राधा कृष्ण
राधा कृष्ण
राधा:/ आकुल है मन तेरे रोम-रोम में निर्भर करता तेरे व्योम योम में सामर्थ मेरे जीवन का अतुलनीय निर्लभ।
कृष्ण:/ कल्पनाओं से भरी ऊर्जा प्रेम की यह कहानी है अनमोल निरन्तर दृश्यों से भरी रहेगी तू है राधिका कान्हा की प्यारी।
राधा:/ उत्पन्न करता तेरा अनुभव तू कृष्ण मुरारी मेरा नन्दलाल है निर्वाह विपरीत तेरे सामर्थ जीवन का तू मेरे कान्हा।
कृष्ण:/ विपरीत परिस्थितियों से निकलकर आगे स्वर्णिम निर्वाह करना वृन्दावन के इर्दगिर्द चारों औऱ यह कृष्ण तुझें पुकारे। मुरलीधर नन्दलाल तेरो तुझे बुलावे।

