमानी पटाखों की रोशनियों को देखकर खुश होता। इसी प्रकार चारों तरफ घुमकर नजारा करती हुई उसकी नजरें आखिरकार एक जगह आकर स्थिर हो गयीं और खुशियों से छलकता चेहरा अचानक एकदम से उदास हो गया। उसे बहुत देर तक शांत देखकर उसके मम्मी पापा को जब आश्चर्य तो उससे पूछा---"क्या हुआ राहुल बेटे.?"

     "पापा.!!वो देखो। "---राहुल ने एक तरफ उंगली उठाकर बताया।

 ‌     "हां...बोलो बेटे, उधर क्या देख लिया तुमने.?"---पापा ने आश्चर्य पूछा।

     "पापा.!!रामू के घर में बिल्कुल अंधेरा है" ---राहुल ने बड़ी मासूमियत से उस घर की तरफ इशारा करते हुए कहा तो राकेश ने देखा अपने घर के सामने वाली सड़क के उस पार, इतनी सारी रोशनियों के बीच एक झोपड़ीनुमा घर हल्के अंधेरे में डूबा हुआ था। उस घर के दरवाजे पर मात्र एक दीपक जल रहा था और उसके बगल में खड़ा था राहुल के ही हम उम्र सा एक लड़का जो दूर से ही आस-पड़ोस के घरों की रोशनियों को अपनी उदास-उदास आंखों से देख रहा था। राकेश समझ गया यह दीनू काका का घर है जो अक्सर बीमार रहा करता है और उसकी बीवी आस-पड़ोस के घरों में चौका-बर्तन का काम कर अपना और अपने परिवार का पेट भरा करती है। मगर उसे आश्चर्य हुआ कि राहुल को इन सब बातों से क्या मतलब.? सो उसने राहुल से पूछा---

     "हां तो.?"

     "रामू बहुत गरीब है ना पापा.?"---राहुल ने बड़ी ही मासूमियत से पूछा तो मां-बाप के सर चकरा गये। आखिर इतनी समझ इसमें आयी कहां से। अबतक पटाखों के लिए बेेेचैन अचानक इतना शाांत कैसे हो गया और रामू का जिक्र कर यह जताना क्या चाहता है.? बहरहाल राकेश ने उसका समर्थन किया।

      "हां बेटा वो बहुत ही गरीब है मगर तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो.?"

      राकेश ने बेटे राहुल से बड़े प्यार से पूछा और मां हतप्रभ सी दोनों के बीच के संवाद को सुन रही थी।

 ‌‌     "क्या हम अपने थोड़े से पटाखे रामू को नहीं दे सकते पापा.? वो मेरा फ्रेंड है"----राहुल ने जब अपने मां-बाप की आंखों में झांककर ये बात जाहिर की तो उन दोनों का कलेजा मुंह को आ गया। राकेश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा। वे राहुल की भावनाओं को समझ चुके थे। उन्हें अपने पुत्र पर गर्व हुआ और दोनों ने भाव विह्वल हो उसे गले लगा लिया। फिर सामान्य होने के बाद राकेश ने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा---"हां.. हां बेटे क्यों नहीं दे सकते, अवश्य दें सकते हैं, पर ये पटाखे तो थोड़े से हैं ऐसा करते हैं हम तुम चलकर थोड़े और पटाखे और मिठाइयां खरीद लाते हैं और रामू को गिफ्ट कर देते हैं ठीक.!!"

    "हां पापा पटाखे और मिठाइयां देखकर बहुत खुश होगा रामू , चलो..चलो। "---राहुल ने खुशी से उछलते हुए कहा और पापा का हाथ पकड़कर छत से नीचे ले जाने लगा।  

    और थोड़ी ही देर में कपड़े मिठाईयां पटाखे वगैरह लेकर राहुल अपने मम्मी पापा के साथ रामू के घर पहुंचा। रामू पूर्ववत् एक मात्र टिमटिमाते दीये को निहारते हुए खड़ा था। जैसे ही उसने अपने मम्मी पापा के साथ राहुल को आते देखा, दौड़ते हुए आया और रामू के हाथ में एक बड़ा सा पैकेट देखकर बोला---"राहुल तुम.!!मेरे लिए पटाखे लाये हो.?"

  ‌‌"हां ये लो पैकेट सब तुम्हारे लिए है"---राहुल ने खुशी-खुशी उसे पैकेट थमाते हुए कहा और दोनों बाल मित्र आपस में वार्तालाप करने लगे। राकेश और शालिनी मंत्र-मुग्ध हो दोनों मित्रों का कौतुक देखने लगे। जब कुछ समय बीत गया शालिनी ने रामू से पूछा    

    --"बेटे रामू तुम्हारी मम्मी कहां है, क्या अभी तक काम से नहीं लौटी है.?"

   "नहीं आंटी, पर वो आती ही होगी। "---रामू ने तनिक शालिनी की तरफ देखते हुए कहा।  

 ‌‌    इतने में घर के अंदर से किसी के खांसकर बोलने की आवाज आयी---"कौन है रामू.?"   

    "पापा.!! राहुल अपने मम्मी पापा के साथ आया है मेरे लिए पटाखे लेकर आकर देखो ना"---रामू ने जोर कहा।

    थोड़ी देर बाद अधेड़ उम्र सा दुबला पतला आदमी झोपड़ीनुमा घर से निकला और कमजोर आवाज में बोला--"राकेश बाबू आप.?"

     "हां दीनू काका दीपावली का त्योहार है सोचा रामू के लिए थोड़े पटाखे और मिठाइयां ले चलूं। "  "इसकी क्या जरूरत थी राकेश बाबू.!! पहले से ही हम आपके एहसासों तले दबे हैं। किसी तरह यह त्योहार भी निकल ही जाता। "---दीनू काका ने काफी हीन भाव से कहा तो तुरंत राकेश बोल पड़ा ----

   "ऐसा नहीं है दीनू काका.!! एक पड़ोसी होने के नाते हमारा फर्ज बनता है कि ऐसे मौके पर कोई दुखी ना हो। पर सच कहूं दीनू काका.? मैं तो भूल ही चुका था। वो तो राहुल ने हमें याद दिलाया तब जाकर ये सब कर पाये। "---राकेश ने चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए उसे समझाया।

    "बड़ा उपकार आपका राकेश बाबू पर ये कर्ज मैं कैसे चुका पाऊंगा। "--- दीनू काका ने कृतज्ञतापूर्वक हाथ जोड़ते हुए कहा तो राकेश ने लपक कर उसका हाथ पकड़ते हुए कहा---

   "क्या करते हो दीनू काका आप टेंशन मत लीजिए और रामू के साथ एंजॉय कीजिए। अब हमें जाना होगा। "---कहकर उसने राहुल से कहा ---"राहुल बेटे.!!चलो अब अपने घर चलते हैं। तुम्हें भी पटाखे चलाने हैं ना.?"

    राहुल जो रामू के साथ कैंडल जलाने में मसगूल था पापा की आवाज सुनकर कहा---"हां पापा चलो। ?   --कहकर उसने अपने मित्र रामू से और कुछ देर बात की और वापस जाने के लिए पापा की तरफ पलटा।

     रामू का घर राहुल और रामू ने मिलकर कैंडल से सजा दिया था। अब उसका भी घर दीपावली के दीयों और मोमबत्तियों से जगमग कर रहा था साथ ही उसी रोशनी में रामू का चेहरा भी खुशी से चमक रहा था।  


यह कहानी सर्वथा स्वरचित और काल्पनिक है। इसका अन्य किसी कहानी से मेल मात्रा संयोग होगा।

 

     


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