Arya Jha

Romance

5.0  

Arya Jha

Romance

प्यार हो जाता है

प्यार हो जाता है

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अहाना के हाथों में विवाह का निमंत्रण-पत्र था। "अभिषेक वेड्स रौशनी" उसकी आँखों में ख़ुशी के आंसू और होठों पर हँसी थी, पर मन चंचल होकर अतीत में खो गया। 'अभिषेक 'ये नाम उसके होंठों पर मुस्कान लाने के लिए काफ़ी था। दोनों साथ पढ़े थे। इनके दो ही अरमान थे, पहला आईएएस में सलेक्शन और दूसरा अहाना का जीवनपर्यन्त का साथ ! अभिषेक सिविल सर्विसेज़ की तैयारी कर रहा था और अहाना पोस्ट ग्रेजुएशन फाइनल ईयर में थी। दोनों के मन में एक ही सवाल आता कि हमारा साथ हमेशा के लिए होगा कि नहीं ?

अहाना के पिता कट्टर रूढ़िवादी थे। उसके प्यार की बात पर बुरी तरह बिफर पड़े और अभिषेक के घर में भी लगभग वही प्रतिक्रियाएं थीं। दोनों का मासूम प्यार, परिवार के नाम पर बलि चढ़ रहा था। अहाना,अभिषेक का स्थान किसी और को देने की सोच भी नहीं सकती थी। जननी व जन्मदाता के आशीर्वाद देने वाले हाथ याचना में जुड़े थे।

"तुम्हारे पिता का आत्मसम्मान बहुत ज्यादा है। वह टूट जाएंगे पर झुकेंगे नहीं ! अगर उन्हें कुछ हो गया, तो मैं अकेली कैसे तुम सबकी देखभाल करुँगी ? मेरी पूरी गृहस्थी चरमरा जाएगी। तुम्हारे बहन-भाइयों का क्या होगा ?" माँ ने हर संभव मनोवैज्ञानिक दबाव बना डाला था। जो हाथ आजतक देते आये थे वह कुछ मांगने के लिए जोड़े गए थे। पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी थी और दिमाग सुन्न हुआ जा रहा था। उसे अपनी खुशियां देनी थी। अपने जीवन का हक़ अदा करना था। माता-पिता से तो जिद भी कर लेती पर बहन भाइयों के प्रति अपराधबोध लेकर कहाँ जाती।

बड़े ही बेमन से उसने उनकी इच्छा के आगे समर्पण कर दिया क्योंकि उसे पता था कि उसकी सांसें चलेगी पर जीवन ना होगा और ऐसा अनर्थ आजीवन होगा। दूल्हा-बाराती, गाजे-बाजे सब जैसे तैयार ही बैठे थे, आत्मा धिक्कारती रही, मन रोता रहा, खुद को मिटा कर उसने दुल्हन का लिबास पहन लिया। चट मंगनी-पट ब्याह सम्पन्न हो गया, दर्द जब हद से बढ़ जाये तो सैलाब आता है। आंसुओं का सैलाब और अपने साथ सब बहा ले जाता है।

ऐसा ही हुआ जब पति ने पूछा "तुम इतनी इंटेलीजेंट और स्मार्ट हो, तुम्हारी शादी तो 'क्लास वन अफसर' से हो सकती थी ? तुम खुद भी कुछ बन सकती थी ? क्या तुम्हारे पेरेंट्स तुमसे प्यार नहीं करते ?" ये सुनते ही अहाना फूट-फूट कर रो पड़ी। फिर तो आंसूओं के साथ सारे गुबार बाहर आ गए "पसंद तो मैंने भी आईएएस ही किया था। भावी आईएएस पर अपने ऑनर के लिए मेरे अपनों ने मेरे सपनों पर पानी फेर दिया।"

आकाश, उसके पति के लिए ये सुनना और समझना आसान ना था। कुछ पलों की ख़ामोशी के बाद अहाना को शांत करते हुए बोले कि "आज से हमारे सुख-दुख एक हैं। मैं तुम्हारे जीवन में खुशियाँ लाऊंगा।" अहाना आश्चर्य से उसे देखते हुए पूछ बैठी "आपको मेरे प्यार की बात बुरी नहीं लगी ? मैंने तो इस विषय पर आजतक आलोचना ही सही है।"

"नहीं ! प्यार तो दिलों का मेल है, जो जाने-अनजाने में हो जाता है ! लड़कों को भी होता है, बस लड़कियां दिल से लगा बैठती हैं और लड़के व्यव्हारिकता अपनाते हैं। तुम बताओ कि मैं तुम्हारी कैसे मदद करूँ ?"

