Madan lal Rana

Inspirational

4.0  

Madan lal Rana

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कामना पूर्ति

कामना पूर्ति

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शारदीय नवरात्र की अष्टम् अराध्य देवी मां महागौरी को कोटि-कोटि प्रणाम्.!!

मां दुर्गा का आठवां स्वरूप मां महागौरी अपने भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न होकर शुभ वर देने वाली हैं।जो भक्त सच्चे मन से इनकी अराधना करते हैं मां उनकी कामना अवश्य पूर्ण करती हैं,क्योंकि मां स्वयं अत्यंत करुणामयी एवं ममतामयी हैं।वह अपने भक्त रुपी पुत्रों को कदापि कष्टों से घिरे नहीं देखना चाहतीं। इसलिए भक्तों में मां के समस्त रूपों में सबसे अधिक मां महागौरी के साधक होते हैं।

सारी इच्छाओं का अतिशीघ्र एवं अवश्य ही पूर्ण होने की वजह से भक्त, मां को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह की एवं कठिन से कठिन साधनाएं करते हैं जिनमें से एक है दंडवत् साधना। इस साधना में भक्त अपनी कामना को लेकर उपवास के साथ अपने निवास स्थान से मां को दंडवत् प्रणाम् करते हुए मां का भवन यानि माता का मंदिर पहुंचते हैं और पूर्ववत् दंडवत् प्रणाम् करते हुए मां के मंदिर की परिक्रमा कर अपनी दंडवत् प्रक्रिया का समापन करते हैं।

मेरे एक निकटतम मित्र ने भी अपनी कामना पूर्ति के लिए इसी कठिन व्रत का संकल्प लिया था। सालों पहले पक्षाघात् में उन्हें काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा था। शारिरिक क्षति हो जाने के कारण उनका कारोबार पूर्ण रूप से बाधित हो गया था।कारोबार ठप हो जाये तो आजीविका का विकल्प भी लगभग समाप्त ही हो जाता है,पर परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों आदमी को उसका सामना करना ही पड़ता है। दवाईयों के साथ-साथ उसके सब्र का इम्तिहान भी चल रहा था लेकिन इस दौरान उसके अंदर अपनी बेबसी पर एक आंतरिक संघर्ष भी चल रहा था जो उसे अंदर ही अंदर तोड़ता जा रहा था।एक तो ईलाज का खर्च उपर से कारोबार ठप।वह मानसिक परेशानियों से गुजर रहा था कि ऐसे में उसके एक शुभचिंतक मित्र ने उसे सलाह दी कि वह मां के मंदिर जाकर दंडवत् का संकल्प ले तो वह जल्द ही स्वस्थ हो जाएगा। मां बड़ी दयालू हैं अवश्य ही तुम्हारे दिल की पुकार सुनेंगीं।उसने मित्र की सलाह मान ली। इस कठिन व्रत का प्रण् ले लिया।

समय बीतने लगा और इसके साथ ही वह अपने अंदर आश्चर्यजनक रूप से परिवर्तन महसूस करने लगा।इस अत्याधुनिक युग में जहां मनुष्य इन सब बातों को मात्र कोरी कल्पना मानते हैं।उसने दैविय शक्ति का प्रभावी रूप से अपने साथ प्रत्यक्ष अनुभव किया।वह आत्मा की गहराइयों से मां भवानी का कृतज्ञ हुआ क्योंकि उसकी रोग ग्रसित काया पुनः रोग मुक्त होने लगी थी,उसके हमेशा से मुरझाये चेहरे पर फिर से कांति लौटने लगी थी। 

वर्ष भर में ही वह पूर्ण रुप से स्वस्थ हो चुका था और आज वो दिन था जब उसे मां भवानी के समक्ष किये गये वायदे को पूरा करना था।क लंबे समय तक बीमार रहने के कारण वह शक्तिहीन तो था पर उसने हिम्मत नहीं हारी। मां के प्रति अटूट श्रद्धा और आस्था ने उसके इरादों को लड़खड़ाने नहीं दिया और उसने पूर्ण कर दिखाया वो संकल्प।

मां के मंदिर से उसका घर काफी दूर था फिर भी हर दंडवत् के साथ मां को प्रणाम् करता हुआ वह मां के दरबार की तरफ बढ़ता गया।आधा रास्ता तय करने के बाद उसे अपने पांव एक-एक मन का लगने लगा।

दंडवत प्रक्रिया के अनुसार हर एक साष्टांग प्रणाम् के साथ व्रतधारी को उसकी उंगलियों के बीच फंसी लकड़ी के टुकड़े से वहां एक निशान देना पड़ता है जहां उसकी हथेली पड़ी होती है। फिर उसी निशान के ऊपर खड़े होकर वही क्रिया करनी होती है और इसी प्रकार व्रतधारी को अपने गंतव्य तक पहुंचना होता है।अपनी अशक्त काया को लेकर वह अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ मां के दरबार पहुंचा और पुर्ववत् दंडवत् प्रणाम् मां के चरणों में गिर पड़ा और मिनटों तक पड़ा रहा।

कुछ क्षण बाद वह उठ बैठा और हाथ जोड़ मां के दैदीप्यमान मुखड़े को एकटक निहारते हुए धन्यवाद् ज्ञापन करने लगा। ऐसा करते हुए उसकी आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे।

     


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