Abhisek Nayak

Drama Romance

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Abhisek Nayak

Drama Romance

राजेश का कॉलेज वाला प्यार, भाग-I

राजेश का कॉलेज वाला प्यार, भाग-I

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राजेश एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता है। कुछ साल पहले, वह हमारे देश के एक बहुत ही प्रसिद्ध Private इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ रहा था। उसे यह भी नहीं पता था कि वह ऐसा क्यों कर रहा है। अब, राजेश अपनी कहानी बताने जा रहा है कि कैसे कॉलेज में वो अपनी प्रेमिका से मिला और बाद में उन दोनों की कहानी किस तरफ चली। तो आइए सुनते हैं राजेश क्या कहना चाहता है।

जब मैंने पहली बार कॉलेज में प्रवेश किया तो मैं थोड़ा मायूस था। ऐसा नहीं था कि कोई मेरे साथ बात नहीं कर रहा था या कोई मुझको चिड़ा रहा था, पर, दरअसल बात यह थी कि वहाँ लगभग जिन्हें भी मैं देख रहा था उनका कोई न कोई तो था जिन्हें वो पहले से जानते थे पर इस कॉलेज में ऐसा कोई भी नहीं था जिन्हें मैं पहले से जानता था। पर जैसे तैसे करके मेरे कुछ दोस्त बन ही गए, जैसे-जैसे मेरे कॉलेज में दिन बीतते गए, वैसे-वैसे मेरी मायूसी कम होती गई, और कॉलेज के साथ मेरा तालमेल बैठता चला गया।  

कोई अपने कॉलेज के बारे में बात कर रहा हो तो यह नामुमकिन है कि वो अपने crush का जिक्र न कर रहा हो। उस समय तक मेरी जिंदगी में कभी कोई प्रेमिका नहीं थी। ऐसा नहीं था कि मैं दिखने में अच्छा नहीं था,अजीब था, या दिलचस्प नहीं था। मैं तो बहुत ही अच्छा था, मेरे हिसाब से, पर पता नहीं लोग मेरे बारे में क्या सोचते थे। उन दिनों मुझे किसी भी लड़की पे क्रश आ जाता था पर जबसे मैंने अपने क्लास में पढ़ने वाली शिवांगी को देखा था तब से हर दिन मेरी आँखें उसको देखने के लिए तरसती थीं।

एक दिन कॉलेज में, मैं अपनी प्यार भरी नज़रों से शिवांगी को बड़ी सावधानी से देख रहा था ताकि शिवांगी को पता न चले कि मैं उसे ऐसे देखता हूँ, और मुझे जब भी ऐसा लगता कि उसकी नज़रें मेरी तरफ पड़ने वाली हैं तब मैं अपनी नज़रें दूसरी तरफ कर लेता था । उस दौरान, हिमांशु मेरे पास आया और पूछने लगा, "क्या हाल है मेरे दोस्त?"

मैं (हिमांशु से, थोड़ा शिवांगी की ओर देखते हुए): सब सही चल रहा है, पर आज तू मेरे पास कैसे? और जितना मुझे पता है, तुझे तो हमेशा लड़कियों के पास या लड़कियों से घिरे हुए रहना पसंद है।

हिमांशु (मुझसे): हाँ, पसंद है, क्योंकि मुझे दोस्त बनाना पसंद है।

मैं: दोस्त बनाना पसंद है या लड़कियों को बनाना पसंद है, अपना दोस्त?