"ये तो मुझे भी नहीं पता, पर एक बार मिलना चाहती हूँ।अगर वह माफ कर दे तो शायद अपराध बोध से बाहर आ सकूँ।अपना पक्ष रखने का भी अधिकार नहीं मिला मुझे ! काश कि अपनी बेगुनाही बता पाती तो मैं भी सामान्य जीवन जी पाती।" पत्नी की सच्चाई ने मन मोह लिया था। क्यों और कैसे पर एक दर्द का रिश्ता जुड़ गया था। उसे समझ में आ गया था कि ज़बरन हुए विवाह से अहाना घुट रही थी। वर्तमान को स्वीकार कराने में अभिषेक ही मददगार साबित हो सकेगा। ये सोचकर आकाश ने अहाना को उसकी खोई खुशियों से रूबरू कराने का फैसला किया। उसने कॉलेज रिकार्ड्स से अभिषेक के बारे में पता किया। अभिषेक ने एयरफोर्स जॉइन कर लिया था और ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद गया था। ये जानकारी मिलते ही आकाश ने दफ्तर से एक सप्ताह की छुट्टी ली और अहाना से हनीमून के लिए सामान तैयार करने के लिए कहा। आकाश की मनसा से अनजान, अहाना ने सामान तैयार कर लिया और वहां जाकर जो खुशियां मिली उससे तो हमेशा के लिए आकाश की ही होकर रह गयी।

आकाश ने अभिषेक को होटल में मिलने के लिए बुलाया। अहाना के लिए बड़ा सरप्राइज था। अभिषेक को देखकर बहुत खुश हो गयी थी। आज पति ने वह दिया जो पिता नही दे पाए थे।उसके विश्वास को देख कर गर्व से भर उठी।अहाना को खुश देखकर आकाश को मानसिक शांति मिल रही थी। अभिषेक थोड़ा किंकर्तव्यविमूढ़ था, पर जल्दी ही आकाश के स्वभाव ने उसे भी कंफर्टेबल कर दिया। वह दिन में अपनी ट्रेनिंग ख़त्म कर रोज शाम को मिलने आता। रात का खाना साथ खाते, हँसते, गुनगुनाते और फिर लम्बी वॉक के लिए जाते। अभिषेक और आकाश की खूब बातें होती और यह देखकर अहाना को लगता जैसे उसकी दुनिया फिर से खूबसूरत हो गयी हो।

इस तरह 5 दिन निकल गए, अब 6ठा दिन था। कल निकलना होगा, ये सोचकर आकाश ने तबीयत खराब का बहाना कर, दोनों को एकसाथ जाने के लिए कहा। जानता था कि एक बार अकेले मिलकर मन हल्का करके ही अहाना अपने गिल्ट से बाहर आ सकती है। उसके सुखद दाम्पत्य के लिए यह बहुत ज़रूरी था।

"तुम्हे तो आईएएस बनना था, फिर एयरफोर्स क्यों जॉइन कर लिया अभी ?" अहाना ने पूछा।

"तुम्हारे बाद, आसमान से इश्क़ हो गया, देखो कैसे सुख :दुःख में एक सी छत्र छाया देती है हमें।" अभिषेक ने कहा।

"ओहो ! फिलॉस्फर ! मुझसे नाराज हो ? हम दोनो के जीवन का फैसला मैंने अकेले ले लिया ?" अहाना ने पूछा।

"ना आना ! बिलकुल भी नहीं ! मैंने प्यार किया और मेरा प्यार स्वार्थी नहीं। मैं जानता हूँ, तूमने हर संभव कोशिश की होगी। गलती हमारे परिवार वालों की है जिन्होंने अपनी अपनी खुशियों के लिए हमारी परवाह नहीं की। आकाश का अहसानमंद हूँ जिसने तुम्हारा ख्याल रखा और हमारे रिश्ते को सम्मान की नज़र से देखा। ये जो आज हम मिल रहे हैं ये उसी महान इंसान की बदौलत है, जो मिला वो कम तो नहीं है।"

