STORYMIRROR

Ashish Kumar Trivedi

Classics

3  

Ashish Kumar Trivedi

Classics

राह का मोड़

राह का मोड़

2 mins
404

हरीश ईज़ी चेयर पर आँखें मूंद कर बैठे थे। उन बंद आँखों के पीछे उनका अब तक के जीवन का सफर किसी चलचित्र की तरह चल रहा था। 

जन्म गांव के एक साधारण परिवार में हुआ था। बीच में एक लंबा संघर्ष रहा। लेकिन उससे उबर कर जीवन में सफलता प्राप्त की।

आरंभ छोटी सी सरकारी नौकरी से हुई। पर अपनी योग्यता और लगन से ऊँचे पद पर पहुँच गए। 

जीवन से कोई शिकायत नहीं थी। एक अच्छी जीवनसाथी मिली थी। जिसके साथ एक सुखद गृहस्ती बसाई थी। संतानें योग्य थीं। अब वो अपने अपने कर्मक्षेत्र में स्थापित हो चुकी थीं। 

पर ज़िंदगी ने अचानक एक ऐसा मोड़ लिया कि सब अस्त व्यस्त सा लगने लगा।

उनके सबसे बड़े बेटे को कैंसर ने अपनी गिरफ्त में ले लिया। डॉक्टर का कहना था कि पता लगने में देर हो गई। इसलिए उम्मीद बहुत कम है। 

उसके बाद तो परिवार में शोक सा छा गया। सभी सदमे में थे। हरीश के लिए भी यह आघात सहना कठिन हो रहा था।

हरीश ने अपने माथे पर पत्नी के हाथ को अनुभव किया। उन्होंने आँखें खोल दीं।

"आओ बैठो मालती।"

मालती पास में बैठ गईं। वह चुप थीं। उन्हें देख कर लग रहा था कि मन में बहुत कुछ चल रहा है। मुंह से शब्द तो नहीं निकले पर आंसुओं ने उनकी पीड़ा को बयान कर दिया।

"रोने से कोई लाभ नहीं मालती।"

"आप तो हमेशा से धैर्यवान रहे हैं। मैं इतनी मजबूत नहीं हूँ।"

"ऐसा नहीं है मालती.... अपने बेटे की प्राणघातक बीमारी के बारे में सुनकर किसका कलेजा नहीं फट जाएगा। पर जीवन का सफर ही ऐसा है। हम चाहें जितना इसे अपने अनुसार चलाना चाहें इसकी अपनी गति है। इस सफर में ना जाने कब कौन सा मोड़ आ जाए। हमें उसके अनुसार ही खुद को ढालना पड़ता है।"

"आँखों के सामने बेटे को तिल तिल कर मरते देखना आसान नहीं है।"

हरीश कुछ क्षण मौन रहे। फिर अपनी पत्नी की तरफ देख कर बोले।

"तुम्हारे आने से पहले मैं यही सोंच रहा था। कैसे इस दुःख को सह सकते हैं। संतान को मरते देखना सबसे कठिन काम है। पर करना पड़ेगा। हमारी हिम्मत उसके बचे हुए जीवन को जीने में मदद करेगी। ज़िंदगी ने बहुत कुछ दिया। पर बदले में सबसे कीमती चीज़ मांग ली है।"

मालती की आँखों से दुधारा बहने लगी। हरीश मौन रह कर खुद को संभालने की कोशिश कर रहे थे।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Classics