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Nirupama Naik

Abstract

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Nirupama Naik

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प्यारी ओग्गी

प्यारी ओग्गी

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ठंड का मौसम था। एक नन्ही सी प्यारी सी बिल्ली घर में घुस आई। मम्मी ने देखा वो ठंड से ठिठुर रही थी। मेज़ के नीचे जाकर छुप गई। उसे वहां से निकालने की बड़ी कोशिश की सबने मगर वो बेचारी जैसे अपने आप को बचाने की ज़ोर शोर प्रयास में लगी थी। तभी मेरे छोटे भाई ने देखा कि उसपर किसीने पानी डाल दिया है। उसने तुरंत एक छोटा तौलिया अपने हाथों मे लिया और उस बिल्ली को पकड़ने की कोशिश में लग गया। आख़िरकार वो पकड़ में आ गई। जैसे ही वो तौलिए में आई बंटी ने उसे गोद में लेते हुए उसको पोंछना ना शुरू कर दिया। वो जानवरों से बहुत प्रेम करता है। फौरन उसने मम्मी से कहा- थोड़ा दूध होगा तो गुनगुना करके ले आओ मम्मी।

मम्मी ने फ्रीज में रखी दूध को गैस पे हल्का गर्म किया और एक छोटे बर्तन में डाल कर उसे ले आई। दूध का बर्तन देखते ही बिल्ली तौलिए से बाहर कूद गई और उसे चाट ने लगी। हम सब उसे बहुत प्यार से ताक रहे थे। किसी के घर में घूसकर दूध पी लिया होगा इसने इसीलिए किसी ने उसपर पानी फेंक दिया था शायद।

जैसे ही उस बर्तन का दूध ख़त्म हो गया वो वापस बंटी के गोद में चली आई। उसकी इस हरकत से हम सबको उसपर बहुत दया आई। मम्मी ने कहा वहीं मेज़ के नीचे ही गर्म कपड़ों से एक छोटी बिस्तर जैसे लगा देती हूँ, वहीं सूला देंगे इसे। सब सोने चले गए और बिल्ली को उस मेज़ के नीचे ओढ़ कर सुला दिया।

सुबह मम्मी सबसे पहले उठ जाया करती थी। उसने मेज़ के नीचे देखा तो बिल्ली नहीं थी। वो परेशान होगई। फिर सोचने लगी कि शायद वो अपने ठिकाने पर वापस चली गई होगी। मन में उसकी चिंता थी। लेकिन उसे ढूंढे भी तो कहाँ?

तभी बंटी ने आवाज़ लगाई- "मम्मी देखो ये बिल्ली आकर मेरे पास मेरे सिरहाने सोई है।"

मम्मी जल्दी से आकर उसे देखने लगी। तब सबकी नींद खुल गई। बिल्ली आराम से सोई हुई थी।

मम्मी ने उसे पुचकारते हुए कहा- "जानवर है मगर उसे पता है कि कहाँ उसे प्यार मिला, किसने उसकी देखभाल की, इसीलिए आकर तुम्हारे पास सो गई।" 

उसका चेहरा इतना मासूम था कि कोई भी उसे भगाना नहीं चाहता था। बंटी उठकर बैठ गया और उसे हाथों में लिया। अपने कम्बल से ओढ़ कर उसने कहा-" देखो ये हम सबका फ़ेवरेट ओग्गी है। जिसको देखने हम टीवी के सामने बतजाते हैं वो हमारे पास आगई।" तबसे उसका नाम 'ओग्गी' पड़ गया।

वो हमारे साथ हमेशा रहती। कभी किसीकी तबियत खराब हो तो वो उसके पास पास ही रहती और अपने अंदाज में पुचकारती। उसकी तबियत खराब हो जाती तो हम सबकी भूक मर जाती थी। वो जैसे हमारे परिवार का एक हिस्सा बन चुकी थी।कोई हमारे घर आते तो उसके लिए भी कुछ न कुछ ले आते। हम कहीं जाते तो वो भी साथ जाया करती। 

पांच साल उसने हमारे एक एक पल को खूबसूरत बनाया। फ़िर वो बीमार पड़ने लगी। वेटेरिनरी डॉक्टर को दिखाया तो पता चला उसके फेफड़ों में चोट लगने की वजह से वो ख़राब हो चुके थे। हम सब उसे अपनी आँखों के सामने ही रखा करते थे। मम्मी और बंटी रात रात भर सोते नहीं थे। थोड़ी थोड़ी देर में उसको सहलाते और दूध पिलाते।घर के सारे दरवाज़े और खिड़की बंद कर दिया करते थे ताकि वो कहीं बाहर न चली जाए। बहुत चुलबुली थी।मग़र कुछ दिनों से वो कहीं जाती भी नहीं थी। 

एक रात वो बंटी के सिरहाने सोई और बंटी ने उसे बहुत प्यार किया। उसको गोद मे लिया। कुछ देर बाद उसको सुलाकर सब सो गए। सुबह उठकर देखा तो ओग्गी घर मे कहीं भी नहीं मिली। आस पड़ोस में पूछा तो किसी के यहाँ भी नहीं मिली। बंटी ने अपनी साईकल निकाली और उसे ढूढ़ने चला गया। पर वो कहीं नही मिली।

आज भी उसके जैसी किसी बिल्ली को देख लेते हैं तो ओग्गी ओग्गी पुकारने लगते हैं। लेकिन हमारी ओग्गी अब तक नही मिली।मम्मी आज भी उसके इंतेज़ार में रहती है।जैसे उसका कोई बच्चा ग़ुम होगया हो।

कभी कभी ऐसा लगता है जैसे उसे पता चल गया था कि उसको अपने सामने दम तोड़ते देख हम सबको कितना दर्द होता। शायद वो उस दर्द से हमे दूर रखना चाहती थी। शायद वो हमारे आँसुयों को नहीं देख सकी। शायद…..वो चली गई ताकि हमारे आंखों में उसका इंतेज़ार हमेशा रहे न कि उसके हमेशा के लिए हमसे दूर चले जाने का ग़म। 



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