Abhisek Nayak

Others Children

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मैं था अपने घर का लाड़ला

मैं था अपने घर का लाड़ला

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यह कहानी 14 साल के ‘निशांत’ के द्वारा कही जा रही है। निशांत इस कहानी में अपने बचपन की बात बता रहा है जब वो 4 साल का था।


तो निशांत कहता है कि:

मैं था अपने घर का लाड़ला। जब भी कोई मेहमान घर पे आते तो मेरे लिए कुछ न कुछ तो ले के आते थे। सब मुझको प्यार करते, दुलार भी करते थे। सबने मुझे अपने सर पे चढ़ा के रखा था। मेरी माँ जहां भी जाती थी, मैं उनके साथ जाने की ज़िद्द करते रेहता था और उन्हें मुझे अपने साथ लेना ही पड़ता था।

एक दिन मेरे पापा मेरी मम्मी को शाम को कहीं ले के जा रहे थे, और मुझे हमारे पड़ोसी के पास छोड़ के जा रहे थे। जब पापा मम्मी को ले के जा रहे थे तब मैंने अपना रोना धोना शुरू कर दिया था, पर मेरा रोने-धोने से मेरे पापा पर कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था।


पापा (मुझसे, गुस्से से): हमेशा जाना होता है तुझे मम्मी के साथ, एक बार साथ नहीं गया तो क्या हो जाएगा? मैं तेरी मम्मी को खा थोड़ी जाऊंगा, रोने की कोई ज़रूरत नहीं है, हम जल्दी आ जाएंगे।

मम्मी (पापा से, पापा को अपने गुस्से से रोकते हुये): आप भी न, देख तो रहे हैं कि कितना रो रहा है, और ऊपर से आप और चढ़ रहे हैं।

मम्मी (मुझसे, प्यार से, मेरे आंसुओं को पोंछते हुये): बेटा, हम लोग जल्दी आ जाएंगे, तुम चिंता मत करो।

पापा (मुझसे, बिना गुस्से के): अरे बेटा, आ जाएगी मम्मी, बहुत जल्दी आ जाएगी, तेरी मम्मी पे एक भी खरोच नहीं आने दूंगा।


उसके बाद, पापा ने मम्मी को कार के अंदर बिठाया, क्योंकि मम्मी थोड़ी तकलीफ में लग रही थी। और पापा कार ले के चल दीये।

मैं (पड़ोस वाली aunty से): Aunty, पापा मम्मी को कहाँ ले के गए?

Aunty (मुझसे): मम्मी की थोड़ी तबीयत खराब हो गयी है न, इसलिए तुम्हारे पापा मम्मी को डॉक्टर के पास ले के गए हैं, और तुमको ले के जाते तो कहीं डॉक्टर तुमको बीमार समझ के तुम्हें injection लगा दे इसलिए पापा तुमको अपने साथ ले के नहीं गए, मम्मी-पापा जल्दी घर आ जाएंगे।


पहली बात, पहली बार मम्मी मुझे अपने साथ नहीं ले के गयी थी, इस बात के आँसू अपने आँखों में दबाके रखे थे, ऊपर से जब डॉक्टर वाली बात सुनी तो मेरी घबराहट और भी बढ़ गयी। उस रात तो मैं जैसे तैसे रो-रोके सो गया। अगली सुबह, जब मेरी आँख खुली, तो मैंने देखा कि मेरे मामा आए हुये थे।


मामा (मुझसे): तुम्हारा एक छोटा सा भाई आया है, उससे मिलने नहीं जाना?

मैं: कौन सा भाई? कब आया? मुझे उससे नहीं मिलना है। मुझे मेरे मम्मी के पास ले चलो।

मामा: अरे मम्मी भी वहीं ही है।

मैं (रोना थोड़ा कम करते हुये): पर मम्मी तो डॉक्टर के पास गयी थी न? और मेरा भाई ऐसे अचानक से कहाँ से आ गया?

मामा (मुझे समझाने की कोशिश करते हुये): अरे, तुम उस दिन पूछ रहे थे न कि मम्मी इतनी पेटु क्यूँ हो गयी है........... रहने दो...........तुम वहाँ जा के अपनी मम्मी से पूछना कि भाई कैसे आया और कहाँ से आया, पहले चलो तो सही उधर। उठो, जल्दी से ब्रुश कर लो फिर हम चलते हैं।


मामा मुझको हॉस्पिटल ले गए, वहाँ जा के मुझे कुछ कुछ समझ में आया कि भाई कहाँ से आया। फिर कुछ दिन बाद, मम्मी और मेरा भाई घर आ गए, और उनके साथ मेरी नानी भी आ गयी मम्मी की help करने के लिए। कुछ भी कहो पर जब baby घर पे होता है तो घर का माहौल कुछ और ही होता है। मम्मी मुझे सिखाती थी की छोटे भाई के साथ कैसे खेलना और मैं उसके साथ खेलता था। हमारे घर में तब एक चाबी वाली चक्री (खिलौना) थी, जब में उसे चाबी लगा के घुमाता था, तो वो (baby) अपने बिना दाँत वाले मुंह से ज़ोर ज़ोर से हँसता था। जब वो धीरे-धीरे बड़ा होता गया, तब बड़ी होती गयी मेरे ज़िम्मेदारी उसके आस-पास रहने की। जब भी वो कहीं गिरता, चाहे वजह जो भी हो, डांट मुझे ही पड़ती थी। “उसको संभाल के लेना, गिरना नहीं चाहिए, अगर कहीं चोट दिखी उसके कहीं पे, तो देखना तू ”, यह सब कहती थी मेरी मम्मी जब वो Chotu को मेरे साथ घूमने के लिए भेजती थी। Chotu को घुमाने के चक्कर में, मैं ठीक से अपने दोस्तों के साथ खेल-कूद और घूम-फिर नहीं पाता था।


अब Chotu रिशतेदारों का दुलारा बन चुका था, अब सारे रिश्तेदार उससे ज़्यादा प्यार और दुलार करते थे, मतलब मेरा साम्राज्य अब मुझसे छिन चुका था।


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