करवा चौथ
करवा चौथ
प्रदीप सुबह से ही आफिस में परेशान परेशान सा भाग-दौड़ कर रहा था।कभी इस केबिन में तो कभी उस के बिना में।कम्पनी मैनेजर से लेकर वर्कर तक की फरमाइशें पूरी करते-करते वह अंदर से बिल्कुल थक चुका था मगर उसके चेहरे पर थकान या चिंता नाम की कोई चीज नहीं दिखाई दे रही थी जिसका एक मात्र कारण था उसकी आंखों के सामने लहराता उसकी नई-नवेली दुल्हन का हंसता-मुस्कुराता चेहरा।उन दोनों की नई-नई शादी हुई थी और आज उनका पहला करवाचौथ था।सुबह ड्यूटि पर आते समय पत्नी ने हाथ में टिफिन पकड़ाते हुए प्यार से कहा था था कि शाम को जल्दी घर आ जाना चांद निकलने से पहले।
प्रदीप अपनी पत्नी को दिलोजान से चाहता था इसलिए वह उसे किसी भी सूरत में उदास होने देना नहीं चाहता था।वह चाहता था कि वह आज जल्दी से जल्दी घर पहुंचे इसलिए जल्दी-जल्दी सारा काम निपटा लेना चाहता था।
उसके मन में असंख्य लड्डू फूट रहे थे। आज पहली करवाचौथ में कितना मज़ा आएगा।वह सोचने लगा---"कितने प्यार से बीवी पास बिठाएगी।तिलक कर आरती दिखा बारी-बारी से चलनी द्वारा कभी-कभी उसे तो कभी आसमान में चांद को निहारेगी।और जब यह सब हो जाएगा तो उसकी बारी आएगी उसे पानी पिलाकर उसका उपवास तोड़ने की।कितना रोमांचक दृश्य होगा बड़ा मज़ा आएगा.!!!"
"प्रदीप.???"
सोचते हुए वह बास के केबिन में फाईलें समेट रहा था कि तभी उसके कानों से बाहर के जोर से चीखने की आवाज टकराई।वह अंदर तक कांप गया क्योंकि वह जानता था कि नया बांस बहुत कड़क स्वभाव का है। जरा-जरा सी गलती पर नौकरी से निकाल देने की धमकी देता है।अपनी गलती को महसूस कर वह संभला और तुरंत सीधा होकर किसी तरह मुंह से निकाला---"यस बास..!"
"बास के बच्चे किन ख्यालों में खोये रहते हो.? मैं कब से आवाज दे रहा हूं।तुम बहरे तो नहीं हो.?"----बास ने पुनः चीखते हुए उससे पूछा तो उसकी घिघ्घी बंध गयी।कंठ से आवाज नहीं निकली तो बास फिर से चीखा---
"मैंने पूछा रहा हूं वो फाईल कहां है जो मैंने सवेरे तुम्हें दी थी.??"
" ज...जी सर यहीं रखी है अभी दे रहा हूं"---कहकर उसने वो फाईल बास के टेबल पर ले जाकर रख दी और वहीं खड़ा हो गया।
"अब क्यों खड़े हो यहां जाओ"
"जय....जी बास"----वह सकपका कर जानेलगा तो बास ने थोड़ी नरमी से पूछा---
"सुनो, आज तुम कुछ अजीब से लग रहे हो मुझे,बताओ क्या बात है..?"
पहले से तो वह डरा हुआ था ही और डर गया।क्या जवाब देऔर इससे पहले कि वह कुछ बोलता बास फिर बोल पड़े---"देखो डरने की कोई जरूरत नहीं मैं तुम्हारा बास हूं यमराज नहीं।बताओ कोई परेशानी है तो जरूर तुम्हारी मदद करूंगा"
बास की सहानुभूति भरी बात सुनकर उसकी जान में जान आयी और उसने हिम्मत कर बोला--- "यस बास मुझे थोड़ी जल्दी छुट्टी चाहिए थी आज "
"छुट्टी,पर किसलिए.??"--बास ने आंखें तरेर कर पूछा ।
"वो...वो सर आज करवाचौथ..!"---डरकर और नजरें चुराकर उसने कहा।
अगले ही पल केबिन बास के ठहाकों से गूंजने लगा।और जब उनकी हंसी रुकी,कहा---
"बेवकूफ...पहले ही बताना चाहिए ना, तुम्हारी पहली करवाचौथ पर तुम्हें जाने से मना कर मैं पाप का भागीदार बनूंगा क्या.???जल्दी जाओ"
प्रदीप को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ।उसका दिल बल्लियों उछलने लगा । बास का आदेश जो मिल गया था। सब काम छोड़ वह ऐसे सरपट भागा आफिस के में गेट की तरफ जैसे उसके पैरों में पंख लग गये हों।