अहाना और अभिषेक इन खूबसूरत पलों को हमेशा के लिए संजो लेना चाहते थे। तभी एक जरूरतमंद "जोड़ी सलामत रहे !" कहकर पैसे मांगने लगा। "इस बार पैसे तू देगी आना !" अभी ने छूटते ही कहा तो अहाना खिलखिला पड़ी।

इससे पहले भी किसी ने उन्हें सलामती की दुआ दी थी तब अभिषेक ने खुश होकर 50 रुपये पकड़ा दिए थे।शायद उसकी दुवाओं का ही असर था कि बिछड़ कर भी दोनों बिछड़ ना पाए।दोनों को वो पुरानी बात याद आ गयी।गीली आंखों से अहाना ने पूछा "याद नहीं आती मेरी ?"

"नहीं आती !" उसने अपने भावों को छुपा लिया था।उसे पता था कि उसकी एक ग़लती वापस अहाना को तोड़ सकती थी।

"बड़े खराब हो तुम"अहाना ने ताना दिया।

"जो जी में आये समझ ले।100 काम होते हैं। तुम्हें याद करने लगा तो कुछ ना कर पाउँगा।फिर मुझे भी 'जोड़ी सलामत रहे 'वाली दुआओं पर जिंदगी काटनी पड़ेगी।"

इस बात पर अहाना जोर -जोर से हँसने लगी।

"यूँ ही हंसती रहा कर ! इतना अच्छा पति और परिवार मिला है। तुम्हे हमेशा खुश रखेगा।" अभिषेक ने कहा।

"और तुम अभिषेक ! क्या करोगे अकेले ?" अहाना ने चिंता जतायी।

"स्मार्ट आदमी हूँ ! शादी करूँगा और क्या ?" अहाना तो उसके सेंस ऑफ़ हयूमर की फैन थी।

उन वादियों में दोनों के कहकहे गूंजते रहे, लगता था मानो सब पर तरुणाई सी छा गयी हो। ठंढी हवाएं उन्हें छूकर, वापस लौट आती थी, मानो पकड़म-पकड़ाई खेल रही हों। चाँद, जो कि उनके अद्भुत प्रेम का सबसे बड़ा गवाह था, वह उनके मधुर वार्तालाप सुन मंद-मंद मुस्कुरा रहा था। कितनी पवित्रता थी उनके सोच में, साथ थे और नहीं भी ! ऐसे पवित्र प्रेम पर भला आकाश क्या संदेह करता, वह तो बस इतना चाहता था कि विरही व तप्त ह्रदय, तृप्त हो जाये ताकि अहाना नई जिंदगी ख़ुशी-ख़ुशी जी सके।

घड़ी देखा तो 10 बज गए थे। अभी ने अहाना को होटल छोड़ा और विदा होते हुए उसने एक वादा लिया कि वह हमेशा खुश रहेगी और सामान्य जीवन जियेगी।

जाते-जाते अभिषेक ने अहाना से कहा -

"मेरी दुनिया भी रौशन हो जाये, ऐसी दुआ करना ! सुना है अपनों की दुआओं में बड़ी ताक़त होती है !"

"जरूर" अहाना ने हामी भरी। इस बात के 6 महीने ही गुज़रे थे कि आज शादी का कार्ड पाकर वह अपराधबोध से बाहर आ गयी। उसकी दुआ जो क़ुबूल हो गयी थी !

"उफ़ ! सोचते-सोचते शाम हो गयी। आकाश आते ही होंगे।" उनकी मनपसंद पोशाक पहनकर अहाना तैयार हो गयी। आज महीनों बाद उसका मन आज़ाद पंछी सा उड़ना चाह रहा था। कौन कहता है कि प्यार दोबारा नहीं होता। साथ रहते हुए ,एक दूसरे की खुशियों का ख्याल रखते हुए,आख़िर प्यार हो ही जाता है।ऐसे ही तो आकाश से नहीं जुड़ गई वो, वक़्त लगा, प्यार व विश्वास भी लगा। किसी भी रिश्ते की मजबूती के लिए प्यार, विश्वास व वक़्त तीनों का निवेश करना पड़ता है। सच है ! जब दो दिल एक दूसरे के दर्द को जीने लगते हैं तो प्यार गहरा होता जाता है। ऐसे में पहला प्यार बचपना और दूसरा ज्यादा अपना लगने लगता है।


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