हिमांशु: क्यों तुझे दोस्त बनाना पसंद नहीं है क्या? तुझे भी मेरी तरह बहुत सारे दोस्त बनाने चाहिए नहीं तो तेरे कॉलेज के दिन बहुत ही बुरी तरह कटने वाले हैं।

मैं: मुझे बहुत सारे दोस्तों की नहीं, मुझे बस अच्छे दोस्तों की ज़रूरत है।

हिमांशु: जैसा आपको ठीक लगे ज्ञानी महाराज।

हिमांशु से इस बातचीत या बहस , आप जो भी समझें, इसके बाद मैं अपने दोस्तों के पास गया।

आशुतोष (मुझसे, मुझे देखने के बाद): अरे तू कहाँ था?।

बिस्मॉय (आशुतोष से, मेरी ओर देखते हुए): इसके चेहरे से तो यह लग रहा है कि यह किसी से झगड़ा करके आया है।

मैं: हाँ मैं वो हिमांशु से बात करके आ रहा हूँ और तुम लोगों को तो पता ही है कि मेरी उससे किस तरह की बात होती है।

आशुतोष (मुझसे): ठीक है, छोड़ हिमांशु की बातों को और यह बता कि क्या तूने अपनी practical notebook जमा कर दी है?

मैं: नहीं, क्यों, आज ही जमा करना था क्या?

आशुतोष: लगभग सभी ने अपनी practical notebook जमा कर दी है और ऐसा करने की कल आखरी तारीख है।

बिस्मॉय (मुझसे): कोई बात नहीं राजेश, आशुतोष तो बात का बतंगड़ बना रहा है, इसकी बातों से डरने की कोई ज़रूरत नहीं क्योंकि और भी बहुत सारे लोग हैं जिन्होंने practical notebook अब तक जमा नहीं की है।

मैं (थोड़े तनाव में): पर मुझे लगता है कि मुझे थोड़ा तो डरने की ज़रूरत है क्योंकि मैंने अभी तक अपने practical notebook पे पिछले experiment के बारे में नहीं लिखा है।

आशुतोष: पर अभी तक क्यों नहीं लिखा?

मैं: क्योंकि मैं experiment वाले दिन कॉलेज में अनुपस्थित था।

बिस्मॉय (मुझसे, कुछ याद आने के बाद): एक मिनट रुक। experiment वाले दिन तो हिमांशु भी कॉलेज नहीं आया था पर उसने अगले ही दिन अपनी practical notebook को पूरा कर दिया था। तू एक काम कर उससे उसकी practical notebook मांग ले और अपनी notebook पूरी कर दे।

मैं: हाँ, मुझे यही करना होगा, इसके अलावा और तो कोई चारा भी नहीं है।

फिर मैं हिमांशु के पास गया।


मैं (हिमांशु से): अरे यार हिमांशु, तेरी थोड़ी मदद चाहिए थी यार।

हिमांशु: तू मुझसे मदद मांग रहा है? मैं कहीं सपना तो नहीं देख रहा? तू मुझसे पहली बार मदद मांग रहा है न?

मैं: यार सच में तेरी मदद चाहिए यार, मैं मज़ाक नहीं कर रहा, और आज अगर मेरी बातें तुझे बुरी लगी हो तो उसके लिए sorry।

हिमांशु: ठीक है, तो बोल मैं तेरी कैसे मदद कर सकता हूँ?

मैं: मुझे तेरी practical notebook चाहिए क्योंकि में एक्सपरिमेंट वाले दिन अनुपस्थित था और कल notebook जमा करने की आखरी तारीख है।

हिमांशु: ओह, मेरी practical notebook, वो तो अभी मेरे पास नहीं है।

मैं: अरे यार तुझे sorry बोला न, तो फिर मुझे क्यों परेशान कर रहा है, दे दे न मुझे तेरी practical notebook।

हिमांशु: अरे मैं झूठ नहीं बोल रहा यार, सच में मेरे पास नहीं है, मैंने अपनी notebook नताशा को दे दी है।

मैं: बहुत बढ़िया! मैंने पहली बार तुझसे मदद मांगी पर हर चीज़ में पानी फेरना तो तेरी आदत हैं न।

विकाश (मुझसे, जो हिमांशु के पास ही खड़ा था): बिलकुल सही कह रहा है तू राजेश, हिमांशु लड़कियों के अलावा और किसिकी मदद नहीं कर सकता, यह feature उसके system में ही नहीं है। नताशा तो उससे notebook मांग भी नहीं रही थी, इसी ने ही नताशा को अपनी notebook थमा दी और उससे कहने लगा, “thank-you कहने की कोई ज़रूरत नहीं बस अपनी नोटेबूक जमा करने के समय मेरा भी जमा कर देना।”

