मेरे जीवन साथी भाग--४
मेरे जीवन साथी भाग--४
बुआ के घर से लड़की पसंद कर नंदकिशोर वापस घर आया और मां -पिताजी को सारी बातें बताई। मां पिताजी ने रजनी के घर वालों से बात-चित कर रजनी और नंदकिशोर की शादी तय कर दी।शादी में एक-डेढ़ महीने की देरी थी इसलिए नंदकिशोर वापस राजस्थान चला गया।अब आगे........
डायरी को अंतिम पन्ने तक पढ़ने के बाद मनीष डायरी बंद कर बेड पर लेट गया और दोनों हथेलियों को जोड़ अपने सर के नीचे रखकर छत को घूरने लगा।
वह सोच रहा था आगे क्या होने वाला हो सकता है,आगे घटनाएं क्या मोड़ ले सकती हैं।समय कब और कैसे करवट बदलेगी यह आजतक कोई नहीं जान सका।हो सकता है आने वाला समय पिताजी के लिए अत्यंत खुशियों वाला संदेश लेकर आया हो या हो सकता है उनका आगे का जीवन दुखमय होकर बीता हो।
यूं तो हर इंसान को अपने माता-पिता की बीती जिंदगी के संघर्षों की, उनके द्वारा बताती गयी संक्षिप्त जानकारी ही होती है पर यदि उन्हीं घटनाक्रमों को लिपिबद्ध कर रखा गया हो तो उन्हें पढ़कर महसूस करने का आनंद ही कुछ और होता है साथ ही रहस्य,रोमांच के साथ एक-एक बारीकियों का भी पता चलता है।
दोपहर हो चुका था । पीहू खेलते-खेलते उसकी बगल में ही सो चुकी थी और मनोहर उसे पढ़ने में व्यस्त देख वहां से कब का भाग चुका था।उसने मनु को आवाज लगाई।मगर प्रत्युत्तर नदारद।उसे प्यास लगी हुई थी।सोचा मनु आ जाए तो काम बन जाए।सीधे मिसेज को बुलाना मतलब मुसीबत को दावत देना क्योंकि आज संडे होने के नाते ना जाने क्या-क्या प्रोग्राम बना रखी होगी।आते ही तुरंत अपने तफरीह का पुलिंदा खोल देगी। बेहतर है थोड़ा सा प्यास को ही बर्दाश्त कर लिया जाये।पर मेरी आवाज का जवाब क्यों नहीं मिला,कहीं वे दोनों भी तो नहीं सो गये.? या फिर कहीं बिना बताए पड़ोस में घूमने तो नहीं निकल गयी.? चलो कहीं भी गयी है,बला तो दूर है।
सोचा जाकर खुद ही पानी पी आऊं तो अच्छा है। इसलिए अपने बेडरुम से निकलकर कीचन पहुंचा और जैसे ही वाटर फिल्टर से पानी लेने के लिए ग्लास उठाकर वाटर फिल्टर की टूंटी से लगाया,वह हाथ से छूट गयी और एक झन्नाटेदार आवाज के साथ फर्श पर देर तक नाचती रही। मनीष जब तक इस अप्रत्याशित् घटना को समझ पाता आवाज सुनकर घर के बाहर खड़ी श्री मती जी दांत पीसकर गर्राती हुई किचन की तरफ दौड़ी ----"हट-हट.... कमबखत ठहर अभी तुझे बताती हूं।नासपीटी बिल्ली ने तो नाक में दम कर रखा है,पता नहीं क्या गिरा दिया होगा।"
मगर जैैेसे ही वह किचन में घुंसी सामने मनीष को देखकर दंग रह गयी। बिल्ली को चपत लगाने के लिए उठे हाथ उठे ही रह गये और बचाव के मुद्रा में अपनी दोनों हथेलियों को चेहरे सामने कर सहमे खड़े मनीष को देख खिल-खिलाकर हंस पड़ी। हंसी को नियंत्रित करते हुए उसने कहा---"बच गये बच्चू..!वरना आज मेरे हाथ से पिट ही गये होते तुम। मगर तुम यहां कर क्या रहे थे और ये आवाज कैसी थी.?"
"कुछ नहीं यार, पानी पीने के लिए आया था पर जैसे ही ग्लास टूंटी के नीचे लगाया हाथ से छूटकर फर्श पर गिर पड़ा था।"---मनीष ने झेंपते हुए कहा।
"बताओ भला, और मैं ये सोचकर भागी-भागी आयी कि कोई बिल्ली किचन में घुसकर सत्यानाश कर रही है।इतना सा काम भी तुम ढंग से नहीं कर सकते क्या.?"---जैसे हंसी रुक ही नहीं रही
हो श्री मती जी ने हंसना बंद कर कहा और फिर हंसने लगी।
"अब हंसती ही रहोगी या ये भी बताओगी कि आखिर तुम थी कहां,कितनी आवाज दी तुम्हें.?"---मनीष ने खीस निपोरते हुए पूछा।
"यहीं बाहर खड़ी थी बाबा, लेकिन क्या अपने लिए एक गिलास पानी भी नहीं निकाल सकते तुम.?"---श्री मती जी ने थोड़ी अदाकारी से कहा तो मनीष ने तुनककर जवाब दिया।
"बिल्कुल नहीं तुम किसलिए हो"
"वाह,क्या तेवर हैं जनाब के.!!!अच्छा ये तो बताओ पानी पी लिया या यूं ही प्यासे खड़े हो"---श्रीमती जी ने उसे कुरेदते हुए पूछा।
"पीता कब तुम तो डंडे लेकर सर पे खड़ी थी"---
मनीष ने भी मुंह फुलाने का अभिनय करते हुए कहा।
"ओय-होय क्या सादगी है"---श्री मती जी ने मनीष की ठुड्डडी छूकर चुटकी लेते हुए कहा और फर्श पर पड़े ग्लास को उठाकर पानी भरने लगी।इतने में मनोहर आ गया।
" क्या हुआ ममा कैसी आवाज थी.?"
"कुछ नहीं बेेेटा एक बड़ा बिल्ला घुंस आया था किचन में"---श्री मती ने हंसी रोकने जैसा मुंह बनाते हुए कहा।
"भाग गया...?"
"नहीं, यहीं पकड़ रखा है ये देखो..!!!"---उसने मनीष की तरफ इशारा किया तो मनोहर ने आश्चर्य से मुुंह खोला "पप्पा.??" और तीनों खिलखिलाकर हंस पड़े।
क्रमशः-----