मैं (हिमांशु से): मैं तुझसे बस दो ब्लॉक की दूरी पे रेहता हूँ पर तूने मुझको अपनी notebook पहले देने के बजाय उस लड़की को दे दी जो तेरे area से मीलों दूर रहती है।

हिमांशु (मुझको नीचा दिखाते हुये, थोड़ी ऊंची आवाज़ में): तुझे notebook देने से मेरी कौन सी लॉटरी लाग्ने वाली थी, नताशा को notebook देने से, मुझे नताशा की दोस्ती मिलने वाली है, और वो बी बहुत ही मजबूत वाली। बड़ा आया मेरी नोटेबूक लेने वाला।

फिर कुछ ऐसा हुआ जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। शिवांगी हमारे पास आई और बोली, “Hi Everyone। सब कुछ ठीक तो है न? यार तुम लोग इतना शोर मचा रहे हो न कि तुम लोगों की सारी बातें मेरी कानों में अभी भी गूंज रही है। और राजेश, तुम मेरी नोटबुक ले लो और अपनी शोर वाली आवाज़ों को please मुझसे दूर रखो और जब तुम अपनी notebook करने जाओ तो साथ में मेरी भी जमा कर देना । ”

शिवांगी (जल्दी में): okay, bye everyone॰

और शिवांगी वहां से चली गई।

मैं (विकाश से): क्या शिवांगी ने सच में मेरे हाथों में अपनी notebook पकड़ा दी या मैं सपना देख रहा हूँ?

विकाश (मुझसे): ऐसे अचानक तेरे हाथों में अपनी नोटेबूक देके चली गयी, लगता है वो तुझे थोड़ा तो पसंद करती है।

मैं (विकाश से): क्या सच में तुझे ऐसा लगता है?

हिमांशु (मेरी बातें सुन कर): मुझे नहीं लगता ऐसी कोई बात होगी, वो बस हमारे शोर-शराबे से परेशान थी।

मैं (हिमांशु से): हाँ तुझे जैसा सोचना है सोच ‘सिर्फ लड़कियों की मदद करने वाले’, और मुझे जैसा सोचना होगा मैं सोचूंगा।

शिवांगी की इस मदद और विकाश की बातों से मैं मन ही मन खुश हो रहा था और इन्हीं कारणों से मैंने मेरे अंदर शिवांगी को लेकर एक उम्मीद जागा ली थी। अगले दिन जो कि हमारे practical notebook जमा करने की अंतिम तारीख थी, उस दिन मैं समय पर कॉलेज पहुँच गया था क्योंकि मैं अपने practical marks में कोई समस्या नहीं चाहता था। कुछ लोगों को छोड़कर लगभग सभी लोग कक्षा में मौजूद थे। फिर मैंने शिवांगी को क्लास के अंदर आते हुए देखा, उसको देख के उसपर से न मेरी नज़रें हट रही थी न मेरे चेहरे की मुस्कान। उस समय मेरे हाथों में उसकी notebook मुझे एक trophy की तरह लग रही थी और इससे पहले कि वो मुझे उसको बेवकूफ़ों की तरह देखते हुए देखती मैंने अपनी और उसकी practical notebook को वहाँ जमा कर दिया जहां हमें करने को बोला गया था।

जब मैं प्रैक्टिकल नोटबुक जमा करके वापस लौटा और एक तरफ नज़र घुमाई तो देखा कि शिवांगी मेरे पास खड़ी थी और उसकी नज़रें मेरी ओर थी।

शिवांगी (मुझसे, मुसकुराते हुए): Hi.

उसके खूबसूरत चेहरे पर उसकी प्यारी सी मुस्कान देखकर मैं थोड़ा सा घबरा गया। मैं उससे बहुत सी बातें कहने की कोशिश कर रहा था लेकिन मेरे मुंह से एक भी शब्द नहीं निकल रहा था, लेकिन मैं कोशिश कर रहा था।

मैं (शिवांगी से): क्या तुमने नाश्ता कर लिया?

मैं (मेरे मन में, अपने आप से): अरे यार यह क्या पूछ लिया मैंने!! कहीं यह मुझे पागल तो नहीं समझेगी?

शिवांगी: हाँ मैंने अपना नाश्ता कर लिया है और तुमने?

मैं: हाँ मैंने भी कर लिया।

शिवांगी: मैंने देखा कि तुमने क्या किया...........

इससे पहले कि वो अपनी बात पूरी कर पाती, मैंने कहा, “हाँ, तुम सही कह रही हो। मैंने तुम्हारी और मेरी practical notebook जमा कर दी है और मेरी मदद करने के लिए के लिए शुक्रिया, पता नहीं मैं तुम्हारे बिना, मेरा मतलब है तुम्हारी मदद के बिना क्या करता।”

शिवांगी: हाँ, मैंने वो भी देखा पर मेरा मतलब कुछ और था।

मैं: ओह, कुछ और मतलब था? 

शिवांगी: मेरा मतलब था कि मैंने उस दिन देखा कैसे तुम मुझे देख रहे थे लगातार बार बार।

शिवांगी की यह बात सुनकर मैं थोड़ा घबरा गया।

मैं (शिवांगी से): ओह, तो तुम्हें पता था। sorry, मैं दोबारा ऐसा नहीं करूंगा।

शिवांगी: तुम पागल हो क्या? तुम क्यों नहीं करोगे ऐसा दोबारा? जिस तरह से तुम मुझे देखते हो उससे मैं तो sure हूँ कि तुम मुझसे प्यार करते हो।

मैं: हाँ वो तो है, प्यार तो मैं करता हूँ तुमसे।

शिवांगी: पर तुम मुझे हमेशा सिर्फ देखते ही हो, तुमने मुझसे आकर कभी बात क्यों नहीं की?

मैं: तुम्हें क्या लगता है, मैंने कभी कोशिश नहीं की, पर मैं जब भी तुम्हें देखता तो मैं तुम्हें देखने मैं ही खो जाता और तुम्हें और भी ज़्यादा देखने लगता। अब कुछ ही मिनट पहले की ही बात ले लो, जब तुम मुझसे बात करने के लिए आई, तब मैं तुमसे बात करने के लिए मुझे लफ़्ज़ ही नहीं मिल रहे थे।

शिवांगी (मुझसे, शर्माते हुए): क्या सच में मैं तुम्हें इतनी अच्छी लगती हूँ?

मैं: अच्छी!! अरे तुम मुझे बहुत ही अच्छी लगती हो।

शिवांगी: मुझे भी तुम बहुत ही प्यारे लगते हो और जब भी तुम मुझे उस तरह देखते हो मुझे बहुत ही अच्छा लगता है।

Lecturer: सभी लोग अपनी-अपनी जगह पर बैठ जाए और मेरी बात ध्यान से सुनें...........

मैं और शिवांगी अपनी-अपनी सीटों पर बैठ गए और पूरे क्लास के दौरान हम एक-दूसरे को देख रहे थे और देख के मुस्कुरा रहे थे।

क्लास खतम होने के बाद, मैं उसके पास गया और उससे कहा, "चलो आज साथ में लंच करते हैं।"

शिवांगी (मुझसे): हाँ, क्यों नहीं।

मैं इस बात से बेहद खुश था कि मैं अभी तक शिवांगी के साथ अच्छे से घुल-मिल पा रहा था।

हम दोनों lunch के लिए अपने कॉलेज कैंटीन को गए। हमने अपना खान ऑर्डर किया और आपस में अपने बारे में बात करने लगे।

शिवांगी: क्या यह हम दोनों की date है?

मैं: पता नहीं, शायद। मैंने तो dates सिर्फ फिल्मों में ही देखे है।

मेरी यह बात सुनकर शिवांगी हँसने लगी। कितनी प्यारी हंसी थी वो।

मैं (शिवांगी से): क्या तुम्हें नहीं लगता कि हमें ऐसे नियमित रूप से मिलना चाहिए?

शिवांगी: हाँ, क्यों नहीं। और तुम अपने बारे में कुछ बताओ न, जैसे कि तुम्हें क्या करना पसंद है?

मैं: मुझे पेंटिंग करना और sketch बनाना बहुत पसंद है, मुझे अपने चित्रों से उनकी कहानियाँ बयान करना अच्छा लगता है।

शिवांगी: मैं उन्हें ज़रूर देखना चाहूंगी।

मैं: किसी दिन मैं उन्हें तुमको ज़रूर दिखाऊँगा, और तुम भी बताओ न कि तुम्हें क्या पसंद है।

शिवांगी: मुझे आज़ादी पसंद है। और मुझे भविष्य में बहुत सारे पैसे कमाने है, खुद की एक पहचान बनानी है बिना किसी पे निर्भर हुए।

मैं: बहुत ही अच्छी सोच है तुम्हारी।

शिवांगी: अभी मैं जो बात तुम्हें कहने जा रही हूँ प्लीज उसे ध्यान से और गंभीरता से सुनना...........

मैं: हाँ ज़रूर, तुम बेझिझक अपनी बात कहो।

शिवांगी: मेरे पिछले रिश्ते मेरे daily routine और मेरे life-goals के वजह से सफल नहीं हुये, तो इसलिए मैं नहीं चाहती कि हम दोनों इस रिश्ते पर ज़्यादा ज़ोर दे। हम बस दोस्तों की तरह घुलेंगे-मिलेंगे, बाकी सब कुछ करेंगे जो सारे couples करते हैं सिवाय ‘compulsory dinner, gift exchanging, ज़रूरी तारीखें याद रखना और इस तरह की सारी चीजों के। ’

मैं: देखो यार, मुझे तो इस तरह के रिश्तों का कोई experience नहीं है, तो हमारे इस रिश्ते की गाड़ी को तुम जैसे चाहती हो गाड़ी वैसे ही चलेगी, बस गाड़ी में मेरी सलामती का ध्यान रखना।

मेरी यह बात सुनकर वो फिर से हँसने लगी, उसकी यह वाली हँसी पिछली बार से ज़्यादा प्यारी थी।

और कुछ ही दिनों में हम दोनों एक बहुत ही अच्छा couple बन चुके थे, मेरे हिसाब से। हमने वो सारी चीज़ें कर ली थी जो सारे couples करते हैं सिवाय उन चीजों के जिनको शिवांगी ने करने से मना किया था। हम दोनों रोज़ एक-दो बार अच्छे से मिलते थे या phone पे बात करते थे। हम जब भी बाहर खाने को जाते हम एक दूसरे में अपना बिल बाँट लेते थे। हम दोनों ने पहले से तय कर लिया था कि हमारे बीच कोई भी surprise birthday party नहीं होगी। अगर कोई खास दिन हो तो हम उसके पहले वाले दिन पे सारी planning करते थे। हम दोनों के बीच छोटे-मोटे झगड़े तो होते ही रहते थे, पर वो ज़्यादातर बच्चों वाले झगड़े होते थे। सरल तरीके से बताऊँ तो हम दोनों दो बच्चे थे जो वो सारी चीज़ें कर रहे थे जो सारे couples करते हैं।


अब सीधा चलते हैं हमारे कॉलेज के आखरी साल की ओर। वो साल हमारे ‘Job Placements’ का साल था। शिवांगी उस साल पागल हो चुकी थी और मुझे भी...........

कृपया इसके अगले भाग की प्रतीक्षा करें।

 (Note: यह कहानी मेरे ही द्वारा लिखी गई अंग्रेज़ी कहानी The Story of Rajesh’s Crush' से मेरे द्वारा अनुवादित की गई है।)


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